धमतरी जिले में भैंसामुड़ा और मटिया बाहरा जैसे सुदूर गांवों में लोग पेड़ से अपना रिश्ता जोड़कर रखते हैं. 15 अगस्त 1947 को जब देश आजादी की नई सुबह के सूरज को नमन कर रहा था. तब इस गांव में एक बरगद का पौधा रोपा गया था. जो आज 72 साल का हो चुका है. हर आजादी के पर्व में यहां तिरंगा फहराया जाता है.
इस पंचायत की सभी बैठकें इसी बरगद के पेड़ की छांव में होती है. इस पेड़ को वनवासी अपना बुजुर्ग मानते हैं. ये रिश्ता ये संस्कार की पूंजी पीढ़ी दर पीढ़ी गांव में ट्रांसफर होती आ रही है. पेड़ से लगाव का यही जज्बा हमें प्रेरित करता है.
धमतरी में ब्रह्म तेंदु के पेड़ों की उम्र 230 वर्षों से ज्यादा हो चुकी है. धमतरी जिले के नगरी वन परिक्षेत्र में ये विशालकाय पेड़ है. घने जंगल में बड़े-बड़े पेड़ों के बीच ये आसमान को छूता पेड़ अलग ही पहचान दिखाई देता है. इसकी उंचाई 35 मीटर से ज्यादा और गोलाई लगभग 3 मीटर हो चुकी है.
धमतरी वन मंडल के लिये ये पेड़ खास अहमियत रखता है. वन विभाग ने इस पेड़ की देखरेख के लिये एख अलग टीम को जिम्मा दे रखा है, जो इसकी सुरक्षा से लेकर हर तरह की देखभाल करता है. आम तौर पर तेंदू के पेड़ इतने वर्षों तक न जीते हैं. न ही उन्हें रखा जाता है, लेकिन ये पेड़ अपने आप में अनोखा है. इसिलिए इसका नाम ब्रह्म तेंदु रखा गया है.
धमतरी में कई तरह के खास और दुर्लभ प्रजाति के पेड़ हैं, जिनको वन मंडल ने संरक्षित किया गया है. वन विभाग ने इस पेड़ की देखरेख के लिये एक अलग टीम को जिम्मा दे रखा है. जो इसकी सुरक्षा से लेकर हर तरह की देखभाल करता है. आम तौर पर तेंदू के पेड़ इतने वर्षों तक न जीते हैं. न ही उन्हें रखा जाता है, लेकिन ये पेड़ अपने आप में अनोखा है. इसिलिए इसका नाम ब्रह्म तेंदु रखा गया है.