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रोल मांगने गए थे डैनी डेन्जोंगपा, डायरेक्टर ने ऑफर की गार्ड की नौकरी, फिर लिया बदला और...

बॉलीवुड में खुद को विलेन के रूप में स्थापित करने वाले डैनी के करियर की शुरुआत पॉजिटिव किरदार से हुई थी. उन्होंने 1971 में आई फिल्म 'मेरे अपने' में सकारात्मक भूमिका निभाई थ. इसके 2 साल बाद 1973 में उन्होंने बीआर चोपड़ा की फिल्म 'धुंध' में पहली बार विलेन का रोल किया.

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फिल्मों में नेगेटिव किरदार निभाना इतना आसान नहीं है. दर्शक हमेशा चाहते हैं की हीरो की ही जीत हो और माना जाता है कि तभी फिल्म हिट होगी जब क्लाइमेक्स में हीरो, विलेन का अंत कर दे, लेकिन एक फिल्म के लिए जरूरी बात यह भी है कि फिल्म का विलेन जितना मजबूत होगा, उतनी ही फिल्म स्क्रीन पर पॉवरफुल दिखेगी. ये सब बातें हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आज हम हिंदी सिनेमा के महान खलनायकों में से एक ऐसे विलेन की बात कर रहे हैं, जो फिल्म में गए तो थे रोल मांगने लेकिन डायरेक्टर ने उन्हें गार्ड की नौकरी ऑफर कर दी. हालांकि इस विलेन असली जिंदगी में हीरो की तरह लड़ाई की और डायरेक्टर से बदला लिया.

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बॉलीवुड प्रेमी है, तो शायद अब तक समझ गए होंगे. यहां बात हो रही है बॉलीवुड के साथ ही नेपाली, तमिल, तेलुगु और हॉलीवुड की फिल्मों में भी बेहतरीन किरदार निभा चुके डैनी डेंजोंगप्पा की. डैनी का 'कांचाचीना' किरदार शायद ही कोई भूल पाएगा. इसके अलावा 'बख्तावर', 'खुदा बख्श' जैसे किरदारों से उन्होंने दर्शकों के दिल में सदा के लिए जगह बना ली.

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डैनी का जन्म सिक्किम जैसे छोटे से राज्य में हुआ था. उनका असली नाम टीशरिंग पेंटशॉ (Tshering Pentso) हैं. छोटे से राज्य से आकर बॉलीवुड में अपनी जगह बनाने वाले डैनी की कहानी आपको रोमांचित कर देगी. बॉलीवुड में करियर बनाने की सोच रखने वाले सैकड़ों युवाओं के बीच डैनी ने भी एफटीआईआई का रुख किया. उनके दिन-रात डॉयरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स के चक्कर काटने में बीते थे. डैनी काम की तलाश में मुंबई के जुहू इलाके में पहुंचे यहीं पर उन्होंने धर्मेंद्र, मनोज कुमार और अन्य एक्टर के बंगले देखे. तभी डैनी की नजर मोहन कुमार के बंगले पर पड़ी. मोहन कुमार के बंगले में सिक्किम के कई गार्ड थे, ऐसे मैं डैनी को उनके बंगले में आसानी से एंट्री मिल गई.

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बस यही व रोचक किस्सा आता है जो हम आपको बताएंगे. बंगले के अंदर जाने के बाद डैनी ने मोहन कुमार से मुलाकात की. मोहन कुमार के सामने उन्होंने एक्टर बनने की इच्छा रखी तो मोहन उन पर जोर-जोर हंसने लगा और बोले तुम मेरे बंगले में गार्ड की नौकरी कर सकते हो. बस वही दिन था, जिस दिन डैनी ने यह संकल्प लिया कि वह मोहन कुमार के बंगले के पड़ोस में ही अपना बंगला बनाएंगे. इसके बाद डैनी सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए और आखिरकार दोनों मोहन कुमार के बंगले के पड़ोस में ही जमीन खरीदी और उस पर अपना बंगला बनाया.

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बॉलीवुड में खुद को विलेन के रूप में स्थापित करने वाले डैनी के करियर की शुरुआत पॉजिटिव किरदार से हुई थी. उन्होंने 1971 में आई फिल्म 'मेरे अपने' में सकारात्मक भूमिका निभाई थ. इसके 2 साल बाद 1973 में उन्होंने बीआर चोपड़ा की फिल्म 'धुंध' में पहली बार विलेन का रोल किया. डैनी ने 1990 तक करीब 190 फिल्में की. उन्होंने सिर्फ बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड के प्रसिद्ध एक्टर ब्रैड पिट के साथ साल 2003 में '7 ईयर्स इन तिब्बत' की, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा.

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जहां फिल्म गब्बर ने अमजद खान के करियर को एक नई पहचान दी. वहीं, डैनी ने यह रोल ठुकरा दिया था. दरअसल, गब्बर का रोल पहले डायरेक्टर रमेश सिप्पी ने डैनी को ही ऑफर किया था. एक इंटरव्यू के दौरान डैनी ने इस बात का खुलासा किया था कि रमेश सिप्पी ने उन्हें 'शोले' फिल्म ऑफर की थी, लेकिन तब तक वह धर्मात्मा फिल्म के लिए फिरोज खान को डेट दे चुके थे. फिरोज खान ने अफगानिस्तान में फिल्म की शूटिंग की परमिशन भी ले ली थी. ऐसे में उन्हें गब्बर के रोल को ना कहना पड़ा. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि मुझे 'गब्बर' के रोल के लिए मना करने का कभी कोई मलाल नहीं हुआ. इसके पीछे का कारण भी उन्होंने बताया था. एक्टर ने कहा था, क्योंकि 'शोले' में अमजद की जबरदस्त एक्टिंग के चलते इंडस्ट्री में उनकी फीस काफी बढ़ गई थी और ऐसे में उनकी फीस भी ऑटोमेटिक ली बढ़ गई और इसका उन्हें फायदा हुआ.

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एक इंटरव्यू के दौरान डैनी ने अपने अफेयर के बारे में भी खुलकर बात की. 'बेबी', 'जय हो', '16 दिसंबर' और 'अग्निपथ' जैसी फिल्मों में काम कर चुके डैनी का अफेयर 70 के दशक में करीब 4 साल तक परवीन बॉबी के साथ रहा. दोनों बिना शादी के ही साथ रहते थे, जो उस वक्त के लिए बहुत बड़ी बात मानी जाती थी डैनी ने इंटरव्यू में बताया कि उनका ब्रेकअप आपसी सहमति से ही हुआ था और वह हमेशा अच्छे दोस्त रहे थे. फाइल फोटो

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    रोल मांगने गए थे डैनी डेन्जोंगपा, डायरेक्टर ने ऑफर की गार्ड की नौकरी, फिर लिया बदला और...

    फिल्मों में नेगेटिव किरदार निभाना इतना आसान नहीं है. दर्शक हमेशा चाहते हैं की हीरो की ही जीत हो और माना जाता है कि तभी फिल्म हिट होगी जब क्लाइमेक्स में हीरो, विलेन का अंत कर दे, लेकिन एक फिल्म के लिए जरूरी बात यह भी है कि फिल्म का विलेन जितना मजबूत होगा, उतनी ही फिल्म स्क्रीन पर पॉवरफुल दिखेगी. ये सब बातें हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आज हम हिंदी सिनेमा के महान खलनायकों में से एक ऐसे विलेन की बात कर रहे हैं, जो फिल्म में गए तो थे रोल मांगने लेकिन डायरेक्टर ने उन्हें गार्ड की नौकरी ऑफर कर दी. हालांकि इस विलेन असली जिंदगी में हीरो की तरह लड़ाई की और डायरेक्टर से बदला लिया.

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