एक अकेली महिला का यूं संघर्षों से निकलकर अपना अलग मुकाम हासिल करना इलाके के लोगों के लिए भी नज़ीर है.
14 साल की छोटी उम्र में मजबूरी ने हाथों में तांगे की लगाम थमा दी थी. तब लोग ताने दिया करते थे, मज़ाक बनाते थे. मगर उस दौर में अगर उन तानों को सुनकर कदम पीछे खींच लिए होते तो गुरदासपुर की भोली वहां ना होती, जहां वो आज अपनी हिम्मत के दम पर पहुंची है.
भोली आज 3-3 गाड़ियों की मालकिन हैं और पूरा इलाके में उनका नाम बोलता है. ये संघर्षों से निकलकर कामयाबी की इबारत लिखने की बेहद जज्बाती कहानी है. क्योंकि 14 साल की जिस उम्र में बच्चे अपना सही ढंग से ख्याल नहीं रख पाते. भोली ने पूरे परिवार का भार अपने सिर पर ले लिया था.
पिता के घर में मुसीबतों का अंबार था तो पति के घर मुश्किलों का पहाड़ बन गया. नशेड़ी पति के साथ ज़िंदगी काटना मुश्किल होने लगा. इसलिए अपनी किस्मत खुद लिखने का फैसला किया और पति का घर छोड़ नई शुरुआत की. अकेले दम पर बच्चों की परवरिश की. बेटी को ससुराल विदा किया और बेटा आज बीसीए की पढ़ाई कर रहा है.
एक अकेली महिला का यूं संघर्षों से निकलकर अपना अलग मुकाम हासिल करना इलाके के लोगों के लिए भी नज़ीर है.
जो लोग कभी भोली पर हंसा करते थे आज वो दूर-दूर तक नज़र नहीं आते. नज़र आती है तो उस एक महिला की हिम्मत जिसने ना कभी हालात से हार मानी और ना ही गैरों के तानों को तवज्जो दी. इसलिए भोली एक सबक है उन सबके लिए जो बेचारे छोटी सोच के मारे हैं.