हैवी ड्राइवर बनीं जिले की तीनों बेटियों ने बताया कि शुरुआत में जब उन्होंने बाइक या ट्रैक्टर चलाना सीखा तो लोगों के ताने सुनने को मिले. लोगों ने उनके मुंह पर बोला कि यह काम पुरुषों का है, न कि महिलाओं का. इन तानों को अनसुना कर उन्होंने अपना प्रशिक्षण जारी रखा और उनके संघर्ष का अब सकारात्मक परिणाम सामने आया है. इनका कहना है कि उन्हें ताने देने वाले ही जब ड्राइवरी की तारीफ करते हैं तो उन्हें खुशी होती है.
जिला के गांव अख्त्यारपुरा निवासी शर्मिला, मिसरी निवासी भारती और मौड़ी निवासी बबीता धवन डीटीसी में हैवी ड्राइवर हैं. उन्होंने बताया कि हैवी वाहन चलाने का प्रशिक्षण चरखी दादरी रोडवेज ट्रेनिंग स्कूल में लिया है. मौड़ी निवासी बबीता ने 2016 के बैच में, भारती ने 2018 के बैच में और शर्मिला ने 2019 के बैच में अपना प्रशिक्षण पूरा किया. परिवार की आर्थिक मदद के लिए उन्होंने ड्राइवरी सीखने का फैसला लिया था और अब डीटीसी में जॉइनिंग से तीनों बहुत खुश हैं.
बातचीत में इन बेटियों ने बताया कि शुरुआत में इन्हें काफी मुश्किलें आईं. महेंन्द्रगढ़ निवासी शर्मिला की शादी अख्त्यारपुरा गांव में हुई थी. शर्मिला ने बताया कि एक बार बेटा बीमार हो गया और उसके पति को बाइक चलानी नहीं आती थी. बेटे को लगातार अस्पताल ले जाना था और एक-दो दिन साथ जाने के बाद परिचितों ने भी मना कर दिया. इसके बाद उसने बाइक सीखी.
इन सभी का कहना था कि उन्हें सभी को साबित करना था कि वे जो चाहे काम कर सकती हैं. मौड़ी निवासी बबीता ने बताया कि खेती में पिता का हाथ बंटाने के लिए उसने ट्रैक्टर सीखा था. इसके बाद उसने हैवी लाइसेंस के लिए प्रशिक्षण लेकर बस चलानी सीखी. मिसरी निवासी भारती ने बताया कि वो पांच बहने हैं, उनके भाई नहीं है। परिवार को बेटे की कमी न खले इसलिए उसने चालक बनकर परिवार को चूल्हा जलाने में सहयोग करने की सोची.
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