अगर हौंसले बुलंद हो और मन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं. मुश्किलों पर किस तरह से काबू पाया जा सकता है, यह कोई रोहतक की सुनीता से सीखें. उन्होंने दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद अपनी हिम्मत से एक नया मुकाम हासिल किया है. सुनीता अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की एथलीट हैं.
सुनीता मल्हान का जन्म 1966 में झज्जर के एक छोटे से गांव सुबाना में हुआ था और वे रोहतक में ही अपनी एमए की पढाई कर रही थी, कि 8 मई 1987 को एक हादसे में उनके दोनों हाथ कट गए. उसके बाद वह पूरी तरह से असहाय हो गई, लेकिन मेडिकल में इलाज के दौरान एक नर्स ने ऐसा हौंसला बढाया कि जिंदगी को बेहतर ढंग से जीने की इच्छा पैदा हो गई.
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