जानकारी के अनुसार, शोध टीम के निष्कर्ष ‘बायोमोलेक्यूलर स्ट्रक्चर एंड डायनेमिक्स’ नामक जर्नल में हाल में प्रकाशित किए गए हैं. शोध टीम का नेतृत्व आईआईटी मंडी के बायोएक्स सेंटर, स्कूल ऑफ बेसिक साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर डा. श्याम कुमार मसकपल्ली और डा. रंजन नंदा, ट्रांसलेशनल हेल्थ ग्रुप और डा. सुजाता सुनील, वेक्टर बोर्न डिजीज ग्रुप, इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी, नई दिल्ली ने किया है. शोध-पत्र के सह-लेखक डा. मनीष लिंगवान, शगुन, फलक पहवा, अंकित कुमार, दिलीप कुमार वर्मा, योगेश पंत, लिंगराव वी.के. कामतम और बंदना कुमारी हैं.
[caption id="attachment_3960341" align="alignnone" width="925"] दो साल तक किया शोधः दो वर्षों तक चले शोध में इन्होंने पाया कि बुरांश के फूल में फाइटोकैमिकल पाया जाता है जिससे बनने वाले अर्क से कोरोना वायरस की रोकथाम संभ बता दें कि बुरांश के फूल का अंग्रेजी में नाम रोडोडेंड्रोन अर्बाेरियम है जबकि इसे स्थानीय भाषा में बुरांश के नाम से जाना जाता है.
बता दें कि बुरांश के फूल पूरे हिमालयी क्षेत्र में पाए जाते हैं. उत्तराखंड में तो इसे राज्य फूल का दर्जा भी दिया गया है. हिमाचल प्रदेश में भी यह फूल बड़ी संख्या में प्राकृतिक तौर पर मिलता है. यह फूल सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही पाया जाता है और उस दौरान लोग इसे तोड़कर अर्क बनाकर या फिर पत्तियों को सुखाकर वर्ष भर इसका इस्तेमाल करते हैं.
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