उत्तराखंड के जंगल धधक रहे हैं. आग बुझाने में स्थानीय प्रशासन फेल हुआ तो सेना, एयरफोर्स और एनडीआरएफ तक को मैदान में उतारना पड़ा. फिलहाल भी हालात यह हैं कि ऊपर से हेलीकाप्टर पानी गिरा रहे हैं और आग है कि बुझने का नाम नहीं ले रही है. आइए आपको दिखाते हैं उत्तराखंड में धधकते जंगलों से जुड़े कुछ आंकड़े.
मौत-07 ,झुलसे-14,अग्निकांड-1082,प्रभावित क्षेत्र-2269 हेक्टेयर,गढ़वाल मंडल में अभी तक आग की 603 घटनाएं, गढ़वाल में आग की जद में 1039.83 हेक्टेयर जंगल,कुमाऊं मंडल में 318 जगहों पर आग,कुमाऊं के 671.31 हेक्टेयर जंगल में आग का कहर, वन्यजीव इलाकों में 161 वनाग्नि की घटनाएं,558.15 हेक्टेयर जंगल का इलाका आग की चपेट में.
जून 2013 की आपदा में भी MI 17 का अहम रोल : दावानल से उत्तराखंड के जंगल धधक रहे हैं. आग बुझाने के लिए अब एयरफोर्स के MI-17 को उतारा गया.श्रीनगर गढ़वाल और हल्द्वानी जिले से सटे जंगलों में लगी आग को बुझाने में लगातार MI-17 प्रयास कर रहा है.देश के कई ऑपरेशन्स में MI-17 की अहम भूमिका रही है.जून 2013 की आपदा में भी इस हेलीकॉप्टर की अहम भूमिका रही थी.और एक बार फिर वायुसेना के इस हेलीकॉप्टर ने साबित कर दिया कि हर आपदा से निपटने के लिए वह सक्षम हैं.MI-17 में लगे बेम्बी बकैट की मदद से पानी को उन स्थानों पर ले जाया जा रहा है जहां आग लगी है.
बेम्बी बकैट से बुझा रहे आग, क्या है बेम्बी बकैट : कई स्थानों पर बॉम्बी बकैट को हेलीकॉप्ट बकैट भी कहा जाता है.आग बुझाने में कारगर सिद्ध हुए.इस बकैट को कनाडा के डॉन एनरे ने सन् 1983 में बनाया था.जिसका उपयोग आज 21वीं सदी में बखुबी किया जा रहा है.अमेरिकी वायुसेना और फायर ब्रिगेड की टीमें इस बकैट को आग बुझाने में इस्तेमाल करती है.आज के समय में दुनिया के 144 देशों के 95 प्रतिशत हेलीकॉप्टर में इस बकैट का प्रयोग किसी भी क्षेत्र में लगी आग को बुझाने के लिए किया जाता है.कनाडा में बने इस बकैट को कनाडा का सबसे महत्वपूर्ण खोज का अवॉर्ड भी मिला.
यह संतरी रंग की एक लचीली बकैट होती है.पायलट एक बटन के जरिए इस बकैट के ऊपरी सिरे को कंट्रोल करता है.SEI इन्डस्ट्री ने इस कई वैकल्पिक बटनों से मॉडीफाई किया है.जैसे (1) पॉवर फिल(टीएम) सिस्टम-यह एक उच्चस्तरीय पंप प्रणाली है जिसके जरिए बॉम्बी बॉल्टी 46 सेमी (18 इंच) के स्त्रोत से जल्द पानी भरा जा सकता है.(2)कवरेज कंट्रोल-यह एक तरह का कम्प्यूटराईज डिवाइस है.जिसकी मदद से पायलट को ग्राउंड कवरेज का पता चलता है.
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