जयपुर राजघरानाः जयपुर का राजघराना देश के बड़े राजघरानों में से एक है। महारानी गायत्री देवी की मौजूदगी ने इसे देश-विदेश में मशहूर कर दिया। वो अपने वक्त की सबसे खूबसूरत महिलाओं में गिनी जाती थीं। जयपुर राजघराने के पास अरबों की संपत्ति है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राजपरिवार की कई संपत्तियों पर 1992 से रिसीवर नियुक्त कर रखा है।
मेवाड़ राजवंशः मेवाड़ राजघराना अकूत धन संपत्ति के लिए ही नहीं विंटेज कारों के बेशकीमती खजाने के लिए भी अपनी अनूठी पहचान रखता है। उदयपुर के सिटी पैलेस में रखी महाराजा अरविंद सिंह की विंटेज कारें मेवाड़ राजघराने की खास पहचान रही हैं। यहां पहुंचने वाले देसी-विदेशी पर्यटक भी पैलेस के साथ इन कारों के आकर्षण से बच नहीं पाते हैं। अरविंद सिंह मेवाड़ घराने के 76वें संरक्षक हैं। वे महाराणा प्रताप के वंशज हैं।
पटौदी रियासतः बॉलीवुड में पटौदी खानदान तो अपने घराने के लिए मशहूर। ये खानदान भोपाल के पटौदी खानदान से संबंध रखता हैं। सैफ के पिता मंसूर अली खान पटौदी भीरतीय क्रिकेट टीम के कप्तान तो थे ही, साथ ही साथ 1952 से लेकर 1971 तक पटौदी खानदान के नवाब भी थे। एक अनुमान है कि पटौदी परिवार करीब 5 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति का मालिक है। इसमें भोपाल और पटौदी रियासत की संपत्ति शामिल है। इन संपत्तियों पर विवाद भी हैं।
सिंधिया राजवंशः भारत की राजनीति में सबसे सफल राजघराना सिंधिया घराना माना जाता है। राजपरिवार की मुखिया ने देश के इकलौते दल कांग्रेस को चुनौती देते हुए भारतीय जनता पार्टी को पोषित कर देश में दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में खड़ा करने में अहम योगदान दिया। सिंधिया राज घराने की संपत्तियां हमेशा विवाद में रहती हैं। कभी इन संपत्तियों को लेकर सिंधिया घराने में पारिवारिक कलह होता है तो कभी उनकी अवैध बिक्री को लेकर विवाद उठता रहता है।
डोगरा राजवंशः कश्मीर राजघराने का इतिहास राजा हरि सिंह के समय तक स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाने वाला रहा है। इतिहासकार कहते हैं कि महाराजा गुलाब सिंह ने अफ़गानिस्तान तक भारत का ध्वज फहरा दिया था। राजा गुलाब सिंह के वंशज महाराजा हरि सिंह ने लंदन की गोलमेजज कॉन्फ्रेंस में अंग्रेजी सरकार को फटकार लगाई थी।
डूंगरपुर रियासतः इस घराने के महारावल उदयसिंह प्रथम खानवा के युद्ध में मेवाड़ के राणा सांगा की ओर से बाबर की सेना के खिलाफ लड़ते हुए वीरगति प्राप्त हुए थे। महारावल लक्ष्मण सिंह डूंगरपुर रियासत के अंतिम शासक रहे। वे ब्रिटिश काल में नरेंद्र मंडल के सदस्य रहे। आजादी के बाद लक्ष्मण सिंह राज्यसभा सांसद व राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष थे। इधर त्रिशिका के छोटे परदादा डॉ नागेंद्र सिंह अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अध्यक्ष रहने के साथ भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त व राष्ट्रपति के निजी सचिव भी रहे।
धौलपुर राजघरानाः राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे धौलपुर की पूर्व रियासत की महारानी कहलाती हैं। उनके पास न तो किसी तरह की भूमि है, न ही कोई मकान या अन्य जायदाद। पिछले विधानसभा चुनावों के समय वसुंधरा राजे धौलपुर में 20 बीघा कृषि भूमि की मालकिन जरूर थीं, लेकिन इस बार यह जमीन भी उनके पास नहीं रही। बीते विधानसभा चुनावों के नामांकन के साथ प्रस्तुत किए गए संपत्ति के विवरण में उन्होंने यह जानकारी दी है। वो तीन करोड़ 96 लाख 28 हजार की कुल संपत्ति की मालकिन हैं।
रणजीत सिंह, लाहौरः रणजीत सिंह का प्रशासन भी महत्त्वपूर्ण रहा। वह निरंकुश होते हुए भी 'खालसा' के नाम पर शासन करते थे। उनकी सरकार को 'सरकार खालसा' कहा जाता था। 59 वर्ष की आयु में 7 जून, 1839 ई. में अपनी मृत्यु के समय तक उन्होंने एक ऐसे संगठित सिक्ख राज्य का निर्माण कर दिया था, जो पेशावर से सतलुज तक और कश्मीर से सिन्ध तक विस्तृत था। किन्तु इस विस्तृत साम्राज्यों में वह कोई मज़बूत शासन व्यवस्था प्रचलित नहीं कर सके और न ही सिखों में वैसी राष्ट्रीय भावना का संचार कर सके, जैसी शिवाजी ने महाराष्ट्र में उत्पन्न कर दी थी। फलत: उनकी मृत्यु के केवल 10 वर्ष के उपरान्त ही यह साम्राज्य नष्ट हो गया।
मैसूर राजवंशः वाडियार राजघराने का इतिहास 1399 से चला आ रहा है। तब राजघराने ने मैसूर पर राज करना शुरू किया था। तब से अब तक राजा की घोषणा होती आई है। मैसूर शहर के बिल्कुल केंद्र में स्थित मैसूर का महाराजा पैलेस मैसूर शहर का आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र है। इस किले में सात दरवाजे हैं। इसका निर्माण मैसूर राज्य के वाडियार महाराजाओं ने कराया था। पहली बार यहां लकड़ी का महल बनवाया गया था। जब लकड़ी का महल जल गया था, तब इस महल का निर्माण कराया गया। मैसूर राजपरिवार करीब 80 हजार करोड़ रु की संपत्ति का मालिक है।
त्रावणकोर राजवंशः त्रावणकोर राजवंश का नाम स्वामी पद्मनाभ मंदिर के अकूत खजाने से चर्चा में आया। यह राजवंश मूलतः विदेशी व्यापार करता था। 1750 में हुए एक भव्य समारोह में त्रावणकोर के राजा ने अपना राज्य भगवान पद्मनाभ स्वामी को समर्पित कर दिया, जिसके बाद पद्मनाभ स्वामी के दास के रूप में त्रावणकोर का शासक किया। इसके बाद से त्रावणकोर के शासक भगवान पद्मनाभ स्वामी के दास (पद्मनाभदासों) कहलाए।
इंदौर टेस्ट के बाद BCCI को अपील पर मिली जीत, ICC ने पलटा फैसला, भारत को मिली बड़ी जीत
महेंद्र सिंह धोनी रिटायरमेंट से पहले तोड़ना चाहेंगे 2 बड़े रिकॉर्ड, एक विराट से जुड़ा, दूसरा CSK के लिए बेहद खास
'अंधाधुन' से लेकर 'देव डी' तक, OTT पर मौजूद हैं 5 शानदार डार्क कॉमेडी फिल्में, जितनी बार देखिए मन नहीं भरेगा
World Theatre Day: हिमानी शिवपुरी से पंकज त्रिपाठी तक, बड़े पर्दे पर छा चुके इन सितारों का पहला प्यार है थिएटर