Home / Photo Gallery / jharkhand /holi 2022 jharkhand bokaro durgapur village does not celebrate holi festival nodvm

Holi 2022: इस गांव में नहीं खेली जाती है होली, रंग-अबीर से दूर भागते हैं लोग, जानें क्या है इसके पीछे की कहानी

Holi 2022 Village story: रंगों का पर्व होली का इंतजार हर किसी को होता है लेकिन झारखंड के दुर्गापुर गांव में इस मौक पर सन्नाटा छाया रहता है. यहां लोग होली के रंगों को देखकर ही भयभीत हो जाते हैं. अबीर-गुलाल से लोगों के चेहरे नहीं खिलते बल्कि वो इसे देखते ही दूर भागने लगते हैं. दुर्गापुर गांव में कोई भी होली नहीं खेलता है और जो कोई भी इस बात की अनदेखी कर के रंग से सराबोर हुआ है उसे अपनी जान गंवानी पड़ी. लोगों का कहना है कि जब भी कोई इस गांव में होली खेलता है तब कोई न कोई अप्रिय दुर्घटना जरूर घटित होती है. ऐसे में आइए इस अनोखे गांव की पूरी कहानी जानते हैं. (रिपोर्ट और तस्वीर-मृत्युंजय कुमार)

01

रंगों के बिना होली की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. लेकिन झारखंड के बोकारो जिले के कसमार प्रखंड में एक गांव है दुर्गापुर, जहां लोग होली नहीं खेलते. होली के दिन कोई रंग-अबीर को हाथ तक नहीं लगाता. इस गांव में सदियों से यही परंपरा चली आ रही है. इसके पीछे गांव के लोग कई तरह की मान्यताओं का हवाला देते हैं.

02

कहा जाता है कि करीब साढ़े तीन सौ साल पहले दुर्गापुर में राजा दुर्गा प्रसाद देव का शासन था. गांव की ऐतिहासिक दुर्गा पहाड़ी की तलहटी पर उनकी हवेली थी. वे काफी जनप्रिय थे. पदमा (रामगढ़) राजा के साथ हुए युद्ध में वे सपरिवार मारे गए. वह होली का ही दिन था. इसी गम में लोग तब से होली नहीं खेलते. ऐसी मान्यता है कि होली खेलने से गांव में अप्रिय घटना घटित होती है. वहीं कुछ अन्य मान्यताएं भी हैं.

03

दुर्गा पहाड़ी को बडराव बाबा के नाम से भी जाना जाता है. ग्रामीणों के अनुसार, बडराव बाबा रंग पसंद नहीं करते हैं. यही कारण है कि उनके नाम पर पूजा में बकरा व मुर्गा भी सफेद रंग का ही चढ़ाया जाता है. बडराव बाबा की इच्छा के विपरीत गांव में रंग-अबीर का उपयोग करने पर उनके क्रोध का सामना गांव को करना पड़ता है. विभिन्न प्रकार की अनहोनी गांव में होती है, जिसमें मनुष्य और जानवरों को हानि होती है.

04

बडराव बाबा नाराज न हों, इसलिए ही गांव में होली नहीं मनाई जाती. होली नहीं खेलने के पीछे कुछ ग्रामीणों का यह भी कहना है कि करीब 200 साल पहले कुछ मल्हार यहां आकर दो अलग-अलग जगहों पर ठहरे थे. परपंरा के विपरीत मल्हारों ने खूब होली खेली. उसी दिन 5 मल्हारों की मौत हो गई. गांव में दो दर्जन से अधिक मवेशी (बैल) मारे गए. अन्य अप्रिय घटनाएं भी हुईँ. इस घटना के बाद से गांव के लोगों ने होली खेलनी हमेशा के लिए बंद कर दी.

05

होली नहीं मनाना केवल गांव की सीमा तक ही प्रतिबंधित है. ऐसा नहीं कि गांव वाले दूसरी जगह होली नहीं खेल सकते. लेकिन होली के दिन अगर दुर्गापुर के लोग दूसरे गांव जाते हैं और उनको पता चल जाता है कि यह लोग दुर्गापुर के हैं तो यह लोग उनकी मान्यताओं का सम्मान करते हुए उन्हें रंग नहीं देते हैं. हालांकि अगर कोई चाहे तो दूसरे गांवों में जाकर होली मना सकता है. कुछ लोग मनाते भी हैं. कोई ससुराल तो कोई मामा के घर या मित्र के यहां तो कोई किसी अन्य रिश्तेदार के घर जाकर होली खेलते हैं.

06

दूर प्रदेशों में रहने वाले युवक भी होली जमकर खेलते हैं. लेकिन जिस वर्ष गांव में रहते हैं, रंग को छूते तक नहीं है. दुर्गापुर आबादी के दृष्टिकोण से बोकारो जिले के कसमार प्रखंड का सबसे बड़ा गांव है. कुल 12 टोला में फैला हुआ है.

07

प्रखंड में मंजूरा के बाद एकमात्र ऐसा गांव है, जो कुल चार सीट में फैला है. एक सीट में, यानी 108 एकड़ में तो केवल दुर्गा पहाड़ी फैली हुई है. केवल दुर्गापुर पंचायत ही नहीं, बल्कि यह पहाड़ी पूरे इलाके की आस्था का केंद्र है. इसके नाम पर पूजा होती है. मन्नत पूरी होने पर बकरा व मुर्गा चढ़ाया जाता है.

08

दुर्गापुर गांव की इस कहानी में कितनी सच्चाई है यह तो हम नहीं बता सकते हैं लेकिन लोगों की मान्यता सालों बाद भी नहीं बदली है. आज भी होली इनके लिए एक डर और खौंफ का पर्व है. होली पर जहां पूरी दुनिया रंगों में डूबी रहती है इसके उलट यहां पूरा गांव और लोग कोरे कागज की तरफ साफ नजर आते हैं.

  • 08

    Holi 2022: इस गांव में नहीं खेली जाती है होली, रंग-अबीर से दूर भागते हैं लोग, जानें क्या है इसके पीछे की कहानी

    रंगों के बिना होली की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. लेकिन झारखंड के बोकारो जिले के कसमार प्रखंड में एक गांव है दुर्गापुर, जहां लोग होली नहीं खेलते. होली के दिन कोई रंग-अबीर को हाथ तक नहीं लगाता. इस गांव में सदियों से यही परंपरा चली आ रही है. इसके पीछे गांव के लोग कई तरह की मान्यताओं का हवाला देते हैं.

    MORE
    GALLERIES