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PHOTOS: अयोध्या के बाद झारखंड के गढ़वा में भी विराजते हैं रामलला! रामनवमी पर उमड़ पड़ते हैं 4 राज्यों के श्रद्धालु

अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण हो रहा है और दर्शनार्थियों के लिए इसे 2024 के जनवरी महीने में खोल दिया जाएगा. इस मंदिर का महत्व इसलिए है कि यही स्थान भगवान श्रीराम की जन्मभूमि है और यहां भगवान का बाल रूप विराजमान है. अयोध्या से करीब 500 किलोमीटर दूर झारखंड के गढ़वा में भी एक मंदिर है जहां राम लला विराजते हैं. मान्यता है कि गढ़वा शहर के स्टेशन रोड स्थित श्रीरामलला मंदिर में लोगों की मनोकामना करनेवाले कभी निराश नहीं होते. (रिपोर्ट व फोटो- चंदन कुमार कश्यप)

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दशकों पहले मुख्यालय में स्थापित रामलला मंदिर से लोगों की अगाध श्रद्धा जुड़ी हुई है. ऐसे तो हर रोज लोगों के दिनचर्या की शुरुआत अपने रामलला के दर्शन के साथ होती है, लेकिन रामनवमी के मौक़े पर मंदिर में श्रद्धालुओं का आवक ज्यादा बढ़ जाती है. रामलला मंदिर में पूजन के साथ रामनवमी की शुरुआत होती है, वहीं अखाड़ों का विसर्जन भी रामलला मंदिर में ही होता है. हो जरूरत किसी काम की, तो बस सुमिरो नाम राम की. जी हां, बीमारी से छुटकारा पाना हो, या संतान प्राप्ति की लालसा हो. राम लला खुद के पास आने वालों की हर मनोकामना पूरी करते हैं.

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कई दशकों पहले स्थापित गढ़वा में राम लला का बाल रूप का दर्शन करने मात्र से पुण्य मिलता है. कहा तो यह भी जाता है कि पूरे देश में मात्र दो स्थानों पर राम लला का बाल रूप देखने को मिलता है, एक अयोध्या और दूसरा गढ़वा में. यहां भगवान राम के बाल रूप की अप्रितम सौंदर्य वाली प्रतिमा अवस्थित है.

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पूजा अर्चना करते हुए अपने उम्र के चौथे पड़ाव में पहुंच चुकीं मंदिर की पुजारन बताती हैं कि मेरे रामलला का दरस पाने गढ़वा सहित झारखंड प्रदेश और पड़ोसी राज्यों के लोग आते हैं. साथ ही खुद का गोद भरने की लालसा लिए आने वाले को रामलला कभी निराश नहीं करते और खुद से उसका बालक बन उसके गोद में विराजते हैं.

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गढ़वा में विराजने वाले रामलला के बारे में किंवदंती बताते हुए मंदिर नवनिर्माण समिति के सचिव बताते हैं कि कुछ दशक पहले तक जब मंदिर के पास एक झोपड़ी हुआ करता था. इसमें एक महात्मा रहा करते थे उसी दौरान पास में ही एक छोटे बच्चे की मौत हो गयी थी. लोग उसे दफनाने के लिए महात्मा जी से कुदाल मांगने गए. सबने उन्हें बताया कि रामलला की मौत हो गयी है, उसे दफनाना है.

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यह सुन कर महात्मा जी ने कहा कि रामलला तो मर नहीं सकते. वह बाहर निकल उस बच्चे के शव के पास पहुंचे और उसे सहलाया. वह उठ खड़ा होता है. उसी वक्त लोग रामलला की जयकारा लगाते हैं और वहां रामलला की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना शुरू होती है. बाद में लोगों के सहयोग से एक मंदिर बनाया जाता है. आज मंदिर को और भव्यता देने की प्रक्रिया जारी है. जिला मुख्यालय में अवस्थित होने के कारण यहां चार राज्यों के लोग आते हैं.

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यहां यूपी, एमपी, छत्तीसगढ़, बिहार सहित झारखंड के अलग-अलग जगहों से लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं. एक बार चोरों के द्वारा भगवान की प्रतिमा की चोरी भी कर ली गई थी, लेकिन भगवान को लेने वाला कोई नहीं मिला. बाद में भगवान पुनः गढ़वा पधारे जिसके बाद से लोगों की आस्था और बढ़ गई. इस मंदिर में पहुंचे लोगों ने बताया कि भगवान राम की लीला अपरम्पार है. वहीं, सूबे के पेयजल स्वक्षता मंत्री मिथलेश ठाकुर ने कहा कि रामनावमी पर गढ़वा जिला में एक अलग ही माहौल होता है, भगवान सब की सुनते हैं.

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    दशकों पहले मुख्यालय में स्थापित रामलला मंदिर से लोगों की अगाध श्रद्धा जुड़ी हुई है. ऐसे तो हर रोज लोगों के दिनचर्या की शुरुआत अपने रामलला के दर्शन के साथ होती है, लेकिन रामनवमी के मौक़े पर मंदिर में श्रद्धालुओं का आवक ज्यादा बढ़ जाती है. रामलला मंदिर में पूजन के साथ रामनवमी की शुरुआत होती है, वहीं अखाड़ों का विसर्जन भी रामलला मंदिर में ही होता है. हो जरूरत किसी काम की, तो बस सुमिरो नाम राम की. जी हां, बीमारी से छुटकारा पाना हो, या संतान प्राप्ति की लालसा हो. राम लला खुद के पास आने वालों की हर मनोकामना पूरी करते हैं.

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