माइनस 10 डिग्री तक के तापमान और भारी बर्फबारी के बीच 6640 मीटर ऊंचे माउंट एल्ब्रस की चोटी पर पहुंचना आसान नहीं था. क्यों 15 अगस्त के टारगेट से चूके पर्वतारोही और कैसे चोटी का सफर तय हुआ? पढ़िए संजय कुमार सिन्हा की रिपोर्ट.
बात ऐसे मिशन की, जिसे हौसले और जज्बे के साथ ही जीता जाता है. पूरे देश ने 15 अगस्त को स्वतंत्रता के अमृत वर्ष में कदम रखा तो तीन भारतीयों की टीम ने 17 अगस्त को यूरोप की सबसे ऊंची चोटी पर पैर रखकर इतिहास रचा. रांची की रहने वाली डॉ. शिप्ती ने यूरोप के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर माउंट एल्ब्रस पर फतेह हासिल की. डॉ. शिप्ती ने 17 अगस्त को यूरोप के सबसे ऊंचे शिखर पर तीन सदस्यीय दल के साथ तिरंगा फहराया. उनके दल में कोलकाता के कृष्णेन्दु दास और राजस्थान के अनिल रूलानिया भी शामिल थे. क्यों यह दल 15 अगस्त को इस चोटी पर तिरंगा नहीं फहरा सका और ये सफर कितना मुश्किल था, जानिए.
इस दल ने जॉर्जिया और रूस की सीमा पर स्थित माउंट एलब्रस पर 18,510 फीट की ऊंचाई पर चढ़ाई की और वहां भारतीय तिरंगा लहरा दिया. इस दल में शामिल रांची की डॉ. शिप्ती और बंगाल के कृष्णेंदु मिलकर मी एंड माउंटेन एडवेंचर ग्लोबल प्रा. लि. नाम की कंपनी चलाते हैं. इसी कंपनी ने इस अभियान का संचालन किया. दल के तीसरे सदस्य राजस्थान के अनिल रूलानिया एक आकांक्षी पर्वतारोही हैं. अब आपको डॉ. शिप्ती के बारे में बताते हैं.
रांची के कोकर की रहने वाली डॉ. शिप्ती दिल्ली के एक निजी स्कूल में चिकित्सक हैं. उनकी दोनों बहनें भी डॉक्टर हैं. आदिवासी मुंडा समाज से ताल्लुक रखने वाली डॉ. शिप्ती ने सेंट जेवियर स्कूल, बोकारो स्टील सिटी से पढ़ाई पूरी की और बेंगलूरु के एक मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री ली है. डॉ. शिप्ती के पिता का नाम मारकुस सिंह और माता का नाम इला रानी सिंह है. उनकी दोनों बहनों ने रिम्स से ही मेडिकल की डिग्री ली है. शिप्ती रांची के अपोलो और सेंटाविटा में भी काम कर चुकी हैं. डॉ. शिप्ती ने नेपाल में भी ट्रैकिंग का प्रशिक्षण लिया है, जो उन्हें एल्ब्रस पर तिरंगा फहराने में काम आया.
शिप्ती की टीम ने तिरंगा कैसे फहराया और दो दिन की देर क्यों हुई, यह जानने से पहले जानिए कि यूरोप की माउंट एल्ब्रस दुनिया की सप्तचोटियों में शुमार है, जिसकी ऊंचाई 6640 मीटर यानि 18,510 फीट है. सभी महाद्वीपों के अपने-अपने सबसे ऊंचे पर्वत शिखर हैं, जिन्हें सप्तचोटी कहा जाता है. शिप्ती ने 9 अगस्त को रूस के एक छोटे से गांव टरस्कॉल से अभियान की शुरुआत की थी, फिर तीनों पर्वतारोही 12 अगस्त को 3770 मीटर की ऊंचाई पर एल्ब्रस के बेसकैंप गाराबासी पहुंचा. लेकिन अगले तीन दिन काफी मुश्किल भरे थे.
15 अगस्त को माउंट एल्ब्रस पर तिरंगा फहराने की योजना थी लेकिन 14 अगस्त की रात ज्यादा बर्फबारी होने से 5100 मीटर की चढ़ाई पूरी करने के बावजूद शिप्ती व टीम को बेस कैंप पर वापस आना पड़ा. 16 अगस्त को अभियान फिर शुरू हुआ, जिसके बाद मास्को के समयानुसार 17 अगस्त की सुबह 8.23 बजे माउंट एल्ब्रस पर तिरंगा लहरा दिया गया. शिप्ती के साथ इस मिशन पर गये कृष्णेन्दु पिछले 20 सालों से पेशेवर पर्वतारोही हैं. (Image : Pixabay)
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