कहते हैं शिक्षक एक मोमबत्ती है जो खुद जलकर पूरे जहां को रोशन करता है. आज हम आपको एक ऐसे ही शिक्षक से मिलवाने जा रहे हैं जिन्होंने गांव में शिक्षा की ऐसी मशाल जलाई है, जिसे कोरोना भी नहीं बुझा सकता है. कोरोना संक्रमण को देखते हुए झारखंड में भी स्कूलों को बंद कर दिया गया है लेकिन यहां एक गांव ऐसा भी है जहां के बच्चों की पढ़ाई में कोई रुकावट नहीं आई है. नामकुम तेतरी मध्य विद्यालय के सहायक शिक्षक राजेश कुमार ने अपनी वैगनआर कार को शिक्षा के प्रचार-प्रसार का माध्यम बना लिया है. वह अपने शिक्षकों की टोली के साथ गांव में जाकर क्लास ले रहे हैं. उनकी इस नेक पहल से बच्चे और अभिभावक दोनों बेहद खुश हैं. रिपोर्ट - अविनाश कुमार
राज्य सरकार के फरमान के बाद सभी स्कूलों के दरवाजे पर ताला लटक रहा है. लेकिन मन में अगर कुछ कर गुजरने की चाह हो तो फिर पढ़ने के लिए क्लासरूम या बेंच की जरूरत नहीं पड़ती है. मन की चाह पेड़ के नीचे या सड़क पर बैठकर भी पूरी की जा सकती है.पेड़ के नीचे बैठे ये बच्चे सरकारी स्कूल के छात्र हैं, जो स्कूल बंद होने के बाद यहीं बैठकर अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर रहे हैं.
तेतरी मध्य विद्यालय के सहायक शिक्षक राजेश कुमार ने इन बच्चों के अंदर पढ़ाई की अलख जगा रखी है. स्कूल बंद होने के बाद बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो इसके लिए राजेश कुमार ने गांव में जाकर पढ़ाई करवाने का फैसला किया। आज गांव की चौपाल हो या पेड़ की छाया - कहीं भी राजेश सर की क्लास सजा लेते हैं.
राजेश सर की यह पाठशाला हर दिन सुबह 9:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक चलती है.राजेश कुमार बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान पहले वीडियो के जरिये बच्चों को पढ़ाने की कोशिश हुई . लेकिन नेटवर्क प्रॉब्लम और गरीब बच्चों के पास स्मार्ट फोन नहीं होने की वजह इसका लाभ ज्यादा से ज्यादा छात्रों को नहीं मिल सका. इसके बाद उन्होंने ये तय किया कि वे खुद छात्रों तक पहुंच कर उनको शिक्षित करने का काम करेंगे.
वैगनआर कार में ही दरी, मास्क, सैनेटाइजर और व्हाइट बोर्ड के साथ राजेश कुमार स्कूल के पोषक क्षेत्र के अधीन पड़ने वाले गांव पहुंच जाते हैं .अब मध्य विद्यालय तेतरी के दूसरे शिक्षक भी उनका सहयोग कर रहे हैं .
राजेश कुमार की इस पाठशाला में हर दिन 50 से 100 तक की संख्या में बच्चे हाजिरी लगाते हैं. छात्र और उनके अभिभावक इस बात से खुश हैं कि कोरोना के कारण उनकी पढ़ाई नहीं थमी.
सरकारी स्कूल और उनके शिक्षकों को लेकर समाज में एक खराब छवि बनी हुई है. ऐसे में इन शिक्षकों द्वारा उठाया गया यह कदम कई लोगों के लिए प्रेरणा है. बिना सरकारी व्यवस्था और सुविधाओं के राजेश कुमार ने अपने बलबूते जो शुरुआत की है वह काफी सराहनीय है.
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