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Abdul Ghaffar Khan Death Anniversary: गांधी जी के दोस्त क्यों थे भारत से निराश

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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Indian Freedom Movement) के अंतिम दिनों 1947 में जब पूरा भारत बंटवारे (Partition of India) की तैयारी कर रहा था. तब कश्मीर पार एक गांधीवादी नेता बंटवारे का विरोध कर रहा था लेकिन उसे यह त्रासदी झेलनी पड़ी. उसे और उसके साथियों को ना चाहते हुए भी पाकिस्तान का हिस्सा बनाना पड़ा. हम बात कर रहें फ्रंटियर गांधी, सीमांत गांधी, बादशाह खान या खान अब्दुल गफ्फार खान (Abdul Ghaffar Khan) की जो गांधीवादी होकर बंटवारे के सख्त खिलाफ थे. उन्हें बटवांरे का दंश बहुत ही अलग तरह से झेलना पड़ा. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

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अब्दुल गफ्फार खान (Abdul Ghaffar Khan) का जन्म 6 फरवरी 1890 को ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के पेशावर के पास एक सुन्नी मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनके पिता बैराम खान ईश्वर भक्ति में लीन रहने वाले शांत मिजाज के इंसान थे. उन्हें राजनैतिक जुझारूपन परदादा अब्दुल्ला खान से मिला जो सत्यवादी तो थे ही उन्होंने भारत की आजादी केलिए कई लड़ाइयां लड़ी थीं. उनके पिता ने उन्हें मिशनरी स्कूल में भर्ती कराया तो उन्हें विरोध झेलना पड़ा. इसके बाद अलीगढ़ से स्नाततक की पढ़ाई की. इसके बाद वे आगे की पढ़ाई केलिए वे लंदन जाना चाहते थे. लेकिन उनकी मां ने उन्हें जाने नहीं दिया और गांव में ही समाज सेवा करने लगे. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

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अब्दुल गफ्फार खान (Abdul Ghaffar Khan) का राजनैतिक सफर 1919 में ही शुरू हो गया जब पेशावर (Peshawar) में मार्शल लॉ लागू किया और शांति प्रस्ताव पेश करने के बाद भी वे गिरफ्तार कर लिए गए. अंग्रेज सरकार उन्हें झूठे आरोप में फंसाना भी चाहा, लेकिन गवाह ना मिलने पर भी उन्हें छह माह की जेल की सजा सुनाई गई. उन्होंने खुदाई खिदमतगार (Khudai Khidmatgaar) नाम का सामाजिक संगठन बनाया जो बाद में राजनैतिक कार्यों में भी शामिल हुआ. खान साहब कहा करते थे कि हर खुदाई खितमतगार की यही कसम होती है कि हम खुदा के बंदे हैं, दौलत या मौत की हमें कदर नहीं है. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

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अब्दुल गफ्फार खान (Abdul Ghaffar Khan) और महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की पहली मुलाकात 1928 में हुई जिसके बाद खान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (Congress) से जुड़ गए. जल्दी ही वे गांधी जी की बहुत ही नजदीकी सहयोगी और मित्र हो गए. दोनों में खूब राजनैतिक चर्चाएं हुआ करती थीं. अहिंसात्मक राजनैतिक विचारों ने दोनों को करीब लाकर खड़ा किया तो स्वतंत्र, अविभाजित और धर्मनिरपेक्ष भारत के सपने को लेकर दोनों ने साथ काम किया. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

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1930 के सत्याग्रह में अब्दुल गफ्फार खान (Abdul Ghaffar Khan) को पाकिस्तान के पंजाब की जेल में रखा गया. यहां उनकी मुलाकात पंजाबी और दूसरे लोगों से हुई. जेल में उन्होंने सिख गुरुओं के ग्रंथ और गीता का अध्ययन किया और उनसे प्रभावित होकर साथी कैदियों ने गीता, कुरान ग्रंथ साहिब सभी का अध्ययन किया. 1931 में उन्हें कांग्रेस (Congress) की अध्यक्षता भी सौंपी गई लेकिन उन्हें यह कह कर मना कर दिया के वे केवल एक सेवक रहना पसंद करेंगे. इसके बाद वे आजादी की लड़ाई (Freedom Movement) के दौरान प्रभावी नेता होने के नाते जेल आते जाते रहे. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

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जब आजादी के साथ धर्म के नाम पर भारत (India) पाकिस्तान के बंटवारे (Partition of India) की बात चली तो अब्दुल गफ्फार खान (Abdul Ghaffar Khan) को पाकिस्तान का विचार ही बेकार लगा. खान और उनके खुदाई खिदमतगार पाकिस्तान में किसी की हालत में नहीं मिलना चाहते थे. यहीं से खान की कांग्रेस से दूरियां बढ़ने लगीं. इसके लिए उन्होंने एक संकल्प जारी किया कि पाकिस्तान की तरह उन्होंने भी अंग्रेजों से पश्तूनों के लिए एक अलग देश की मांग की. अंग्रेजों ने उनकी मांग खारिज कर दी जिसके विरोध में उन्होंने और उनके भाई ने 1947 में हुए नॉर्थवेस्टर्न प्रॉविंस में बंटवारे को लेकर जनमत संग्रह का बहिष्कार कर दिया. बाद में उन्होंने कहा कि आजादी के समय उन्हें भेड़ियों के समाने डाल दिया गया औ भारत से जो भी उम्मीदें थी, एक भी पूरी नहीं हो सकीं. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

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1947 के बाद अब्दुल गफ्फार खान (Abdul Ghaffar Khan) को भारी निराश मन से पाकिस्तान (Pakistan) में रहना पड़ा जहां उन्होंने पख्तून अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लड़ते रहे. वे पाकिस्तान के विरुद्ध स्वतंत्र पख्तूनिस्तान आंदोलन चलाते रहे. इस वजह से वह कई सालों तक जेल में रहना पड़ा. इसके बाद वे अफ्गानिस्तान चले गए. 1970 में भारत (India) आकर उन्होंने भारत भ्रमण किया इसके बाद 1972 में पाकिस्तान लौटे. 1985 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया. 20 जनवरी 1988 को उनका पेशावर में निधन हो गया. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

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    भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Indian Freedom Movement) के अंतिम दिनों 1947 में जब पूरा भारत बंटवारे (Partition of India) की तैयारी कर रहा था. तब कश्मीर पार एक गांधीवादी नेता बंटवारे का विरोध कर रहा था लेकिन उसे यह त्रासदी झेलनी पड़ी. उसे और उसके साथियों को ना चाहते हुए भी पाकिस्तान का हिस्सा बनाना पड़ा. हम बात कर रहें फ्रंटियर गांधी, सीमांत गांधी, बादशाह खान या खान अब्दुल गफ्फार खान (Abdul Ghaffar Khan) की जो गांधीवादी होकर बंटवारे के सख्त खिलाफ थे. उन्हें बटवांरे का दंश बहुत ही अलग तरह से झेलना पड़ा. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

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