आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन में आर्मी के प्रशिक्षित कुत्तों की यूनिट यानी डॉग स्कवाड का बड़ा योगदान रहा है. ये अपनी तेजी और ट्रेनिंग को हूबहू असल में उतारने जैसी कई खूबियों के कारण सेना का अहम अंग बने हुए हैं. इन आर्मी डॉग्स की अहमियत का अनुमान इस बात से लगा सकते हैं कि उन्हें सेना में रैंक भी दी जाती है. हालांकि रिटायरमेंट के बाद आमतौर पर उन्हें दयामृत्यु दे दी जाती रही. सांकेतिक फोटो (pixabay)
सैनिकों की तरह ही सेना में भर्ती किए जा रहे डॉग के लिए भी ये देखा जाता है कि वे शारीरिक तौर पर मजबूत और चुस्ती-फुर्ती से भरे-पूरे हों. आमतौर पर इसके लिए लेब्राडोर, बेल्जियन मैलिनॉयस और जर्मन शेफर्ड को चुना जाता है. ये तेज-तर्रार तो होते ही हैं, साथ ही कम समय में ज्यादा सीख पाते हैं. सांकेतिक फोटो (pixabay)
आर्मी डॉग की ट्रेनिंग अलग तरह से शुरू होती है. इन्हें एकदम से ले जाकर सेना के बीच छोड़ नहीं दिया जाता, बल्कि लगभग 15 दिनों के लिए ये अपने ट्रेनर के साथ ही रहते हैं. इस दौरान चौबीसों घंटे साथ रहने को कई बार marrying-up भी कहा जाता है. इस दौरान कुत्ते अगर ज्यादा आक्रामक हों या फिर उन्हें किसी कारण से सीखने में कोई परेशानी हो या फिर शारीरिक तौर पर उतने फिट न लगें तो उन्हें ट्रेनिंग से अलग कर दिया जाता है. सांकेतिक फोटो (pixabay)
फिलहाल भारतीय सेना के पास ऐसे लगभग 1000 आर्मी डॉग्स हैं. इनमें से लगभग सभी अलग-अलग कामों के लिए प्रशिक्षित हैं लेकिन सर्च और बचाव अभियान में सबको महारथ हासिल है. यहां तक कि उन्हें कई ऑपरेशन्स को जान पर खेलकर अंजाम देने के लिए वीरता पुरस्कार भी मिलते रहे हैं. Remount Veterinary Corps (RVC) में एक शौर्य चक्र और वीरता के लिए मिले ढेरों दूसरे सम्मान सजे हुए हैं. इसके अलावा अवॉर्ड जीतने वाले कुत्तों को हर महीने 15,000 से लेकर 20,000 रुपये मिलते हैं जिसे उनके खाने से लेकर सेहत तक पर खर्च किया जा सके. सांकेतिक फोटो (pixabay)
आर्मी डॉग अपने ट्रेनिंग के बाद ऑपरेशनों से जुड़ जाते हैं और एक समय के साथ उनकी सेना में पोजिशन भी ऊपर होती जाती है. किसी अभियान के दौरान बेहद बहादुरी दिखाने पर डॉग को प्रमोशन भी मिलता है. इसी तरह से इनका रिटायरमेंट भी होता है, जो आमतौर पर 8 से 10 साल के दौरान हो जाता है. सांकेतिक फोटो (pixabay)
अगर कोई डॉग इस दौरान घायल हो जाए और इलाज के बावजूद ठीक न हो सके तो उसे दयामृत्यु दी जाती है. इसके बाद सेना के अधिकारी की तरह सम्मान से ही उनका अंतिम संस्कार किया जाता है. रिटायरमेंट के बाद आर्मी डॉग को दया मृत्यु देना काफी समय से विवादों में रहा. हाल ही में इसमें बदलाव हुआ है. इन्हें सेवानिवृति के बाद डॉग्स के लिए बने ओल्ड-एज होम में दिया जा सकता है. मेरठ के वॉर डॉग ट्रेनिंग स्कूल में ऐसे ओल्ड एज होम की शुरुआत भी हो चुकी है. सांकेतिक फोटो (pixabay)
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