इस समय पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के खतरे से जूझ रही है. वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन (Climate change) के खतरों के संकेत भी दिखने लगे हैं. इनमें से एक बड़ी चिंता का विषय ध्रुवीय बर्फ का पिघलना है जिससे समुद्र का जल स्तर बढ़ने का बहुत बड़ा खतरा सामने है. लेकिन नए अध्ययन के मुताबिक अंटार्कटिका (Antarctica) में बर्फ की चट्टानों (Ice Bergs) के पिघलने से पृथ्वी पर नया हिमयुग (Ice Age) आ सकता है और इस बार यह नियमित हिमयुग चक्र (Ice age cycles) से हटकर होने वाला है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
महासागरों (Oceans) की इन प्रक्रियाओं का नतीजा यह होता है कि इससे ग्रीनहाउस प्रभाव (Greenhouse Effect) कम होने लगता है और पृथ्वी (Earth) के हालात हिमयुग (Ice age) की ओर चले जाते हैं. कार्डिफ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर इयान हॉल का कहना है कि उनके नतीजे अंटार्कटिका (Antarctica) और पृथ्वी की सूर्य की कक्षा से संबंधित जलवायु सिस्टम के प्राकृतिक लय के प्रति दक्षिणी महासगार (Southern Ocean) के प्रतिक्रिया में संबंध स्थापित करते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
कार्डिफ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का यह शोध नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ है जिसमें उन्होंने यह समझने का प्रयास किया है कि पृथ्वी (Earth) पर हिमयुग (Ice Age) की शुरुआत कैसे होती है. हिमयुग चक्र (Ice Age Cycle) के बारे में अभी तक यह जाना जाता है कि इनमें परिवर्तन पृथ्वी (Earth) के सूर्य का चक्कर लगाने वाली कक्षा में हजारों सालों में आने वाले बदलाव की वजह से आते हैं. इस बदलाव से पृथ्वी पर सूर्य (Sun) की ऊर्जा पहुंचने की मात्रा में बदलाव आता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
हिमयुग (Ice Age) वह काल है जब वैश्विक तापमान (Global Temperature) थोड़ा ठंडा होता है और पृथ्वी (Earth) का बहुत सारा हिस्सा ग्लेशियर (Glaciers) और बर्फ की चादर (Icesheets) से ढंक जाता है. अब तक पृथ्वी के इतिहास में पांच बड़े बदलाव आ चुके हैं. जिसमें से सबसे पहला हिमयुग 2 अरब साल पहले शुरू हुआ था. सबसे आखिर का हिमयुग करीब 30 लाख साल पहले शुरू हुआ था और यह आज भी जारी है. यह जानकर कई लोगों को हैरानी हो सकती है कि हम अब भी हिमयुग में ही रह रहे हैं. लेकिन हिमयुग के बारे में रहस्य की बात यह है कि सौरऊर्जा (Solar Energy) में छोटे बदलाव पृथ्वी की जलवायु में इतना नाटकीय बदलाव कैसे ला सकते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
शोधकर्ताओं को विश्वास है कि जब सूर्य (Sun) का चक्कर लगाने वाली पृथ्वी (Earth) की कक्षा जब बिलकुल सही होती है, तब अंटार्कटिका (Antarctica) की बर्फ की चट्टानें (Icebergs) अपनी जगह से दूर जाने लगती हैं और पिघलने लगती हैं इससे दक्षिणी महासागर (Southern Ocean) से बहुत सारी मात्रा में साफ पानी अटलांटिक (Atlantic) में मिलने लगता है. ऐसे में दक्षिणी महासागर खारा होने लगता है तो वहीं उत्तरी अटलांटिक को ताजा पानी मिलने लगता है. इससे महासागरीय धाराओं के प्रवाह में बड़े पैमाने पर बदलाव आने लगते हैं और महासागर बड़ी मात्रा में वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड खींचने लगते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
इस अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने पिछले जलवायु हालातों को फिर से बनाने के लिए बहुत सी तकनीकों का उपयोग किया. इसमें बर्फ की चट्टानों (Icebergs) के पिघलने से आंटार्किका (Antarctica) की चट्टानों के टुकड़े महासागर (Oceans) में गिरने का भी पता लगाया. उन्होंने पाया कि ये टुकड़े (ice-rafted debris) गहरे महासागरीय धाराओं के प्रवाह में लगातार बदलाव ला रहे हैं. कार्डिफ यूनिवर्सिटी के आइडन स्टार ने बताया, “हम यह जानकर चकित थे कि यह घटना पिछले 16 लाख सालों में हर हिमयुग की शुरुआत के समय होती है. दक्षिणी महासागर (Southern Ocean) और अंटार्कटिका के बीच इस जलवायु घटना के भूगर्भीय प्रमाण मिलना काफी उत्साहजनक है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
पिछले तीस लाख सालों में पृथ्वी (Earth) नियमित रूप से हिमयुग (Iceage) के हालातो में जाती रही है. फिलहाल हम इंटरग्लेसियल (Interglacial) काल में रह रहे हैं जहां तापमान तुलनात्मक रूप से गर्म हैं. लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि वैश्विक तापमान के बढ़ने से हिमयुग चक्र की प्राकृतिक लय बिगड़ सकती है. इसका कारण यह है कि दक्षिणी महासागर (Southern Ocean) अंटार्कटिका (Antarctica) की बर्फ की चट्टानों के लिए बहुत गर्म हो जाएगा जिससे महासागरों की धाराओं के प्रवाह में बदलाव शुरू हो जाएगा जो हिमयुग की शुरुआत कर देगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)