उपग्रह तकनीक (Satellite Technology) या आज दुनिया की बहुत सारी सुविधाएं देती हैं. इतना ही नहीं उनसे कई समस्याओं का समाधान मिला है. बेहतर संचार (communication), धरती के मौसम, धरती के अंदर मौजूद स्रोत और कई जलवायु संबंधी कई जानकारियां आज हमें सैटेलाइट तकनीक के जरिए मिलती हैं. लेकिन पिछले कई दशकों में भेजे गए अधिकतर सैटेलाइट के हिस्से सैटेलाइट का काम पूरा होने के बाद पृथ्वी (Earth) की ही कक्षा (Orbit) में कचरे के तौर पर घूम रहे हैं. आखिर इनका काम खत्म होने के बाद ये पृथ्वी पर नीचे क्यों नहीं गिरते हैं.(प्रतीकात्मक तस्वीर: NASA)
ऐसे सवालों के जवाब उपग्रह (Satellite) से शुरू होते हैं. उपग्रह वे वस्तु (Object) होते हैं जो किसी ग्रह का चक्कर लगाते हैं. इन उपग्रह की अपनी एक कक्षा होती है जो उपग्रह के वजन से ज्यादा ग्रह के वजन पर निर्भर करती है. यह निर्धारण पूरी तरह से गुरुत्व (Garvity) से होता है. उपग्रह दो तरह के होते हैं प्राकृतिक (Natural) और कृत्रिम (Artificial) जहां चंद्रमा जैसे प्राकृतिक उपग्रह मानव जीवन के लिए बहुत उपयोगी नहीं होते हैं, लेकिन उनका प्रभाव मानव जीवन पर जरूर होता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
कृत्रिम उपग्रहों (Artificial Satellites )को बीसवीं सदी के मध्य से अंतरिक्ष में भेजेना शुरू किया गया. यह एक तरह का अंतरिक्ष यान (Space Probe) होता है जो विभिन्न उद्देश्यों के लिए भेजा जाता है. पहला सैटेलाइट 1957 में रूस (Russia) ने लॉन्च किया था. इसके बाद 1958 में अमेरिका ने सैटेलाइट भेजा था. तब से अब तक सैटेलाइट बड़े होते गए और उनकी सेवाओं में भी वृद्धि होती गई. इनमें अमेरिका का स्कयलैब और रूस के इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के बाद वर्तमान में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन तक शामिल हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
सैटेलाइट (Satellites) के साथ दूरसंचार, टेलीविजन, लंबी दूरी के दूरभाष जैसी सुविधाओं के साथ मौसम की जानकारी, भूगर्भीय गतिविधियों की जानकारी, इंटरनेट सेवाएं, सैन्य निगरानी, शोधकार्य जैसे बहुत से कार्य जुड़ने लगे. इंटनरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में तो बहुत सारी ऐसी प्रयोगशालाएं हैं जहां अंतरिक्ष यात्री काम करते है. ऐसे में सैटेलाइट के आकार के साथ उनकी संख्याएं भी बढ़ने लगीं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: @ISS_Research)
नासा ( NASA) के मुताबिक कृत्रिम सैटेलाइट (Artificial Satellites) के चार प्रमुख हिस्से होते हैं. सोलर सिस्टम ऊर्जा प्रदान करता है. एक हिस्सा उसके बाकी हिस्सों का नियंत्रण करता है. इसके साथ ही एंटीना सिस्टम होता है जो पृथ्वी से जानकारी लेने और प्रदान करने का काम होता है. बाकी सैटेलाइट के कार्य से संबंधित उपकरण होते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
सबसे अहम सवाल यह है कि सैटेलाइट (Satellite) पृथ्वी (Earth) पर क्यों नहीं गिरते हैं. काम बंद होने के बाद सैटेलाइट कुछ समय तक तो अपनी कक्षा (Orbit) में ही घूमते रहते हैं. इनकी गति और आवेग कोण के कारण ये काफी समय तक कक्षा में बने भी रहते हैं लेकिन धीरे धीरे इनके टुकड़े होने लगते हैं और बहुत सारे टुकड़े कक्षा के बाहर आकर पृथ्वी की ओर गिरने लगते हैं. गिरते समय ये जलकर राख हो जाते हैं और यह राख वायुमंडल (Atmosphere) में मिल जाती है. लेकिन बहुत से टुकड़े कक्षा में ही घूमते रहते हैं. इस तरह से सैटेलाइट कभी पृथ्वी पर नहीं गिर पाते हैं. उनके गिरने वाले टुकड़ों का वही हाल होता है जो उल्कापिंडों का होता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: NASA)
सैटेलाइट (Satellites) और उन्हें प्रक्षेपित करने वाले रॉकेट (Rocket) के टुकड़े अंतरिक्ष में पृथ्वी (Earth) की कक्षा में ही तेजी से चक्कर लगाते हैं. ये न केवल पृथ्वी की निचली कक्षाओं में घूम रहे सैटेलाइट के लिए खतरनाक हैं बल्कि सुदूर अंतरिक्ष या चंद्रमा(Moon) और मंगल ( Mars) जैसे अन्य बड़े अभियानों के रास्ते आकर उनके विनाश की वजह तक बन सकते हैं. इसलिए इस कचरे को दूर करना एक बहुत ही बड़ी चुनौती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
पहली बार इतनी बोल्ड नजर आईं शाहिद कपूर की पत्नी, वायरल हुईं मीरा राजपूत की ये PICS
19 जनवरी : 55 साल पहले देश को मिली पहली और इकलौती महिला पीएम
पुण्यतिथिः विवाद कहें या साज़िश! 6 थ्योरीज़ कि कैसे पहेली बन गई ओशो की मौत?
Happy Birthday Varun Tej: 10 साल की उम्र में शुरू की थी एक्टिंग, ऐसा है वरुण तेज का फिल्मी सफर!