चमगादड़ों पर हुए नए अध्ययन ने इस धारणा को तोड़ा है कि उनकी सुनने की क्षमता हमेशा एक ही रहती है. पाया गया है कि इंसानों सहित अन्य स्तनपायी जीवों की तरह उनमें भी उम्र के साथ सुनने की क्षमता कम हो जाती है. उनके सुनने का तरीका अन्य स्तनपायी जीवों से अलग होने के बाद भी ऐसा पाया गया है.
जहां बहुत से स्तनपायी जानवर उम्र के साथ सुनने की क्षमता खो देते हैं, चमगादड़ों के बारे में माना जाता था कि उनके साथ ऐसा नहीं होता है. इसकी वजह उनकी प्रतिध्वनि के द्वारा स्थिति को पहचानने की क्षमता को माना जाता था. लेकिन इजराइल की तेल अवीव यूनिवर्सिटी की अगुआई में शोधकर्ताओं की टीम ने पाया है कि चमगादड़ भी प्रायः बढती उम्र के साथ सुनने की क्षमता इंसानों सहित अन्य स्तनपायी जानवरों की तरह कम हो जाती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
फिर भी चमगादड़ बहुत ही आवाज करने वाली कॉलोनी में रहती हैं जिससे किसी भी इंसान या अन्य स्तनपायीजीव की सुनने की क्षमता पर बहुत ज्यादा बुरा असर देखने को मिलता है. संभव है कि ऐसा होने के पीछे भी उम्र के साथ उनकी सुनने की क्षमता सीमित हो जाने के कारण विकसित हुई आदत के कारण हुआ होगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
तेल अवीव यूनिवर्सिटी के न्यूरोइकोलॉजिल्ट और अध्ययन के वरिष्ठ लेखक योसी योवेल ने बताया कि जहां उच्च आवृत्ति से सुनना कई जानवरों को जिंदा रहने में मददागार होता है. प्रतिध्वनि के आधार पर स्थिति निश्चित कर जिंदा रह पाने वाली चमगादड़ अपने वातारवण में दिशा निर्धारण के लिए भी निर्भर करती हैं. लेकिन अब तक किसी भी अध्ययन में उम्र का चमगादड़ की सुनने की क्षमता पर प्रभाव का व्यवस्थित अध्ययन नहीं किया गया है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
वैज्ञानिकों ने 47 साल के जंगली मिस्र के फ्रूट बैट (रॉरेटस एजिटियाकस) नाम के चमगाद़ड़ का अध्ययन कर उसके डीएनए में उम्र से संबंधित रासायनिक मार्कर के जमाव का मापन किया और उनके मस्तिष्क की निगरानी कर उनकी सुनने की क्षमता का ध्वनि की पिच और मात्रा के जरिए अध्ययन किया. विश्लेषण से पाया गया है कि इंसानों की तरह ही उच्चतर ध्वनि आवृत्तियों में उम्र बढ़ने के साथ ही सुनने की क्षमता में कमी स्पष्ट रूप से आ जाती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
इतना ही नहीं शोधकर्ताओं ने इंसानों की ही तरह चमगादड़ों में हर साल एक डेसिबल की सुनने की क्षमता गंवाने की दर पाई. आके के परीक्षणों में पाया गयाहै कि चमगादड़ उम्र ढलने के साथ सुनने की क्षमता की प्रक्रिया में उपयोग में आने वाली श्रवण तंत्रिका प्रणाली की गति में भी कमी आ जाती है. इंसानों में भी इस तरह की आवाज समझने में रुकावट की समस्या देखने को मिलती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
इसका कारण यह है कि चमगादड़ लगातार उच्च किस्म के शोर के वातावरण में रहते हैं. शोधकर्ताओं ने उनकी गुफाओं में माइक्रोफोन रख कर पाया कि चमगादड़ लागातर 100 डेसिबल से भी अधिक के शोर का सामना करते हैं जो मोटरसाइकल के शोर के बराबर है. लेकिन सबसे अधिक शोर कम आवृति पर होता है जिसमें चमगादड़ों में कोई उम्र से संबंधित सुनाई देने की क्षमता में हानि नहीं पाई गई. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)