जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का असर वैसे तो पूरी दुनिया में हो रहा है, लेकिन यह उन इलाकों में ज्यादा दिख रहा है जिनसे इंसानों का सीधा और ज्यादा संपर्क (Direct interference of Humans) है, वहीं कुछ प्रभाव अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छेद के रूप में भी दिखा है, जहां इंसान की पहुंच तो नहीं है, लेकिन उसके द्वारा पैदा किए प्रदूषक सबसे ज्यादा प्रभावी रहे हैं. नए अध्ययन में पता चला है कि अमेजन के घने जंगलों (Dense Forests of Amazon) के वे इलाके जहां इंसानी पहुंच नहीं है, वहां भी जलवायु परिवर्तन का असर हुआ है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
साइंस एडवांस में प्रकाशित इस अध्ययन में कहा गया है कि पिछले चार दशकों से गर्म और शुष्क हालात के कारण अमेजन के वर्षावनों (Amazon Rainforests) के पक्षियों (Birds) के शरीर का आकार घटता जा रहा है, लेकिन उनके पंखों का आकार बढ़ता जा रहा है. माना जा रहा है कि ये बदलाव खास तौर पर जून से नवंबर तक के सूखे मौसम में पोषण और शारीरिक चुनौतियों की प्रतिक्रिया के कारण हुए हैं. इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और इंटीग्रल इकोलॉजी रिसर्च सेंटर के इकोलॉजिस्ट विटेक जिरिनेक का कहना है कि उन्होंने सबसे बड़ी बता यही लगी कि यह सब कुछ मानव जनित व्यवधानों से बहुत दूर दुनिया के सबसे बड़े वर्षावनों में हो रहा है. यह COP26 के अंतिम दिन में विचार करने योग्य बात है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
इस अध्ययन के लिए जिरिनेक और उसने साथियों ने 15 हजार पक्षियों (Birds) का अध्ययन किया जो पिछले 40 सालों के फील्डवर्क में पकड़े गए और उनका वजन लेकर और मापन कर, टैग लगा कर छोड़ दिया एक पक्षियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया. उन्होंने पाया कि लगभग सभी पक्षी 1980 के बाद से भार में हलके हो गए हैं. अधिकांश प्रजातियों(Species) ने औसतन दो प्रतिशत भार हर दशक में गंवाया है जिसका मतलब है कि यदि ,किसी प्रजाति का भार 1980 के दशक में 30 ग्राम था, अब उसका औसत भारत 27.6 ग्राम रह गया होगा. ये आंकड़े किसी जगह विशेष के ना होकर वर्षावन (Amazon Rainforests) के विशाल क्षेत्र के थे. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
वैज्ञानिकों ने कुल 77 प्रजातियों की पड़ताल की जिनके आवास ठंडे गहरे वनों से लेकर मध्यम वनस्पति वाले गर्म जंगलों (Forests) तक थे. मध्य वनस्पति वाले जंगलों में उच्च स्थानों वाले पक्षी (Birds) जो ज्यादा उड़ते हैं और जिनका गर्मी से ज्यादा सामना होता है. ऐसे जीवों की शरीर के भार और पंखों के आकर में प्रमुख रूप से बदलाव हुआ है. टीम ने अवधारणा दी है कि यह ऊर्जा के दबाव (Energy Pressure) के अनुकूल ढलने के प्रयास का नतीजा है. इन ऊर्जा के दबावों में फलों और कीट स्रोतों की घटती उपलब्धता और ऊष्मीय बोझ जैसे कारक शामिल हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
जिरिनेक का कहना है कि इसके पीछे सैद्धांतिक कारण है कि क्यों जलवायु के गर्म होने दौरान छोटा आकार के पक्षियों (Birds) के लिए फायदेमंद होता है. वे खुद को ठंडा बेहतर रख सकते हैं, लेकिन पंखों के बड़े आकार की व्याख्या मुश्किल है. इसलिए शोधकर्ताओं ने विंग (Wings) लोडिंग का सिद्धांत का प्रस्ताव दिया है. विशाल पंख भार से पंख का अनुपात कम कर देते हैं जिससे ज्यादा कारगर उड़ान बनती है, जैसा कि एक पतले आकार और लंबे पंख वाले ग्लाइडर यान के साथ होता है जो कम ऊर्जा (Energy) से उड़ान भर सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
भार-पंख के अधिक अनुपात के लिए पंखों (Wings) को बार बार या तेजी से पंख फड़फड़ाने की जरूरत होती है जिससे अधिक ऊर्जा (Energy) का उपयोग होता है और मेटाबॉलिक ऊष्मा (Metabolic Heat) का उत्पादन होता है. जिरिनिक का कहना है कि यह अध्ययन यह बताने के लिए नियोजित नहीं किया गया था कि क्या ये बदलाव प्राकितक चुनाव के द्वारा संचालित हुए थे जो जेनेटिक बदलाव का नतीजा थे, या फिर क्या ये उपलब्ध स्रोतों के आधार पर अलग वृद्धि स्वरूप का नतीजा था. जिरिनिक का मानना है कि दोनों ही संभव है. लेकिन इस बात के अच्छे प्रमाण है कि छोटे अंतराल में विकास हो सकता है. इसका बड़ा उदाहरण अफ्रीकी हाथियों में बिना गजदंत वाले हाथियों का विकसित होना है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
इस अध्ययन के सहलेखक और लुसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी के फिलिप स्टूफर बताते हैं कि अमेजन (Amazon Rainforests) के पक्षी (Birds) काफी अच्छी स्थिति में हैं इसलिए जब इनकी जनसंख्या के हर जीव कुछ ग्राम हलका हो गया तो यह बहुत महत्वपूर्ण है. अब वे बढ़ती गर्मी और शुष्क हालात वाले वातावरण से कितने अच्छे से निपटते हैं भविष्य के लिए यह एक खुला सवाल है. शोधकर्ताओं का विश्वास है कि दुनिया भर में दूसरी प्रजातियां भी इसी तरह के दबाव झेल रही हैं, लेकिन उनका दस्तावेजीकरण नहीं हुआ है. ऐसा केवल पक्षियों के साथ ही नहीं हो रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
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