पर्यावरण और कृषि को एक साथ मदद करने में बहुत कम ही जीव काम आते हैं. जमीनी भंवरे ऐसे ही जीव हैं जो फसल खराब करने वाले कीड़े खाने के साथ ही खरपतवार के बीज भी खाते हैं. नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के कारण इन भंवरों का भविष्य कैसा होगा यही जानने का प्रयास किया है.
भविष्य में जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसे भंवरों का क्या हाल होगा यह कोई छोटा नहीं बल्कि गहन विषय है. दिखाई नहीं देते हैं लेकिन भंवरों का प्रभाव कितना गहरा है यह इसी से जाना जा सकता है कि उत्तरी अमेरिका में जमीन पर रहने वाले करीब दो हजार प्रकार के भंवरे फसलों का खाने वाले कीड़ों की शिकार करते हैं और पास की जमीन में खरपतवार के बीजों को भी खा जाते हैं. पेन स्टेट के नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पड़ताल कर पाया है कि जहां कुछ भंवरे भविष्य में अच्छे से पनप सकेंगे तो वहीं कइयों के लिए जिंदा रह पाना भी मुश्किल हो सकता है. यह अंतर भंवरों की विशेषताओं और उनके आवास पर निर्भर करता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
प्रोफेसर टोंग कियू का कहना है कि जलवायु परिवर्तन महासागरों में कोरल रीफ से लेकर जमीनों पर पेड़ों तक सब कुछ प्रभावित करता है. लेकिन इस बारे में कम जानकारी है कि उसका कीटों पर क्या असर होता है. जमीनी भंवरे हर जगह देखने को मिल जाते हैं. वे पौधों का नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों और खरपतवार के बीजों को खा लेते हैं. उनका पारिस्थितिकी तंत्र पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
प्रोफेसर कियू और उनके सहयोगियों ने यह पड़ताल करने का फैसला किया कि जमीनी भंवरे कैसे पर्यावरणीय बदलाव के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करेंगे. इसके लिए उन्होंने उत्तर अमेरिका महाद्वीप में जगह जगह से जमा किए गए आंकड़ों का अध्ययन किया. टीम ने प्रजातियों का एक समूह के तौर पर अध्ययन उनके पसंद के आवास, शरीर के आकार, और उनकी उड़ने, खोदने, चढ़ने या दौड़ने की क्षमता जैसे गुणों के आधार पर किया. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
उन्होंने नेशनल इकोलॉजिकल ऑबजर्वेटरी नेटवर्क (एनईओएन) की 136 प्रजातियों और उत्तर अमेरिका पर अन्य अध्ययनों को एक प्रतिमान में दूर संवेदी आवासीय विशेषताओं से आंकड़ों को मिलाया और आवासीय बदालाव के आधार पर जलवायु जोखिम की गणना की. विश्लेषण से पता चला कि कम चलने वाले भंवरों की प्रजातियां, जो नहीं उड़ती हैं, समय के साथ कम हो सकती हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
लेकिन शोधकर्तायों ने यह भी बताया कि आवासीय संरक्षण जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम कर सकता है और कुछ इलाकों में तो चलन को भी पलटने का काम कर सकता है. उन्होंने पाया कि ना उड़ने वाली शिकारी प्रजातियां जो कि कीड़ों का नियंत्रित करने वाले संवेदनशील एजेंट होते हैं सूखे और गर्म इलाकों में समय के साथ कम हो सकते हैं. लेकिन यहां शिकारी प्रजातियां कम होंगी वहां फसल खाने वाले कीड़े ज्यादा होंगे जिसका फसलों पर असर होगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
शोधकर्ताओं का कहना है कि आवासीय हालात भंवरों की जनसंख्या बदलाव में बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं और यहां तक कि ये चलन तक को पलटने में सक्षम हैं. घने पौधे और गिरे हुए पड़ों के तने जैसे आवास ऐसे सूक्ष्म जलवायु के हालात प्रदान करते हैं जो इस प्रभाव को कम करने में मदद करते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
ग्लोबल इकोलॉजी एंड बायोजियोग्राफी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि शोधकर्ता उम्मदी करते हैं कि संरक्षण जीवविज्ञानी इस जानकारी और उनके बनाए ऑनलाइन नक्शे का उपयोग कीटों के सामान्य आवासों का बेहतर प्रबंधन में उपयोग कर सकते हैं. जमीनी भंवरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत ही उपयोगी होते हैं लेकिन आम आदमी को दिखाई नहीं देते हैं. अध्ययन में यह बताया गया है कि उनका कृषि पारिस्थितिकी तंत्र पर कितना बड़ा और विस्तृत प्रभाव है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)