जब बच्चा पैदा होने वाला होता है, तब उसकी माता पिता (Parents) को यह चिंता रहती है कि उनका बच्चा हर तरह से स्वस्थ (Healthy) हो. बच्चे की गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान सभी माता पिताओं को यह डर भी सताता रहा है कि कहीं उनके बच्चे में की डीएनए (DNA) की खराबी न हो जिससे बाद में उन्हें परेशानी हो. इसका जवाब डिजाइनर बेबी (Designer Baby) अब निकट भविष्य में विज्ञान शिशुओं (Babies) के हर पहलुओं को नियंत्रित कर सकेगा. . (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
डिजाइनर बेबी (Designer Baby) वह शिशु होता है जिसकी जीन्स (Genes) में बदलाव किया गया हो. आमतौर पर ऐसा बदलाव तक किया जाता है जब कि बीमारी से जुड़ी जीन्स को हटाना हो या उसे बदलना हो. यह बदलाव या तो युग्मनज (Zygote) में किए जाते हैं या फिर शिशु की जीन्स को सीधे ही बदल दिया जाता है. इस तरह शिशुओं के गुणों, चेहरा, आकार वगैरह काफी कुछ बदले जा सकते हैं. ऐसे कॉस्मेटिक बदलाव के साथ पैदा किए गए शिशुओं को डिजाइनर बेबी कहा जाता है. विवादास्पद होने के बाद भी डिजाइनर बेबी की मांग बढ़ रही है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
डिजाइनर बेबी (Designer Baby) की कीमत (Cost) भी बाजार और हेल्थ केयर के आंकलन के अनुसार तय होती है. इसके अलावा देश, हॉस्पिटल, लैब और सेवा के स्तर भी कीमतें तय निर्धारण में भूमिका निभाते हैं. एक अनुमान के मुताबिक इन वाइट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) की औसत कीमत छह लाख रुपये से ज्यादा होती है. इसमें दवाओं और अन्य खर्च दो से साढ़े तीन लाख रुपये अतिरिक्त हो सकता है. प्री इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस (Pre Implantation Genetic Diagnosis) की औसत कीमत दो लाख 60 हजार से ज्यादा की होगी. वहीं जेंडर सिलेक्शन (Gender selection) यानि लड़का या लड़की चुनने की कीमत 13 लाख से ज्यादा की होती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
डिजाइनर बेबी (Designer Baby) या शिशुओं में ऐसे बदलाव फिलहाल बहुत से देशों में कानूनी तौर पर मान्य (illegal) नहीं हैं. इसका एक उदाहरण जन्म से पहले लिंग (Gender) की जांच कर यह पता लगाना है कि गर्भ में पल रहा शिशु नर है या मादा, जबकि यहां तो लिंग से लेकर अन्य सभी गुणों का निर्धारण युग्मनज (Zygote) के स्तर पर ही कर दिया जाता है. इसके अलावा जेनेटिक स्तर पर किसी तरह का बदलाव यानि जीन म्यूटेशन (Gene Mutation) का भी पुरजोर विरोध हो रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
अगर समाज इस तकनीक को अपनाता है और डिजाइनर बेबी की अवधारणा को मान्यता देना स्वीकार कर लेता है तो हमें और तरह की कीमतें भी चुकानी होगीं. इसमें गलतियों का जोखिम बहुत है. 2019 में एक चीनी वैज्ञानिक ने जेनिटिकली मॉडिफाइड जुड़वा बच्चों को पैदा करने में मदद की थी. अभी जेनिटिक बदलाव तो किया जा सकते हैं, लेकिन यह दावा नहीं किया जा सकता कि यह पूरी तरह से नियंत्रित काम होगा. यहां गलतियों के गंभीर नतीजे भी मिल सकते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
अगर भविष्य में लोग अपने बच्चों (babies) में बदलाव करवाने लगें तो उनके पास तो बदलाव के चुनाव बहुत होंगे, लेकिन यह पैदा होने वाले बच्चों के अधिकारों (Rights) का उल्लंघन होगा. यह भी बहस हो रही है क्या माता पिता (Parents) का बच्चों में पसंदीदा मशीन की तरह बदलाव करना उचित होगा या नहीं. साथ ही प्राकृतिक प्रक्रियाओं (Natural Processes) में इंसान को किस हद तक दखल देने का अधिकार है या यह कितना उचित है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
इस तकनीक को अपनाने से अमीरों (Riches) को तो इससे संबंधित तकनीकों का उपयोग करने का मौका मिल जाएगा, लेकिन गरीबों (Poors) के लिए इनका उपयोग नामुमकिन सा ही रहेगा. धीरे धीरे ऐसा समय आ जाएगा अगर डिजाइनर बेबी (Designer Baby) और उससे संबंधित इन तकनीकों का सही उपयोग नहीं किया गया तो अमीर और गरीब के बीच आर्थिक के अलावा नस्ली अंतर तक आ सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)