ताजमहल: बीते कुछ सालों से ये मुद्दा बहुत गर्म है. ताजमहल को लेकर कुछ हिंदू और मुसलमान लोगों में आपसी मतभेद है. जहां मुसलामानों का मानना है कि सत्रहवीं शताब्दी में अपनी पत्नी के लिए प्यार की निशानी के रूप में मुगल बादशाह शाहजहां ने यह मकबरा बनवाया था, वहीं कुछ हिन्दुओं का यह दावा है कि ताजमहल असल में एक शिव मंदिर था. इसके लिए 2015 में आगरा कोर्ट मरण एक पेटीशन भी दाखिल की गई थी.
प्रह्लादपुरी मंदिर (पाकिस्तान): ये मंदिर पाकिस्तान के मुल्तान शहर में था. कहा जाता है कि इसे हिरन्यकश्यप के बेटे भक्त प्रह्लाद ने नरसिंह अवतार के सम्मान में बनवाया था. लेकिन 1992 में जब भारत में बाबरी मस्जिद तोड़ी गई, उसके असर के रूप में पाकिस्तान के लोगों ने यह प्राचीन हिंदू मंदिर नष्ट कर दिया.
कुतुब मीनार: ताजमहल की ही तरह कुतुब मीनार को लेकर भी कुछ आपसी मतभेद हैं. जहां इसे 12वीं शताब्दी में इल्तुतमिश की बनाई हुई मीनार के रूप में जाना जाता है, वहीं कुछ हिंदू मानते हैं कि ये एक समय में हिंदू धर्म का एक प्रसिद्द विष्णु मंदिर था. मीनार के हिंदू खगोलशास्त्रियों द्वारा प्रयोग की गई प्रयोगशाला होने का दावा भी किया गया.
गिरनार मंदिर: गुजरात के जूनागढ़ में जैन धर्म का एक बहुत लोकप्रिय मंदिर है, गिरनार मंदिर. पहाड़ी पर बसा यह जैन मंदिर जैन आस्था का प्रतीक है. उस धर्म के लोगों का मानना है कि तीर्थंकर नेमिनाथ ने वहीं मोक्ष की प्राप्ति की थी. लेकिन हिंदू धर्म के कुछ लोग मानते हैं कि वह स्थान सदियों पुरानी हिंदू मान्यता का प्रतिक है जहां भगवन दत्तात्रेय खुद वास करते हैं. उनका कहना है कि जैनियों ने अपने धर्म को फैलाने के लिए गैर-कानूनी रूप से वहां मंदिर बना लिया है.
जेरुसलम(इजराइल) इजराइल और फिलिस्तीन के बीच पिछले कुछ समय से लड़ाई एक खतरनाक रूप ले चुकी है. चाहे सीरिया हो या गाजा पट्टी, इस लड़ाई का असर पूरे मिडल ईस्ट पर नजर आ रहा है. जेरुसलम इजराइल में बसा एक छोटा सा शहर है जो अपनी धार्मिक आस्था के लिए एक नहीं तीन धर्मों में पूज्यनीय है. यहूदियों का धार्मिक स्थान 'येरुसलम' अरबी भाषा में अल-कुदुस कहा जाता है. कहा जाता है कि ईसाईयों के मसीहा येशु का जन्म यहां हुआ था. वो जन्म से यहूदी थे. वहीं अरबी उन्हें इस्लाम का एक पैगम्बर भी माना जाता है. इसीलिए ये तीनों धर्म उस धार्मिक स्थान पर अपना आधिपत्य जमाए रखना चाहते हैं.
तारिखानेह मंदिर-मस्जिद (ईरान): दमघन, ईरान में बसा ये पारसी सूर्य मंदिर वहां की इस माइनॉरिटी कम्युनिटी के लिए एक धार्मिक स्थल था. लेकिन 8वीं सदी में पारसी राजा सस्सानिद की सत्ता गिर जाने के बाद इसे तोड़कर एक मस्जिद में तब्दील कर दिया गया है. इस हिसाब से इसे ईरान का सबसे प्राचीन मस्जिद माना जाता है. समय-समय पर पारसी अपने इस मंदिर को वापस पाने के लिए कोशिश करते दिखे हैं, लेकिन बहुत कम संख्या में होने की वजह से उन्हें हमेशा ही दबा दिया गया.nauk
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