ए, बी, ओ, एबी...निगेटिव-पॉजिटिव, ऐसे कई तरह के ब्लड ग्रुप्स के बारे में सबने पढ़ा-सुना होगा लेकिन एक और ब्लड ग्रुप है जो पूरी दुनिया में बहुत ही कम लोगों का है. गोल्डन ब्लड ग्रुप के नाम से इस ग्रुप को सबसे रेयर ब्लड माना जा रहा है. इस दुर्लभतम ब्लड ग्रुप की अपनी खासियतें हैं तो कई बार रेयर होने की वजह से ये जानलेवा भी साबित हो जाता है.
गोल्डन ब्लड का असल नाम आरएच नल (Rh null) है. सबसे रेयर होने की वजह से शोध कर रहे वैज्ञानिकों ने इसे गोल्डन ब्लड नाम दिया. साल 1961 से पहले डॉक्टरों को लगता था कि खून में Rh फैक्टर के अभाव में कोई भी इंसान जिंदा नहीं रह सकता है. 1961 में इस ब्लड ग्रुप का पहला मामला सामने आया, जो एक ऑस्ट्रेलियन महिला में पाया गया.
खून में Rh फैक्टर को ऐसे समझ सकते हैं. खून RBCs यानी लाल रक्त कणिकाओं से मिलकर बनता है. इनपर प्रोटीन की एक पर्त होती है, जिसे एंटीजन के नाम से जानते हैं. हर ब्लड ग्रुप में उसी नाम का एंटीजन होता है. किसी व्यक्ति का ब्लड ग्रुप उसी एंटीजन के आधार पर पहचाना जाता है. आपका ब्लड ग्रुप रेयर की श्रेणी में आएगा अगर आपके खून में एंटीजन नहीं हैं जो लगभग 99% लोगों में होते हैं.
ब्लड ट्रांसफ्यूजन यानी खून चढ़ाने की जरूरत होने पर किसी व्यक्ति का ब्लड ग्रुप पता होना जरूरी है. निगेटिव ब्लड ग्रुप वाले इंसान को Rh पॉजिटिव खून नहीं चढ़ाया जा सकता है. ऐसा करने पर शरीर में एंटीजन की उपस्थिति की वजह से पाए जाने वाले एंटीबॉडीज चढ़ाए जा रहे खून को फॉरेन पार्टिकल मान लेते हैं और उसे स्वीकार नहीं करते. ऐसे में हालात जानलेवा हो सकते हैं.
रेयरेस्ट होने और किसी भी ब्लड ग्रुप को चढ़ाए जा सकने की वजह ये खून बेशकीमती होता है. इसपर खतरा देखते हुए अस्पताल में इस ब्लड ग्रुप के लोगों का नाम-पता लिए बिना खून जमा करवाया जाता है. हालांकि कई ऐसे केस भी सामने आए हैं, जिसमें शोध के लिए वैज्ञानिकों ने या बड़े-बड़े लैबों ने ऐसे लोगों का नाम-पता जानने की कोशिश की है.
अब तक केवल 43 लोग इस ब्लड ग्रुप के पाए गए हैं. इनमें ब्राज़ील, कोलंबिया, जापान, आयरलैंड और अमरीका के लोग शामिल हैं. रेयरेस्ट होने और सेम ब्लड ग्रुप को ही स्वीकार कर पाने की वजह से डॉक्टर इन लोगों को लगातार रक्तदान करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं ताकि जरूरत पड़ने पर ये खून उन्हीं के काम आ सके. इसकी एक वजह ये भी है कि इतने कम लोगों के इस ब्लड ग्रुप का होने की वजह से खून चढ़ाने की जरूरत होने पर एक देश से दूसरे देश तक खून का पहुंचाया जाना लगभग नामुमकिन है. ऐसे में अपना ही रक्त डोनेट कर बैंक बनाया जा सकता है जो इमरजेंसी में काम आ सके.
एक और ब्लड ग्रुप भी है, जिसे बॉम्बे ब्लड ग्रुप के नाम से जाना जाता है. मुंबई में 1952 में इसका पहला मामला सामने आया, यही वजह है कि इसे बॉम्बे ग्रुप नाम दिया गया. एक मिलियन में से 4 लोग इस रक्त समूह के होते हैं. हालांकि ये केवल रेयर है, रेयरेस्ट ब्लड ग्रुप का खिताब गोल्डन ब्लड ग्रुप के ही पास है.
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