पाकिस्तान (Pakistan) के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री और नेता माने जाने वाले ज़ुल्फिकार अली भुट्टो को 4 अप्रैल 1979 को फांसी पर लटका दिया गया था. इसे न्यायिक हत्या भी कहा जाता रहा. भुट्टो की हत्या (Bhutto Assassination) को पाकिस्तान में लोकतंत्र की हत्या भी कहा गया था. दूसरी तरफ, अमेरिका (America) में एक्टिविस्ट और क्रांतिकारी नेता रहे मार्टिन लूथर किंग (Martin Luther King Assassination) को 4 अप्रैल 1968 को तब शाम 6 बजे के आसपास गोली मार दी गई थी, जब वो एक मोटेल की बालकनी में खड़े थे. लेकिन इन दोनों नेताओं के वो शब्द आज भी गूंजते हैं, जो उन्होंने अपनी मौत को लेकर जीते जी कह दिए थे.
पहले भुट्टो की बात करते हैं. 5 जुलाई 1977 से पहले हुआ यह था कि चुनाव हुए थे और भुट्टो बहुमत से चुने गए थे, लेकिन विपक्ष का यह नतीजा मंज़ूर नहीं था इसलिए भुट्टो के खिलाफ एक माहौल बन रहा था. इस तारीख को जनरल ज़िया उल हक की अगुवाई में सेना ने पाकिस्तान की चुनी हुई सरकार को उखाड़ने की कवायद करते हुए भुट्टो की पहली गिरफ्तारी को अंजाम दिया. ज़िया का दावा था कि सत्ता हाथ में लेकर वो निष्पक्ष और ईमानदारी से चुनाव करवाएंगे. लेकिन हुआ क्या? (इंदिरा गांधी के साथ भुट्टो की यादगार तस्वीर)
ज़िया ने अपनी तानाशाही ताकत के दम पर न सिर्फ भुट्टों को सलाखों के पीछे धकेला बल्कि विपक्षी पार्टी पाकिस्तान नेशनल अलायंस को भी दरकिनार कर दिया. पाकिस्तान में लोकतंत्र बनाम तानाशाही की यह जंग लंबे समय तक चली. इस बीच, 1978 में जेल में बंद भुट्टो ने लिखा था : मेरी ज़िंदगी खतरे में है, यह समझना भूल होगी. मुझसे ज़्यादा पाकिस्तान का भविष्य खतरे में है. अगर मुझे फांसी देकर मार डाला गया... पाकिस्तान दंगे, फ़साद और जंग की आग में झुलस जाएगा.
द वॉशिंग्टन एफ्रो अमेरिकन अखबार के 9 सितंबर 1969 संस्करण में खबर किंग को समझ आ गया था वो भी कैनेडी की तरह मारे जाएंगे छपी थी. इस खबर में किंग की विधवा कोरेटा के बयानों के हवाले से बताया गया था कि किस तरह पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की हत्या के बाद किंग ने उनसे अपना अंदेशा और खतरे का पूर्वाभास साझा किया था. इस खबर में बताया गया था कि कैसे कैनेडी के मारे जाने पर किंग दुखी थे. इस खबर में आगे किंग के अपने बारे में शब्द मिले.
1963 में कैनेडी के मारे जाने के बाद कोरेटा से किंग ने कहा था : यही मेरे साथ भी होगा, मुझे लगता है. मैं तुमसे कहता रहा हूं कि यह समाज बहुत विक्षिप्त है. इस पूर्वाभास के बाद हुआ भी यह कि एक से ज़्यादा बार किंग पर जानलेवा हमले हुए. 1968 में जब किंग स्वच्छता कर्मियों की एक हड़ताल के नेतृत्व के सिलसिले में मेम्फिस के एक मोटेल में थे, तब नोबेल विजेता किंग को गोली मार दी गई थी. आखिरकार किंग का अंदेशा सच साबित हुआ.
सिर्फ 39 साल की उम्र में मारे गए मार्टिन लूथर किंग को 35 साल की उम्र में जब नोबेल शांति पुरस्कार मिले थे, तब वह सबसे कम उम्र में यह उपलब्धि पाने वाली शख्सियत थे. बहरहाल, ये दोनों ही नेता जनता के बीच काफी चर्चित और प्रिय रहे थे. दोनों के ही मारे जाने पर उनके चाहने वालों ने हत्या के खिलाफ आगज़नी, तोड़ फोड़ और उग्र विरोध प्रदर्शनों को अंजाम दिया था, जो गोली और फांसी के खिलाफ गुस्से के इज़हार के तौर पर इतिहास में दर्ज हुआ.