बसंत यानी फूल ही फूल, पंछियों का चहकना, हवा में खुशबू और मन में तरंग का मौसम. फसलों के पकने की शुरूआत से लेकर हर तरफ एक उल्लास और बहार ही बहार. बसंत को ऋतुराज कहा गया. प्रकृति के रोमांस के साथ ही यह मौसम सृजन का मौसम है. भारत में वसंतोत्सव के साथ एक तरफ, सरस्वती पूजन की परंपरा रही है तो कामदेव पूजन से जोड़कर इस मदनोत्सव के तौर पर मनाने का चलन भी. बसंत पंचमी को अक्सर भारत का अपना वैलेंटाइन डे या प्रेम पर्व भी कहा जाता है. क्या आपको पता है कि संगीत में बसंत कैसे बसा हुआ है?
हिंदोस्तानी शास्त्रीय संगीत में राग पद्धति है और राग इस तरह के विज्ञान पर आधारित हैं कि समय तक निश्चित है. यानी किस तरह का संगीत किस समय के अनुकूल है, यह भी विवेचना की गई है. गाने, बजाने और सुनने से मन में किस तरह के भाव या रस का सृजन होता है, इसे ध्यान में रखकर मौसम और प्रहर तक तय किए गए हैं. रागमाला में शताधिक रागों का वर्णन है, जिनमें से कुछ राग विशेष तौर पर वसंत के मौसम से जुड़े हुए हैं.
हिंदोस्तानी संगीत में ऋतुओं के लिए खास तौर पर राग हैं, जो प्रकृति के साथ हमारे मन को जोड़ने का माध्यम बनते हैं. जैसे वर्षा ऋतु के लिए राग मल्हार बेहद लोकप्रिय है तो राग हेमंत भी चाव से गाया, बजाया जाता है. इसी तरह बसंत ऋतु के लिए राग बसंत सबसे ज़्यादा लोकप्रिय राग है. केतकी गुलाब जुही चंपक बन फूले से लेकर ओ बसंती पवन पागल जैसे मधुर फिल्मी गीत इस राग में रचे गए. लेकिन राग वसंत कुछ और कारणों से काफी अहम है.
राग बसंत का समय यों तो रात्रि का बताया गया है लेकिन बसंत ऋतु के दौरान इसे कभी भी गाये, बजाये जाने की छूट है. विशेष बात यह है कि इस राग के गायन से प्रकृति खुश होती है. शास्त्रीय संगीत की विद्वान डॉ. अणिमा अष्ठाना कहती हैं कि सही ढंग से इस राग को छेड़ा जाए तो पौधों और फसलों के विकास की गति बढ़ जाती है. फाग या होली के रंग बिरंगे गीत इस राग में काफी मिलते हैं. यही नहीं, ये राग हमारे मन और जीवन पर बहुत असर डालते हैं. इसकी चर्चा हम आगे करेंगे.
बसंत के अलावा इस मौसम का दूसरा महत्वपूर्ण राग है राग बहार. राग बहार का समय भी रात का बताया जाता है, लेकिन बसंत ऋतु में यह अन्य मौकों पर भी गाया जा सकता है. वास्तव में, इन रागों का रस बहुत मधुर, मादक और उल्लास भरने वाला होता है इसलिए इन्हें सृजन का राग भी माना गया है. डॉ. अष्ठाना के मुताबिक राग बहार के स्वरों को ठीक से गाने, बजाने से मुरझाई हुई कलियां तक खिलने की बात पुराने ग्रंथों में कही गई है. रागों से जुड़े विषय पर पीएचडी करने वाली डॉ. अष्ठाना ने इन रागों के मन पर असर को भी बताया.
बसंत के मौसम में बसंत से जुड़े रागों का रस लेने से आप डिप्रेशन, चिंता, तनाव और मानसिक रोगों से छुटकारा पा सकते हैं. शास्त्रीय संगीत में प्रकृति से जुड़े रागों को गाने, बजाने या सुनने से कई तरह की परेशानियों से निजात संभव है और यह कई तरह के शोधों में साबित किया जा चुका तथ्य है. वैसे भी, बसंत खिलने का ही मौसम है. और, अब बसंत के कुछ और खास रागों को जानिए.
शास्त्रीय संगीत में बसंत और बहार रागों को मिलाकर बसंत बहार भी गाया, बजाया जाता है. इनके अलावा, पूर्वी थाट का राग परज भी इस मौसम के अनुकूल राग माना गया है. कर्नाटक शैली के संगीत से राग सरस्वती हिंदोस्तानी शैली के संगीत में घुला है. इस राग में खयाल और बाकी बंदिशें बांधी गईं, वो सरस्वती वंदना से जुड़ी रहीं. डॉ. अष्ठाना की मानें तो इस राग का बसंत ऋतु से संबंध नहीं है, लेकिन बसंत पंचमी पर होने वाली सरस्वती पूजा से है. सरस्वती कल्याण और सरस्वती केदार राग भी इसी संदर्भ में खास हो जाते हैं.
भोजपुरी के 'पावर स्टार' पवन सिंह ने लंदन में पूरी की 'सौतन' की शूटिंग, वायरल हुईं ऑन लोकेशन Photos
Happy Ram Navami 2021 Whatsapp Status, Images: रामनवमी पर Whatsapp ग्रुप में भेजें ये मैसेज, स्टेटस
Viral Photo: Shraddha Das का बिकिनी फोटोशूट फिर आया लाइमलाइट में, बोल्डनेस देखकर थम गई सांसें!
PHOTOS : जब कलेक्टर ने देवी को पिलायी मदिरा और हांडी लेकर शहर में घूमे...