कृषि कानून के विरोध में पंजाब से दिल्ली आ रहे किसानों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया. शीतलहर के बीच किसानों पर पानी की बौछार के लिए लगातार पुलिस की आलोचना हो रही है . वैसे देश ही नहीं, दुनियाभर की पुलिस प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए इसका उपयोग करती आई है. जानिए, क्या हैं ये और कब से प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिसिया हथियार बने हुए हैं. सांकेतिक फोटो
वॉटर कैनन वो उपकरण है, जिससे पानी की काफी मोटी धार तेज गति से निकलती है. ये गति इतनी तेज होती है कि कई मीटरों तक पानी पहुंच पाता है. आमतौर पर वॉटर कैनन का उपयोग इमरजेंसी में जैसे आग बुझाने, प्रदर्शन रोकने और खुदाई के दौरान होता है. अक्सर बड़े वाहनों को साफ करने के लिए ये काम आता है. हालांकि इस उपकरण को फायर मॉनीटर श्रेणी में रखा जाता है. सांकेतिक फोटो
इस कैनन को सबसे पहले फायरबोट में इस्तेमाल के लिए बनाया गया. पानी के पास नावों और इमारतों में आग बुझाने का काम बहुत मुश्किल और खतरनाक था. तब तक फायरबोट तैयार नहीं हो सके थे. साल 1919 को लॉस एंजिल्स को पहला फायरबोट मिला. वहीं न्यूयॉर्क सिटी में पहली बोट 1891 में ही आ चुकी थी. इसी तरह से फायर ट्रक भी होती है, जो कैनन की तरह से तेज गति से और तेज धार से पानी फेंकती है. इसका उपयोग भी दंगे या प्रदर्शन आदि रोकने के लिए होता आया है. सांकेतिक फोटो (news18 English via PTI)
तो ये जानना दिलचस्प होगा कि आग बुझाने के मकसद से बने ये कैनन कब और कैसे प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हथियार बन गए. साल 1930 में सबसे पहले जर्मनी में दंगाइयों को रोकने के लिए पानी की बौछार की गई थी. तब से लेकर अब तक इसमें कई बदलाव हुए हैं. आधुनिक वॉटर कैनन में ये सुविधा होती है कि इसे ऑपरेट करने वाला प्रदर्शनकारियों की पहुंच से छिपा हुआ रहता है ताकि उसे कोई नुकसान न हो जाए. ये केवल एक जॉयस्टिक से काम कर पाता है. सांकेतिक फोटो ( news18 English via PTI )
जर्मन वॉटर कैनन एक बार में सारी दिशाओं में लगभग 10,000 लीटर पानी की बौछार कर पाता है. गाड़ी में एक साथ तीन कैनन लगाए जा सकते हैं और ये दूर कहीं से एक जॉयस्टिक से चलाया जा सकता है ताकि कर्मचारी को खतरा न हो. हर सेकंड में इससे 20 लीटर पानी निकलता है. इसी से अंदाजा लग सकता है कि ये कितना खतरनाक होगा. सांकेतिक फोटो (CNN)
पानी की इस काफी मोटी और तेज बौछार से बीमार होने, जख्मी होने या मौत के भी खतरे हैं. इंडोनेशिया में साल 1996 में कैनन में पानी के साथ अमोनिया मिला होने के कारण ऐसा हो चुका है. साल 2013 में तुर्की में इसके साथ लिक्विड आंसू गैस भी छोड़ दी गई, जिससे लोगों को काफी परेशानी हुई. यूक्रेन में और भी खतरनाक मामला दिखा. वहां साल 2014 में एक प्रदर्शन के दौरान पानी छोड़ने से वहां उपस्थित एक बिजनेसमैन की निमोनिया से मौत हो गई. साउथ कोरिया में साल 2016 में एक बुजुर्ग की पानी की तेज धार में जख्मी होने के कारण मौत का भी मामला आ चुका है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
वॉटर कैनन पर लगातार प्रयोग भी होते रहे. जैसे साल 1997 में दक्षिण कोरिया में पानी में गुलाबी रंग का डाई मिला दी गई थी ताकि बाद में प्रदर्शनकारियों की पहचान हो सके. आयलरैंड की पुलिस ने भी एक बार बैंगनी डाई का इसी मकसद से उपयोग किया था. अब आ रही ज्यादातर वॉटर कैनन इस तरह से तैयार की गई हैं, जिनसे पानी के साथ आंसू गैस भी छोड़ी जा सके. इलेक्ट्रिफाइड कैनन पर भी प्रयोग चल रहा है लेकिन अब तक इसका मॉडल अप्रूव नहीं हो सका है. सांकेतिक फोटो (Picryl)
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