कुछ समय पहले पाकिस्तान के प्रमुख अखबार "द डॉन" रिपोर्ट छपी कि किस तरह पाकिस्तानी स्कूलों में हिदुओं और दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति विद्वेषपूर्ण और भड़काऊ शिक्षा दी जा रही है. डॉन इससे संबंधित जानकारी बाद के बरसों में उसके संपादकीय पेज पर भी प्रमुखता से प्रकाशित हुई. इसमें बताया गया कि किस तरह पाकिस्तान स्कूलों की किताबो में आपत्तिजनक बातें दर्ज हैं. ज्यादातर टीचर गैर मुस्लिमों को इस्लाम का दुश्मन मानते हैं. ये सर्वे अमेरिकी सरकार से जुडे़ एक मिशन द्वारा किया गया. जिसमें कहा गया कि पाकिस्तान में कट्टर इस्लाम के नाम पर जहर का बीज बोया जा रहा है.
9/11 हमले के बाद पूरी दुनिया का ध्यान स्कूलों में पढाई जाने वाली टैक्स्ट बुक की ओर गया. खासकर सऊदी अरब और पाकिस्तान की स्कूली किताबों की ओर. अमेरिका ने काफी दबाव डालकर सऊदी अरब की स्कूली किताबों के काफी टैक्स्ट बदलवाए लेकिन पाकिस्तान में तो ये अब भी जारी है. ये पढाई अक्सर आतंकियों के प्रति सहानुभूति की वजह बनती है. ये शिक्षा धार्मिक अतिवाद को भी बढावा देती है, जो पाकिस्तान में लगातार बढ़ रहा है.
यूएस कमीशन आन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम के चेयरमैन लेनार्ड लियो ने पिछले दिनों एक बयान में कहा था, पाकिस्तान में हालात लगातार खराब हो रहे हैं. सरकारों के लगातार कमजोर होने से कठमुल्लावाद को प्रश्रय मिल रहा है. सर्वे में पाकिस्तान के चारों प्रातों में कक्षा एक से लेकर दस तक की सौ से ज्यादा पाठ्यपुस्तकों का अध्ययन किया गया. पाठ्यपुस्तकों का इस्लामीकरण तानाशाह जनरल जिया उल हक के दौरान शुरू हुआ.
किताबों में लिखा है, हिंदुओं की संस्कृति और समाज अन्याय और क्रूरता पर आधारित है जबकि इस्लाम शांति और भाईचारे का संदेश देता है. देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले पंजाब प्रांत में कक्षा चार की सामाजिक अध्ययन की किताबों में लिखा है कि मुस्लिम विरोधी ताकतें दुनिया से इस्लाम के वर्चस्व को खत्म करने में लगी हैं.
पाकिस्तानी इतिहास के नायकों में मोहम्मद गजनवी को खासा महिमामंडित किया गया है, जिसने 1029 ईसवी के आसपास सोमनाथ मंदिर को तोड़ा था. इन्हीं सब शिक्षाओं का नतीजा है कि पाकिस्तान दुनिया का तीसरा असहिष्णु देश बन चुका है. पाकिस्तान में लगातार हिंदुओं और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमले के साथ अपहरण और शादी की घटनाएं बढ़ रही हैं. मंदिर और चर्च के साथ अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थल निशाने पर होते हैं. पिछले कुछ सालों में मंदिरों, गुरुद्वारों और चर्चों पर हमले, तोडफ़ोड़ और आगजनी की घटनाएं बढ़ी हैं.
कश्मीर हेराल्ड नाम के समाचार पत्र में हाल ही में इस पर एक लंबा लेख छापा गया है. जिसमें बताया गया है कि पाकिस्तान की स्कूली किताबों में गैर इस्लाम के लिए किस तरह विद्वेषपूर्ण बातों का उल्लेख है. साथ ही वहां की किताबों में स्वतंत्रता संग्राम में हिंदू नेताओं के योगदान को बहुत कम करके दिखाया गया है, जिसमें गांधी जी भी शामिल हैं, जिसकी छवि को पाकिस्तान की स्कूली किताबों में लगातार खराब करने की कोशिश हुई है.
पाकिस्तान की स्कूली किताबें कहती हैं कि पाकिस्तान का बनना हिंदूओं के विश्वासघात का नतीजा था. अगस्त 1947 में बंटवारे के दौरान जो व्यापक हिंसा हुई, उसके लिए हिंदू और मुस्लिम जिम्मेदार थे, जिन्होंने मुस्लिमों को निशाना बनाया. पाकिस्तान की इतिहास की किताबों में कहा गया है कि 1971 में बांग्लादेश का बनना गहरी हिंदू साजिश का नतीजा थी, जो चाहती थी कि पाकिस्तान को अस्थिर कर दिया जाए. इसलिए पूर्वी पाकिस्तान को अलग करने षडयंत्र रचा गया. किसी भी पाकिस्तानी टैक्स्ट बुक में ये उल्लेख कहीं नहीं है कि किस तरह बांग्लादेश में पाकिस्तान सेना ने वहां के लोगों पर जुल्म ढहाए थे.
पाकिस्तान की क्लास नौ और दस की उर्दू की टैक्स्ट बुक में एक अध्याय है पाकिस्तान की कहानियां है, कुछ दिनों पहले ही इस किताब को बैन किया गया और ये माना गया है कि उसमें आपत्तिजनक सामग्री है लेकिन ये किताबें तो ना जाने कितने दशकों से पाकिस्तान में पढाई जा रही थीं. जो स्कूली बच्चों के दिमाग में हिंदुओं और भारतीयों के प्रति जहर घोलने का काम कर रही थीं.
पिछले दिनों पाकिस्तान के नेशनल कमीशन फार जस्टिस एंड पीस (एनसीजेपी) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि सरकार स्कूली पाठ्यक्रम से घृणा और वैमन्स्य पैदा करने वाली धार्मिक सामग्री हटाने में नाकाम रही है. एनसीजेपी ने तो अपनी रिपोर्ट में कई किताबों के अंश भी उद्धृत किये हैं. इस रिपोर्ट के कुछ अंश आगे हैं.
- पाकिस्तान के पंजाब शैक्षिक बोर्ड की क्लास तीसरी (उम्र 7-8) की उर्दू की किताब में कहा गया है कि इस्लाम दूसरे धर्मों से बेहतर है. - सिंध बोर्ड की टैक्स्ट बुक की कक्षा सात की किताब में है, गैर मुस्लिमों में ईमानदारी केवल फायदे के लिए दिखावा होती है, जबकि मुस्लिम वाकई ईमानदारी पर भरोसा करते हैं.कक्षा पांच की पंजाब बोर्ड की इस्लामिक अध्ययन की किताब कहती है, छात्र होने के नाते बेशक आप व्यावहारिक तौर पर जिहाद में शामिल नहीं हो सकते लेकिन उसके लिए वित्तीय मदद तो दे ही सकते हैं. (ऐसे उदाहरण संख्या में काफी हैं).
आजादी की 75वीं वर्षगांठ: इतिहास में पहली बार...लाल किले पर इन 21 तोपों से दी जाएगी सलामी
इन 5 रत्नों की अंगूठियों को धारण करके पा सकते हैं अपार धन-संपत्ति
Raksha Bandhan 2022 Sugarfree Sweets: मीठे से परहेज है तो रक्षाबंधन पर इन शुगर फ्री मिठाइयों को करें ट्राई
Justice UU Lalit: कौन हैं जस्टिस यूयू ललित? जो बनेंगे भारत के मुख्य न्यायाधीश