प्लेन में बैठते ही मोबाइल फोन को फ्लाइट मोड पर लगाने का ऐलान तो आपने भी सुना होगा. फ्लाइट मोड पर फोन होना यानी अब फोन से कोई कम्यूनिकेशन नहीं होगा. लेकिन बढ़ती टेक्नॉलॉजी के मद्देनज़र कहा जा रहा है कि अब फ्लाइट में भी फोन काम करेगा. समझिए कैसे.
बहुत सी फ्लाइट्स में फोन सर्विस ऑन रहती है, जिस वजह से फ्लाइट्स में भी फोन के ज़रिए कम्यूनिकेशन बना रहता है. हालांकि फिलहाल ये सर्विस वाई-फाई के ज़रिए दी जाती है. प्लेन में फोन के काम करने की शुरुआत 1980 से मानी जाती है. प्लेन में फोन के जरिए कम्यूनिकेशन की शुरुआत Airfone सर्विस के शुरू होने के साथ ही हुई.
Airfone सर्विस रेडियो टेक्नोलॉजी पर निर्धारित थी. ये टेक्नोलॉजी अभी भी इस्तेमाल में लाई जाती है. फ़्लाइट मोड फ़ोन सेवा के बारे में बात करने से पहले, हमें समझना होगा ज़मीन पर सेल फ़ोन कैसे काम करते हैं.
जैसा कि नाम से जाहिर है सेल फोन दो-तरफ़ा (two-way) रेडियो है. हालाकि, यह वॉकी-टॉकी की तुलना में अधिक परिष्कृत है. सिटिजन बैंड रेडियो और वॉकी टॉकी को साधारण डिवाइस में शुमार किया जाता है. यानी कि ये दोनों डिवाइस कम्यूनिकेशन के लिए एक चैनल का इस्तेमाल करती हैं. इन डिवाइस पर एक वक्त में सिर्फ एक ही व्यक्ति बात कर सकता है.
सेल फोन एक डुप्लेक्स डिवाइस है. इसमें दो फ्रीक्वेनसी आगे-पीछे होती रहती हैं. एक बात करने और ट्रांसमीटिंग के लिए. दूसरी सुनने और रिसीव करने के लिए.
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक फ्लाइट में उड़ान भरते हुए भी सेल फोन के ज़रिए कम्यूनिकेशन किया जा सकता है. जैसे जैसे फ्लाइट ज्यादा ऊंचाई पर जाता है, सेल फोन के काम करने की क्षमता कम हो जाती है. बहुत सी एयरलाइंस ऐसी तकनीक का उपयोग कर रही हैं जो इन-फ़्लाइट मोबाइल सेवाओं के इस्तेमाल की इजाजत दे.
फ्लाइट में रहते हुए किसी भी फोन के ज़रिए कम्यूनिकेशन करने के लिए कोई फिक्स ऊंचाई नहीं है. मोबाइल कितनी ऊंचाई तक काम करेगा, यह नेटवर्क पर निर्भर करेगा. बता दें कि एयरप्लेन हवा में अमूमन 10 हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई पर नहीं जाता. सिर्फ ऊंचाई ही सेल फोन सेवा को सीमित नहीं कर सकती.
जब अधिक आबादी वाले ग्रामीण इलाकों के ऊपर से भी उड़ान भर रहे होते हैं, तब भी आस-पास टॉवर कम होते हैं. खुले समुद्र के ऊपर भी कोई टॉवर नहीं होता. वहां भी संवाद, फोन कॉल, सोशल मीडिया पोस्ट करना असंभव सा होता है.
स्पीड भी सेलुलर कनेक्शन को बनाए रखने में मुश्किलें ला सकती है. एक डिवाइस के रूप में एक कनेक्शन को बनाए रखने के लिए टॉवर से टॉवर पर स्विच करना पड़ता है. एक प्लेन को कॉल करने या रिसीव करने के लिए 155 मील प्रति घंटे की रफ्तार से चलना होगा. तब फोन के लिए सेल टॉवर रेंज में रहेगा.
एक हवाई जहाज की मेटल बॉडी भी सेलुलर सेवा को बाधित कर सकता है. एयरप्लेन मोड यानी सेलुलर कनेक्शन, वाईफाई, जीपीएस और ब्लूटूथ बंद करना शामिल है. ताकि कोई कॉल, मैसेज या डेटा भेजा या रिसीव न किया जा सके.
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