हिमालय पर्वत श्रेणी सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर जाना कोई बहुत विरली उपलब्धि नहीं रही है. हर साल एवरेस्ट और उसके पास की लोत्से चोटी के बीच समुद्र तल से करीब 8 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित बर्फ रहित क्षेत्र में सैंकड़ों एडवेंचर कैंम्प लगते हैं, जहां से एवरेस्ट के दक्षिणी ओर से पर्वतारोही चढ़ने की कोशिश करते हैं. नए अध्ययन में पता चला है कि वहां पहुंचने वाले लोग जाने अनजाने में अपने पीछे खतरनाक सूक्ष्मजीवी छोड़ कर जा रह हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बाउल्डर के वैज्ञानिकों की टीम की अगुआई में हुए शोध में पाया गया है कि एवरेस्ट पर चढ़ने वाले सैकड़ों पर्वतारोही अपने पीछे बहुत ही ज्यादा प्रतिरोध क्षमता वाले सूक्ष्मजीव छोड़ जाते हैं. इनकी खास बात यही होती है कि ये ऊंचाई पर मौजूद बहुत ही विपरीत और कठोर वातावरण में भी खत्म नहीं होते हैं और मिट्टी में दशकों और यहां तक कि सदियों तक सुसुप्त पड़े रहते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
वैज्ञानिकों ने साउथ कोल से मिट्टी के नमूने जमा किए और परंपरागत कल्चरल तकनीक और अगली पीढ़ी की जीन सीक्वेंसिंग पद्धतियों, दोनों से ही उनका सीयू बाउल्डर की कई प्रयोगशालाओं में विश्लेषण किया. इसके जरिए वे यह पता लगाना चाहते थे कि नमूनों में पाए गए सूक्ष्मजीवों की विविधता किस प्रकार की है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
विश्लेषण से पता चला कि बहुत से सूक्ष्मजीवों की डीएनए सीक्वेंस कठोर वातावरण वाले एक्स्ट्रीमोफिलिक जीवों से मेल खाता है जो पहले एंटार्कटिका और एंडीज के ऊंचाई वाले वातावरण में पाए गए हैं. इनमें भी सबसे ज्यादा नागानिशिया वंश के फफूंद सबसे प्रचुर थे जो बहुत ही ठंडी और पराबैंगनी विकिरण को झेलने में सक्षम होते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
चौंकाने वाली बात यह रही कि विशेषज्ञों ने कुछ सूक्ष्मजीवी डीएनए ऐसे भी पाए जो इंसानों से गहन रूप से संबंधित थे. इनमें त्वचा और नाक में पाया जाने वाला स्टैफिलोकोकस नाम का बैक्टीरिया और मुंह में पाया जाने वाला स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया भी शामिल है. हैरानी की बात यह थी कि गर्म माहौल में पनपने वाले ये बैक्टीरिया कठोर वातावरण में खुद को जिंदा रख सके. . (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
उम्मीद तो यही थी कि हिमालय के माहौल पर इन सूक्ष्मजीवियों का कम असर होगा, लेकिन उनकी मौजूदगी वैज्ञानिकों के लिए एक तरह की चेतावनी है. इस प्रकार से पृथ्वी के बाहर के वातारण के सूक्ष्मजीव भी उन पर प्रभाव डालने में सक्षम हो सकते हैं जो अभी मानवीय लिहाज से विपरीत और कठोर वातावरण में रह रहे हैं. इससे एस्ट्रोबायोलॉजी विषय के लिए एक नया आयाम माना जा सकता है जहां हम ठंडे चंद्रमा और कई दूसरे ग्रहों में मानव कॉलोनी बनाने की योजनाओं पर काम कर रहे हैं. यह अध्ययन आर्कटिक, एंटार्कटिक एंड अल्पाइन रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुआ है. . (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
जॉनी बेयरस्टो का रिप्लेसमेंट बन सकते हैं 3 खिलाड़ी... एक तो 8000 से ज्यादा रन ठोक चुका है, दूसरा टी20 का है कंपलीट पैकेज
निरहुआ की आम्रपाली दुबे सरेआम कर चुकीं सलमान को प्रपोज, बोलीं- प्लीज मुझसे शादी कर लो, मैं आखिरी सांस..
IPL इतिहास के 8 ऐसे रिकॉर्ड, जिन्हें तोड़ना नहीं आसान, क्या फिर से हो पाएगा चमत्कार?
दलजीत कौर पति निखिल पटेल संग मना रहीं हनीमून, एक्ट्रेस ने खुद शेयर कर दी पिक्स, देख उड़ जाएंगे होश