ऑस्ट्रेलियाई समुद्र में पाए जाने वाले कोकोस कीलिंग आईलैंड के 27 जुड़े हुए द्वीप अपनी सुंदरता के लिए बहुत चर्चित हैं. इनमें बहुत से टूरिस्ट हर साल छुट्टियां बिताने या घूमने के लिए आते हैं. दरअसल ये ऐसा इलाका है जो समुद्री पत्थरों से भरा रहता था और साफ-सुथरी रेत के साथ ऐसा लगता था जैसे यहां कभी कोई आया भी न हो. इसलिए इसे कई बार स्वर्ग भी कहा जाता था.
लेकिन 2017 में दो ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों, तस्मानिया यूनिवर्सिटी और विक्टोरिया यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च में पाया गया कि यह द्वीप करीब 41.4 करोड़ प्लास्टिक के टुकड़ों से घिरा हुआ है. इनका वजन कुल मिलाकर 238 टन बताया जा रहा है. जो कि कमोबेश एक व्हेल के वजन के बराबर है. इस स्टडी को कुछ समय पहले जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया.
रिपोर्ट में बताया गया है कि 1990 के बाद से यहां पर प्लास्टिक, खासकर एकबार प्रयोग हुए प्लास्टिक का प्रयोग यहां पर बहुत बढ़ गया है. इस बात का दावा इस स्टडी की प्रमुख लेखिका तस्मानिया यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर मरीन एंड आर्कटिक स्टडीज डिपार्टमेंट की रिसर्च साइंटिस्ट जेनिफर लेवर्स ने किया. उनका कहना है कि इस प्लास्टिक को कहीं न कहीं जाना ही है और दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि ज्यादातर प्लास्टिक ऐसे देशों में बहकर जा रहा है, जहां इस कूड़े से निपटने के इंतजाम नहीं हैं. वे लिखती हैं इसके अलावा यह नदियों और समुद्रों में भी जमा हो रहा है.
स्टडी के अनुसार मछलियां, पक्षी और समुद्री जानवर प्लास्टिक की सोडा की बोलतों में फंस जा रहे हैं. प्लास्टिक के जालों में फंस रहे हैं इसके अलावा प्लास्टिक के ये छोटे-छोटे कण वे निगल भी ले रहे हैं, जिसके चलते उनकी मौत हो जा रही है. समुद्र में प्लास्टिक की समस्या बहुत खतरनाक हो चुकी है. इस स्टडी में कहा गया है कि केवल समुद्र के इस हिस्से में इतने ज्यादा प्लास्टिक के टुकड़े पाए गए हैं, जितने हमारी आकाशगंगा मिल्की वे में तारे नहीं है. और ये समुद्री जीवन को बुरी तरह से बर्बाद कर रहे हैं.
इस स्टडी में यह भी बताया गया है कि ऐसा नहीं के ये समुद्री जीव गलती से इन प्लास्टिक के टुकड़ों को खा रहे हैं बल्कि पाया गया कि ये जीव ढूंढ़-ढूंढ़कर इन प्लास्टिक के टुकड़ों को खा रहे हैं. इसका कारण है कि लंबे वक्त तक समुद्र में पड़े रहने के चलते इन प्लास्टिक के टुकड़ों की महक ऐसी हो जाती है कि किसी मछली या समुद्री जीव को इस टुकड़े के भोजन होने का भ्रम हो जाता है और वह इसे भोजन समझ निगल लेता है.
प्लास्टिक से जुड़े इस रिसर्च के लिए डॉ लेवर्स ने इसलिए इसी द्वीप का चयन किया क्योंकि यह दूसरे द्वीपों के मुकाबले ज्यादा अनछुई जगह माना जाता था. साथ ही यहां पर समुद्र तट की सफाई जैसी बहुत सी गतिविधियां नहीं होती हैं. इससे आसानी से अपने आप द्वीप के पास जमा हुई प्लास्टिक के बारे में अध्ययन में मदद मिली.
इस प्लास्टिक के कूड़े में जो चीजें सबसे प्रमुखता से मिली हैं, वे हैं- टूथब्रथ, खाने के पैकेट, कोल्डड्रिंक की स्ट्रॉ और प्लास्टिक के बैग. यानि की कुल प्लास्टिक के कूड़े में 25% कूड़ा केवल एक बार प्रयोग हुई प्लास्टिक की चीजों का है. लेकिन करीब 60% इसमें से छोटे प्लास्टिक के टुकड़े हैं. यह बड़े प्लास्टिक सामानों के टूटने से बने हैं. यह 0.08 इंच तक छोटे टुकड़े हैं यानि की चावल के दानों से भी आधे.
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