17वीं शताब्दी के मध्य तक पश्चिम भारत (Western India) के समुद्री तटों पर पुर्तगाली साम्राज्य (Portugese Empire) था, लेकिन इसके बाद यहां ब्रिटिशों का कब्ज़ा शुरू हुआ. इसी दौरान की एक बेहद अहम घटना थी, जब पुर्तगाली राजघराने ने ब्रिटिश राजघराने (British Royal Family) को दहेज में बॉम्बे और कुछ अन्य द्वीप सौंप दिए थे. यह एक ऐतिहासिक शादी थी क्योंकि यह प्रेम या विवाह नहीं बल्कि एक राजनीतिक संधि (Political Treaty) ज़्यादा थी. केबीसी में पूछे गए इस शादी और दहेज के किस्से से जुड़े सवाल के बहाने से बॉम्बे (वर्तमान में मुंबई) के इतिहास के कुछ रोचक पन्ने खोलते हैं. (इमेज : केबीसीलाइव से साभार)
सबसे पहले तो ये जानिए कि यहां पुर्तगाली साम्राज्य कैसे कायम हुआ. पानीपत की पहली लड़ाई जीतने के बाद मुगल वंश ने भारत की दिल्ली सल्तनत पर शासन किया. 1530 में हुमायूं गद्दी पर बैठा तो गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह का रुतबा बढ़ा. शाह ने पुर्तगाली एडमिरल के पास अपने प्रमुख दूत शाह ख्वाजा को भेजा वसई समेत बॉम्बे के सात द्वीपों के बारे में एक समझौता किया. 1534 में शांति समझौते के तहत सात द्वीप 1535 में पुर्तगाल को सौंप दिए गए और यहां से मुस्लिम शासन खत्म हो गया. (प्रतीकात्मक तस्वीर : विकिकॉमन्स से साभार)
चूंकि समुद्री सेना, समुद्री व्यापार और सीमा सुरक्षा के लिहाज़ से यह इलाका बेहद अहम था इसलिए यहां अंग्रेज़ों की नज़र पड़ी. पुर्तगालियों से ब्रिटिशों ने 1612 में स्वाली का युद्ध लड़कर जब जीत हासिल की तो बॉम्बे द्वीप समेत पश्चिम भारत की तटीय सीमा से पुर्तगाली साम्राज्य की जड़ें हिल गईं. इस जीत के बाद बॉम्बे और अन्य द्वीप ब्रिटिशों और पुर्तगालियों की वर्चस्व की लड़ाई के केंद्र बने रहे. दोनों यहां चर्चों और महलों आदि का निर्माण करवा रहे थे और इसी बीच व्यापार के लिए पारसी भी पहले पहल यहां पहुंच रहे थे. (प्रतीकात्मक तस्वीर : विकिकॉमन्स से साभार)
अरब सागर में माहिम की खाड़ी तक नज़र रखने के लिए पुर्तगालियों ने बांद्रा में वॉचटावर बनवाया था, जहां बंदूकें भी तैनात थीं. यानी तनाव बढ़ रहा था इसलिए ब्रिटिश साम्राज्य की सूरत काउंसिल ने 1652 में प्रस्ताव रखा कि ईस्ट इंडिया कंपनी पुर्तगाल से बॉम्बे को खरीद ही ले. पुर्तगाल के राजा जॉन चतुर्थ से बॉम्बे खरीदने के हर प्रयास के बाद नतीजा यह हुआ कि राजा की बेटी की शादी ब्रिटिश राजा के साथ तय हुई. (तस्वीर : विकिकॉमन्स से साभार)
राजकुमारी कैथरीन ब्रगेंज़ा की शादी 1661 में ब्रिटेन साम्राज्य के राजा चार्ल्स द्वितीय के साथ तय हुई, जिसमें 5 लाख यूरो के साथ ही बॉम्बे व अन्य द्वीपों को दहेज के तौर पर दिया गया. यह शादी एक राजनीतिक समझौता था, लेकिन इसके बाद ही बॉम्बे का विकास सही मायनों में हो सका. अब तक बॉम्बे का मुख्य व्यापार सिर्फ नारियल और जूट ही था, लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य में यही बॉम्बे दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र बनता चला गया. (तस्वीर : विकिकॉमन्स से साभार)
शादी के बाद भी पूरी तरह तनाव खत्म नहीं हुआ था और बॉम्बे को हासिल करने के लिए ब्रिटिशों को और पापड़ बेलने पड़े थे. 1666 में जाकर ब्रिटेन को माहिम, सायन, धारावी और वडाला जैसे इलाकों पर कब्ज़ा मिल सका था. इसके बाद ब्रिटिश राजघराने ने बॉम्बे के इलाके पूरी तरह से ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिए थे. लेकिन उधर दूसरी कहानी शुरू हो गई थी. कैथरीन और चार्ल्स की शादी क्या सिर्फ एक समझौता ही बनकर रह गई थी? (प्राचीन पुर्तगाली चर्च की तस्वीर : विकिकॉमन्स से साभार)
एक सियासी समझौते के तौर पर हुई इस शादी में सबसे बड़ी समस्या थी चार्ल्स की अय्याशी. चार्ल्स कई औरतों के साथ संबंध रखता था, जो कैथरीन को मंज़ूर नहीं था. इन तमाम समस्याओं के बावजूद कैथरीन की ज़िम्मेदारी थी कि वो ब्रिटिश राजघराने का वारिस पैदा करे. लेकिन यहां नियति ने साथ नहीं दिया. कैथरीन तीन बार गर्भवती हुई लेकिन गर्भपात के कारण मां नहीं बन सकी. बॉम्बे और भारत पर ब्रिटेन का दबदबा जिस शादी से बना, वो नाकाम हुई और चार्ल्स ने एक गणिका से ब्रिटिश साम्राज्य का नाजायज़ वारिस पैदा किया था. (तस्वीर : विकिकॉमन्स से साभार)
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