03 दिसंबर 1971 को जब पूर्वी पाकिस्तान में लड़ाई के हालात बनने लगे थे. भारतीय सेनाएं पूर्वी पाकिस्तान में घुसने के लिए करीब करीब तैयार थीं. बस उन्हें भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के संकेत का इंतजार था. पाकिस्तान ने खुद ही 03 दिसंबर को वो आफत बुला ली, जिसके लिए भारत तैयार था. उसे अंदाज था कि पाकिस्तान ये हरकत करने वाला है.
03 दिसंबर की पाकिस्तान की वायुसेना ने भारत के छह भारतीय एयरफील्डस पर हमला किया. तनाव चरम पर पहुंच गया. कुछ ही देर में भारत ने युद्ध की घोषणा कर दी. भारतीय नौसेना तुरंत पाकिस्तान को मजा चखाने के लिए रणनीति बनाने पर जुट गई.
तुरत-फुरत भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान के नौसैना के मुख्यालय कराची पर हमले की रणनीति बनाई. कराची पर हमले की सारी तैयारी हो गई. रात में गुजरात के ओखा से भारतीय नौसेना की एक टुकड़ी हमले के लिए चल पड़ी. इसमें तीन विद्युत क्लास मिसाइल बोट, दो एंटी सबमरींस और एक टैंकर विद्युत क्लास बोट से हमला किया जाना था.
रात10.30 बजे भारतीय नौसेना की ये टुकड़ी हमले के लिए तैयार थी. इशारा मिलते ही जब हमला शुरू हुआ तो पाकिस्तान की समझ में ही नहीं आया कि क्या किया जाए. पाकिस्तान के पास इसका कोई जवाब नहीं था. उसके पास ऐसे विमान भी नहीं थे, जो बम के जरिए रात में हमले का जवाब दे पाते. INS निपट और INS निर्घट ने पाकिस्तान के पीएनएस खैबर युद्धक पोत और एमवी वीनस चैलेंजर जहाज को मिसाइल मारकर डुबा दिया. चैलेंजर में पाकिस्तान सेना और वायुसेना के काफी बड़े पैमाने पर हथियार लदे हुए थे.
इसके बाद तोपों की बारिश से कराची बंदरगाह धू-धूकर जलने लगा. कराची बंदरगाह का तेल डिपो देखते ही देखते नष्ट हो चुका था. जब पाकिस्तानी जहाज मुहाफिज टकराने के लिए आगे बढ़ा तब भारतीय नौसेना ने मिसाइल से मार से उसे डूबो दिया. ये सारा आपरेशन भारतीय नौसेना की इस टुकड़ी महज डेढ़ घंटे यानि 90 मिनट में कर लिया. जब तक पाकिस्तान कुछ समझता, उसका कराची हेडक्वार्टर तबाह हो चुका था. इसके बाद 1975 में पाकिस्तान ने नौसेना के मुख्यालय को इस्लामाबाद ट्रांसफर कर दिया.