तीन पीढ़ियों से तानाशाही झेल रहे उत्तर कोरिया में किम जोंग उन की हर बात सबसे ऊपर रखी जाती है. यहां तक कि देश की पूरी आबादी राजपरिवार से डरती है और इस डर को दिखाने की भी परंपरा है. वहां शासक के जीते-जी सम्मान दिया जाता है, साथ ही शासक की मौत के बाद उसके लिए रोने का भी रिवाज है. अगर कोई ऐसा न कर सके, तो उसे किम परिवार सजा देता है.
किम से पहले भी देश की सत्ता पर किम परिवार का ही दबदबा रहा. किम के दादा के बाद पिता किम जोंग इल ने सत्ता संभाली. कहा जाता है कि उनकी मौत के बाद प्रजा को शोक सभा में खुलकर रोने का आदेश मिला. लोग पूरे दम से चिल्ला-चिल्लाकर और छाती पीटकर रोए. जो ठीक से नहीं रो सका, वो अगले ही रोज गायब हो गया. मीडिया में तब इस बात की काफी चर्चा रही थी. (Photo-pixabay)
नॉर्थ कोरिया के दूसरे सु्प्रीम लीडर किम जोंग इल के बारे में नॉर्थ कोरिया के सरकारी चैनल ने बताया कि राजधानी प्योंगयांग से बाहर एक इलाके में अपनी शाही ट्रेन में ही हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई. 17 दिसंबर 2011 को हुई इस मौत के बारे में देश की जनता को दो दिनों बाद टीवी के जरिए पता चला. मौत की घोषणा के बाद देश में आधिकारिक शोक लागू हो गया, झंडे आधे झुका दिए गए और किसी भी किस्म के उत्सव या मनोरंजन पर रोक लग गई. इतना तक तो ठीक था लेकिन 10 दिनों के राष्ट्रीय शोक में जनता को अपने दुख का प्रदर्शन भी करना था.
अंतिम संस्कार से पहले किम जोंग इल का शव दर्शन के लिए रखा गया. उस दौरान प्योंगयांग की जनता का आना अनिवार्य था. साथ ही उन्हें जोर-जोर से रोना भी था. जल्दी ही रोती हुई जनता की तस्वीरें वायरल हो गईं. लोग रो रहे थे. छाती पीट रहे थे, जमीन पर सिर पटक रहे थे और कई-कई तो बार-बार गिर भी रहे थे. क्या ये सब असली था? इसपर इंटरनेशनल मीडिया में काफी विवादास्पद रिपोर्ट्स आईं. (Photo-pixabay)
डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक शासक की मौत के बाद नए राजा किम जोंग उन ने पिता के लिए बहुत सी शोकसभाएं रखीं. ये एक तरह के organised mourning events थे, जिसमें जनता को आकर रोकर ये साबित करना था कि वे पुराने राजा से प्यार करते थे. ये एक तरह से किम परिवार के लिए उनकी वफादारी का भी सबूत था. युवा, बच्चे, बूढ़े, औरत-मर्द सबके लिए रोना अनिवार्य था. 10 दिनों तक ये शोकसभाएं चलीं. इस दौरान ये नोट किया गया कि कौन-कौन उतनी ठीक तरह से नहीं रो रहा था. इसे किम परिवार के प्रति वफादारी में कमी माना गया.
10 दिनों के बाद क्रिटिसिज्म सेशन हुआ, जिसमें किम खुद उपस्थित थे. इसमें तय हुआ कि ठीक से न रोने वालों को तुरंत 6 महीने की कड़ी कैद में रखा जाए. दोषियों को रातोंरात घर से उठा लिया गया. ऐसे हजारों लोग थे. बहुतों का पूरा का पूरा परिवार महीनों लेबर कैंप में रहा. एक तरफ ये चल रहा था तो दूसरी ओर 10 दिनों बाद ही किम जोंग उन के लिए प्रचार-प्रचार भी हो रहा था. सुबह 7 से शाम 7 तक मीडिया नए नेता के गुणगान करती रहती थी. 69 साल की उम्र में जोंग इल की मौत के बाद तीन सालों तक mourning period चला, जो 17 दिसंबर 2014 में खत्म हुआ.
राज-परिवार केंद्रित इस देश के शासक ने खुद ही एलान कर दिया कि उनके यहां कोरोना नहीं है. लेकिन इस बीच ऐसी खबरें आ रही हैं कि किम अपने और परिवार समेत खास लोगों को चीन से कोरोना का टीका दिलवा चुका है. (Photo-pixabay)
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