एयर इंडिया फिर टाटा ग्रुप के पास पहुंच गई है. टाटा करीब 06 दशक बाद फिर उसे अपने स्वामित्व में चलाएंगे. क्या आपको मालूम है कि कैसे बनाया गया था एयर इंडिया का मस्कट महाराजा और उसको जब बनाया जा रहा था तो उसकी मूछों की प्रेरणा एक मशहूर पाकिस्तानी उद्योगपति से ली गई थी, जो जेआरडी टाटा के भी अच्छे दोस्त थे और उनके कामर्शियल डायरेक्टर बॉबी कूका के भी.
एयर इंडिया का मस्कट महाराजा बनने की कहानी भी काफी दिलचस्प है और इन पाकिस्तानी शख्स की मूछों की तरह महाराजा की भी नुकीली, लंबी और रोबदार मूछें बनाने की. जेआरडी टाटा ने 1932 में टाटा एयर सेवा शुरू की थी. शुरू में ये मेल लाने का काम करती थी बाद में पैसेंजर्स भी बिठाने लगी. फिर पूरी तरह से टाटा एयर लाइंस में तब्दील हो गई.
दरअसल दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब टाटा एयर लाइंस दोबारा शुरू हुई तो टाटा ने तय किया कि उसे पूंजी बाजार में लेकर आएंगे. तभी उन्होंने इसका नाम बदलकर एयर इंडिया कर दिया. इसी दौरान उन्हें महसूस हुआ कि एयरलाइंस का कोई मस्कट भी होना चाहिए. उन्होंने इसकी जिम्मेदारी एयर इंडिया के कामर्शियल डायरेक्टर एसके कूका उर्फ बॉबी कूका को दी.
बॉबी कूका ने एक बड़ी एड एजेंसी के आर्टिस्ट उमेश राव के साथ मिलकर इसकी कल्पना करनी शुरू की. उनके दिमाग में आया कि ये ऐसा हो जो रॉयल हो, दोस्ताना, पैसेंजर फ्रेंडली और घुमक्कड़ हो. उन्हें लग रहा था कि मस्कट इंडियन महाराजा जैसा होना चाहिए. कूका और टाटा के एक दोस्त थे, जो लाहौर में रहते थे. बहुत बड़े उद्योगपति थे. संयोग से वो उसी समय मुंबई में उनके पास आए. शायद एयरलाइंस में टिकट बुक कराने.
उनका नाम था सैयद वाजिद अली साहिब. वह बाद में पाकिस्तान के बनने के बाद वहां के सबसे बड़े उद्योगपति बने. खासे पैसे वाले थे. लेकिन साथ ही गजब की पर्सनालिटी वाली शख्सियत थे. उनकी मूंछें बहुत प्रभावशाली थीं, जो उनके चेहरे को रोबदार बनाती थी और जब दोस्ताना भी. वो खास स्टाइल में तुर्रीदार पगड़ी पहना करते थे. उनकी लाइफ स्टाइल भी उतनी ही जबरदस्त थी. बाद में वो लंबे समय तक पाकिस्तान ओलंपिक संघ के अध्यक्ष भी रहे. पाकिस्तान में उनके पास कई फैक्ट्रियां थीं.
जब वो मुंबई में कूका के पास आए तो उन्हें देखते ही कूका के दिमाग में मस्कट के तौर पर महाराजा को लेने की जो कल्पना चल रही थी, उसने पुख्ता रूप ले लिया. उन्हें समझ में आ गया कि उनका मस्कट महाराजा कैसा होगा. तुरंत उसकी पूरी छवि इस तरह बनी, वो कलगीदार पगड़ी लगाए हुए. लंबी और रोबीली मुछों वाला मुस्कुराता हुआ रॉयल शख्स होगा. वो राजाओं की तरह कोट और पतलून पहने होगा. बड़े अदब से यात्रियों का स्वागत कर रहा होगा.
कूका ने अपनी इस कल्पना को जब सैयद वाजिद अली साहिब की फोटो के साथ आर्टिस्ट उमेश राव को शेयर किया तो कुछ कोशिश के बाद मस्कट महाराजा ने मूूर्त रूप ले लिया. ये विदेशों में भारत का सबसे पहचाना जाने वाला लोकप्रिय ब्रांड बन गया. ये भी कहा जाता है कि शायद ये भारत का पहला ग्लोबल ब्रांड बना. 1946 में ये मस्कट एयर इंडिया के मुंबई स्थित आफिस में कटआउट के तौर पर लगा दिया गया. बाद में इसका एयरलाइंस के आंतरिक कागजी कम्युनिकेशन और फ्लाइट में इस्तेमाल किया जाने लगा.
एयर इंडिया ने इसके बाद जहां भी अपनी इंटरनेशनल उड़ान शुरू की, उसके लिए वहां के किसी खास प्रतीक को लेते हुए महाराजा का वहां घूमते हुए दिखाया, जैसा इस पोस्टर में महाराजा हांगकांग का लुत्फ ले रहे हैं. इस तरह एयर इंडिया ने महाराजा के जितने पोस्टर बनाए और जितनी तरह के बनाए, वैसा बहुत कम ब्रांड्स के साथ होता है. इसी वजह से विदेशों में महाराजा काफी लोकप्रिय रहे.
ये पोस्टर एयर इंडिया ने महाराजा के साथ तब जारी किया था, जब एयर इंडिया की सीधी उड़ान आस्ट्रेलियाई शहर पर्थ तक के लिए शुरू हुई थी. इसमें महाराजा पर्थ में ब्लैक श्वान का आनंद ले रहे हैं. आस्ट्रेलिया के साथ उड़ानों में एक खास कनेक्शन दिखाने के लिए महाराजा का क्रिकेट खेलते हुए भी एक पोस्टर बनाया गया था.
महाराजा न्यू यार्क की सड़कों पर घूम रहे हैं. ये पोस्टर तब जारी किया गया जब भारत से न्यू यार्क की सीधी उड़ान शुरू हुई. एयर इंडिया 80-90 के दशक तक महाराजा के एक से एक विविध रूपी पोस्टर बनाए. ये सैकड़ों की संख्या में हैं. एयर इंडिया के महाराजा के ये पोस्टर कलेक्शन ही अब काफी महंगे कलेक्शन माने जाते हैं.
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