ये सच है कि दुनिया में जैवविविधता (Biodiversity) घटती जा रही है, लेकिन कई इलाकों में स्थिति चिंताजनक है. यही वजह है कि वैज्ञानिकों ने दुनिया की विभिन्न प्रजातियों (Spices) को उनके कायम रहने या विलुप्त होने के खतरे मुताबिक कई श्रेणियों में बांटा है. लेकिन कई इलाके भी ऐसे होते हैं जहां की प्रजातियां विशेष संकट में हैं. अफ्रीका के मांसाहारी जीव (Carnivores) भी पिछले कुछ दशकों से तेजी से कम हो रहे हैं. नए अध्ययन में पाया गया है कि इन जीवों के संरक्षण के लिए विशेष तरह के आकलन की जरूरत है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
दुर्भाग्य से संरक्षण योजनाओं और विलुप्तप्रायः प्रजातियों (Endangered Species) के प्रबंधन को जनसंख्या स्थिति और प्रचलन के अनुसार विस्तृत और सटीक आकलन की जरूरत है. वहीं जैवविविधता (Biodiversity) निगरानी सही तरह से वितरित नहीं है या नहीं की जा रही है जहां उसकी सबसे ज्यादा जरूरत है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की अगुआई में हुए शोध ने दो दशकों का अफ्रीका की विशाल मांसाहारी (Carnivores) जनसंख्या आकलन प्रकाशित हुआ है. इस आकलन का उद्देश्य जानकारियों की कमियां दूर करना जिससे बेहतर निगरानी के लिए कदम उठाए जा सकें. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
इस अध्ययन में लेखकों ने बताया है कि इन इलाकों में होने वाले अध्ययन शेरों और धारीदार लकड़बग्घों (hyena) के प्रति ज्यादा पूर्वाग्रह के साथ गए हैं. जबकि लकड़बग्घे तो बहुत विस्तृत किस्म की प्रजाति है. वहीं शोध के मामलों में अफ्रीकी जंगली कुत्तों के प्रति नकारात्मक पूर्वाग्रह देखा गया है जिसकी एक वजह उनका सीमित वितरण भी है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
इस अध्ययन के शोधकर्ताओं ने बताया कि उनकी पड़ताल इस बात को रेखांकित करती हैं कि विशेष तौर पर उत्तरी , पश्चिमी और मध्य अफ्रीका में चीता (Cheetah) की जनसंख्या के आकलन की ज्यादा और आपात जरूरत है. बड़े देशों के क्षेत्रों के कारण चाड और इथोपिया को इस मामले में प्राथमिकता पर लेना चाहिए. शोधकर्तायों ने पाया हैकि जनसंख्या (Population) का आंकलन दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका (Africa) के प्रति ज्यादा झुकाव रखने वाला देखा गया है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
वहीं अधिकांश अध्ययन सुरक्षित क्षेत्रों में किए गए हैं जबकि गैर सुरक्षित क्षेत्रों में और शिकार करने वाले इलाकों (Prey regions) पर ध्यान कम दिया गया है. भविष्य के शोध करने वाले इलाकों के लिए वैज्ञानिकों ने अनुशंसा की है कि उत्तरी, पश्चिमी और मध्य अफ्रीका (Africa) के क्षेत्रों को भविष्य में शोध के लिए प्राथमिकता के तौर पर लेना चाहिए. इनमें भी अंगोला, डोमिनिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, दक्षिण सूडान, और चाड, देश प्रमुख रूप से शामिल हैं, जिनके बारे में अभी किसी तरह की जानकारी या अनुमान नहीं मिले हैं, लेकिन वे विशाल मांसाहारी (Carnivores) जनसंख्या को लेकर मशहूर हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
इसके अलावा दानकर्ता और विदेशी शोधकर्ताओं को स्थानीय वैज्ञानिकों, छात्रों और अन्य व्यवसायियों को भावी आकलनों में शामिल किया जाना चाहिए. इसके लिए उन्होंने उपकरण देने, वित्तीय सहायता करने और प्रशिक्षण देने जैसे क्षमता विकास के नवाचार को प्रोत्साहित करना चाहिए. प्रजातियों (Species) के स्तर पर बात करें तो धारीदार लकड़बग्धों (Hyenas) अफ्रीकी जंगली कुत्तों और चीताओं (Cheetah) की जनसंख्या का आकलन आपात रूप से बहुत जरूरी है. ऐसा बोट्सवाला, तन्जानिया, चाड और इथोपिया में करना ज्यादा जरूरी है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
पियरजे जर्नल प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं का कहना है कि कुल मिलाकर अफ्रीका (Africa) के विशाल हिस्से के प्रतिनिधित्व करने वाला साहित्य कम है. अधिकांश देशों में अधिकांश प्रजातियों (Species) पर और ज्यादा शोध करने के अवसर मौजूद हैं. शोधकर्ताओं ने उठाए जाने वाले जरूरी कदमों को अनुशंसा सूची तैयार की है जिनसे पहचाने जा चुके पूर्वाग्रहों से उठने की जरूरत है और शोधकर्ता, व्यवसायियों, और नीतिनिर्माताओं को भविष्य में शोध करने और निगरानी करने के लिए एजेंडा बनाने हेतु प्राथमिकताएं निर्धारण करने में मदद मिल सके. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
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