भारत के संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का निधन 06 दिसंबर 1956 में हुआ था. बाबा साहब की शख्सियत सिर्फ संविधान निर्माता तक समेटना मुश्किल है. पढ़िए उनकी जिंदगी से जुड़े खास पहलु.
अपने इलाके में केवल आंबेडकर ही परीक्षाएं पासकर हाईस्कूल में पहुंचे. नौवी कक्षा के दौरान एक शिक्षक ने उनके जाति दंश समझाते हुए उन्हें अंबेडकर उपनाम अपनाने की सलाह दी.
दलित होने के कारण आंबेडकर उपेक्षित रहे. उन्हें वो बर्तन छूने या उनसे पानी पीने की इजाज़त नहीं थी, जिनसे दूसरे बच्चे पानी लेते थे.
बॉम्बे यूनिवर्सिटी से 1913 में आंबेडकर ने अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र में डिग्री ली और कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पोस्टग्रेजुएशन के लिए अमेरिका पहुंचे.
भारत की आज़ादी के बाद 1947 में आंबेडकर ने देश का पहला क़ानून मंत्री बनने का प्रस्ताव मान लिया.
जीवन भर बौद्द धर्म को करीब से देखने-समझने वाले आंबेडकर ने नागपुर में 1956 में इसे स्वीकार कर लिया.
साल 1913 में बाबा साहब ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया था. इसके लिए बड़ौदा के राजपरिवार से उन्हें वज़ीफा भी दिया गया था. इसकी बदौलत वो विदेश जाकर पढ़ सके.
जाति प्रथा के दंश से दुखी होकर आंबेडकर ने कहा था कि देश का भाग्य तब बदलेगा, जब हिंदू-मुस्लिम धर्म के दलित ऊंची जाति की राजनीति से मुक्त होंगे.
उनका ये भी मानना था कि इस्माल धर्म के नाम पर जो राजनीति हो रही थी, वो हिंदू धर्म के उच्च वर्ग में होने वाली जैसी ही थी.
आंबेडकर जाति व्यवस्था और भेदभाव पर अपनी कड़ी टिप्पणी के लिए जाने जाते थे. उन्होंने कहा कि जो भी मुस्लिम शासक भारत आए थे, उन्होंने ब्राह्मणवादी नीति को अपनाया. मुगल काल के शासकों ने हिंदू धर्म की ऊंची जातियों से समझौता कर लिया था.
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