हिमाचल प्रदेश में एक ऐसा गांव है, जिसे सिकंदर महान के सैनिकों के वंशजों का गांव कहा जाता है. इस गांव की एक नहीं ना जाने कितनी खासियतें हैं. एक तो ये भारत का संविधान नहीं मानता, क्योंकि इसका अपना संविधान बहुत पुराना है. कहा जाता है कि ये देश का सबसे पुराना लोकतांत्रिक गांव है. यहां अकबर की पूजा होती है और सबसे ज्यादा हशीश भी पैदा होती है.
हाल ही में भारत और यूनान का एक स्कॉलर ग्रुप इस बात पर रिसर्च कर रहा है कि हिमाचल के मलाणा गांव के लोगों की जड़ें किस तरह उन्हें सिकंदर महान से जोड़ती हैं. सिकंदर ने 326 ईसापूर्व भारत पर आक्रमण किया था. परसिया पर अधिकार करने के बाद वह भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग (जो अब पाकिस्तान है) तक पहुंचा था. वहां सिकंदर का युद्ध पोरस से हुआ. पोरस से संधि के बाद बेशक सिकंदर की सेना यहां से वापस यूनान ...
यहां की भाषा में भी कुछ ग्रीक शब्दों का इस्तेमाल होता है. हालांकि इस बात का कोई ऐतिहासिक तथ्य नहीं मिलता कि ये सिकंदर के सैनिकों का गांव है.कहा जाता है कि सिकंदर के कुछ सैनिक वापस नहीं गए और उन्होंने ही मलाणा गांव बसाया. यहां के लोगों का हाव-भाव और नैन-नक्श भी भारतीयों जैसे नहीं हैं.बोली से लेकर शाररिक बनावट तक ये लोग भारतीयों से एकदम अलग नजर आते हैं. (wiki commons)
इस गांव में बाहरी लोगों के कुछ भी छूने पर पाबंदी है. इसके लिए इनकी ओर से बकायदा नोटिस भी लगाया गया है, जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि किसी भी चीज को छूने पर एक हजार रुपए का जुर्माना देना होगा. इनके जुर्माने की रकम 1000 से लेकर 2500 रुपए तक है. किसी भी सामान को छूने की पाबंदी के बावजूद भी यह स्थान पर्यटकों को आकर्षित करता है. वैसे बाहर से आए लोग दुकानों का सामान नहीं छू सकते. पर्यटकों ...
मलाणावासी अकबर को पूजते हैं. यहां साल में एक बार होने वाले ‘फागली’ उत्सव में ये लोग अकबर की पूजा करते हैं. लोगों की मान्यता है कि बादशाह अकबर ने जमलू ऋषि की परीक्षा लेनी चाही थी, जिसके बाद जमलू ऋषि ने दिल्ली में बर्फबारी करा दी थी.(courtesy malana blog)
यहां नशे का व्यापार भी खूब फलता-फूलता है. मलाणा गांव की चरस पूरी दुनिया में मशहूर है, जिसे मलाणा क्रीम कहा जाता है. यहां पैदा होने वाली चरस में उच्च गुणवत्ता का तेल पाया जाता है. यही नशा सरकार के लिए भी टेढ़ी खीर साबित होता है. प्रशासन को नशे के व्यापार पर रोक लगाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है. कई अभियान चलाए जाते रहे हैं, लेकिन फिर भी यहां से भारी मात्रा में चरस और अफीम की तस्करी ...
मलाणा के लोग भारत के संविधान को न मानकर अपनी हजारों साल पुरानी परंपरा को मानते हैं. पहाड़ियों से घिरे हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में है ये छोटा सा गांव स्थित है. कहा जाता है कि दुनिया को सबसे पहले लोकतंत्र यहीं से मिला था. प्राचीन काल में इस गांव में कुछ नियम बनाए गए, इन नियमों को बाद में संसदीय प्रणाली में बदल दिया गया.(courtesy malana blog)
इस गांव के अपने खुद के दो सदन हैं. एक छोटा सदन और एक बड़ा सदन. बड़े सदन में कुल 11 सदस्य होते हैं, जिसमें 8 सदस्य गांव वालों में चुने जाते हैं, जबकि तीन अन्य कारदार, गुर और पुजारी स्थायी सदस्य होते हैं. इस सदन की अनोखी बात यह है कि गांव के प्रत्येक घर से इसमें एक सदस्य जरूर होता है. घर का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति ही इसमें प्रतिनिधि होता है. (courtesy manala blog)
ऊपरी सदन में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाए तो पूरे ऊपरी सदन का दोबारा गठित किया जाता है. सिर्फ़ सदन ही नहीं बल्कि मलाणा गांव का अपना प्रशासन भी है; कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए इनके अपने कानून हैं. इनके खुद के थानेदार होते हैं. सरकार भी इनके मामलों में दखल नहीं देती. सदन में हर तरह के मामलों को निपटाया जाता है. (courtesy malana blog)
यहां फैसले देवनीति से तय होते हैं; संसद भवन के रूप में ऐतिहासिक चौपाल लगाई जाती है. ऊपरी सदन के 11 सदस्य ऊपर बैठते हैं. साथ ही निचली सदन के सदस्य नीचे बैठे होते हैं. हर तरह के फैसलों का यहीं पर निपटारा हो जाता है. अगर कोई मामला फंस जाए जिसका हल निकालना मुश्किल होता है तो इसे सबसे अंतिम पड़ाव पर भेज दिया जाता है. ये अंतिम पड़ाव जमलू देवता का होता है. गांव वाले जमलू ऋषि को अपना देवता मानत...
ये तरीका भी अजीब होता है. जिन दो पक्षों का मामला होता है, उनसे दो बकरे मंगाए जाते हैं. दोनों ही बकरों की टांग में चीरा लगाकर बराबर मात्रा में जहर भर दिया जाता है. जहर भरने के बाद बकरों के मरने का इंतजार होता है. जिस पक्ष का बकरा पहले मरता है, वह दोषी होता है. अब इस अंतिम फैसले पर कोई सवाल नहीं खड़ा कर सकता. वैसे अब यहां बदलाव देखने को मिलने लगा है. पहले यहां चुनाव नहीं होता था लेकिन साल...