इस समय जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण दुनिया भर के ग्लेशियर (Glacier) पिघल रहे हैं. ताजा शोध बता रहे हैं कि यह तेजी कितनी खतरनाक है और इसके क्या प्रभाव होंगे. लेकिन ग्लेशियर और ध्रुवों के आसपास जमी बर्फ पिघलने का एक और दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है. वह है वायुमंडल में मीथेन (Methaneg) गैस का बढ़ना. यह ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को और बढ़ा सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
जलवायु परिवर्तन (Climate Chagne) के पृथ्वी के लंबे इतिहास के लिहाज से देखें ग्लेशियर (Glaicer) के पिघलने का संबंध हिमयुग (Ice Age) से भी है. हैरानी की बात लगती है, लेकिन हिमयुग बर्फ का जमना ही नहीं है बल्कि जटिल प्रक्रियाओं का युग है. इसमे ग्लेसिएशन और डीग्लेसिएशन जैसी प्रक्रियाएं होती रहती हैं जिससे महासागरों के तलों में दबाव बढ़ता और कम होता है. अभी के और पुरातन भूगर्भीय अध्ययन बताते हैं कि डीग्लेसिएशन आर्कटिक में बर्फ चादर पिघलने से महासगरों के तल से मीथेन गैस रिस कर ऊपर आती है और वायुमडंल में मिल जाती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: NASA)
नॉर्वे की यूआईटी द आर्कटिक यूनिवर्सिटी के CAGE सेंटर फॉर आर्कटिक गैस हाइड्रेट एनवायर्नमेंट एंड क्लाइमेट में पोस्ट डॉक्टरेट फैलो पियरे-एन्टोनी डिसैंडियर बताते है कि उनके अध्ययन में उन्होंने पिछले इंटरगैलेक्टिकल काल जिसे इमियान काल कहते हैं, तक आर्कटिक (Arctic) मीथेन का रिसाव (Methane Emission) का अध्ययन किया जिसमें उन्हंने होलोसीन और ईमियान युग के डीग्लेसियेशन की घटनाओं का अध्ययन किया. अध्ययन में पाया गया कि दोनों युग में ग्लेशियर पिघलने की प्रक्रिया यानि डिग्लेसिएशन (Deglaciation) में काफी समानता थी. और इसकी वजह से महासागर के नीचे से मीथेन का रिसाव बढ़ गया. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
यह अध्ययन आर्कटिक सागर (Arctic Ocean) की अवसादों से जमा किए गए अलग-अलग आइसोटोप के मापन के आधार पर किया गया था. आईसोटोप कार्बन ऑक्सीजन जैसे रासायनिक तत्वों में विविधता वाले तत्व होते हैं. एक ही तत्व के अलग-अलग आईसोटोप का आणविक भार अलग अलग होता है जो अपने पर्यावरण (Environment) के दूसेर तत्वों से अलग तरह से अनुक्रिया करते हैं. इस तरह से कुछ आइसोटोप का संबंध पर्यावरण के बदलावों से होता है. ये आइसोटोप छोटे जीवों में जमा हो जाते हैं और उनके मरने पर हजारों साल तक अवसादों में पड़े रहते हैं और ज्यादा मीथेन (Methane) का रिसाव होने पर उनके ऊपर कार्बोनेट की बड़ी पर जम जाती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
आइसोटोप रिकॉर्ड बताता है कि बर्फ पिघलने (Ice Melting) पर ईमियान काल में समुद्र के नीचे दबाव कम हो गया था जिससे मीथेन (Methane) का बहुत अधिक रिसाव हो गया था. जबतक बर्फ पूरी तरह से गायब हुई तब तक मीथेन उत्सर्जन स्थिर हो गया था. आर्कटिक (Arctic) में मीथेन का भंडार है जो गैस हाइड्रेट और खुली गैस के तौर पर मौजूद है. गैस हाइड्रेड जमी हुई गैस है जो पानी में फंसी होती है जो महासागर के तापमान और दबाव से बहुत प्रभावित होती है. डिग्लेसिएशन से इसी मीथेन के भंडार से रिसाव होता है. इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि जो पहले हुए वह आगे भी होगा. (फाइल फोटो)
डिसैंडियर का कहना है कि आज जिस तेजी से ग्रीनलैंड (Greenland) की बर्फ की चादर पिघल रही है. वह उनके मॉडल की तरह ही हो रहा है. उन्हें विश्वास है कि भविष्य में इन बर्फ की चादरों के आसपास और नीचे से मीथेन (Methane) के रिसाव होने की पूरी संभावना है. मीथेन की मात्रा बढ़ने से पृथ्वी (Earth) के वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा बहुत बढ़ जाती है. मीथेन दुनिया की एक तिहाई गर्माहट बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है. साल 2019 में दुनिया के 60 प्रतिशत मीथेन रिसाव का कारण मानवीय गतिविधियां थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
जिस तरह से दुनिया गर्म (Global Warming) हो रही है मीथेन (Methane) का रिसाव केवल उसकी दर को ही तेज करेगा. यह हालाकिं तय नहीं हैं कि ईमियान और होलोसीन काल में डीग्लेसिएशन (Deglaciation) के कारण कितनी मीथेन का रिसाव हुआ था. फिर भी हमें कुछ संकेत मिलते हैं. जहां दोनों युग में डिग्लेसिएशन की प्रक्रिया हजारों सालों तक चली थी, इस बार ये गति बहुत तेज है. बेहतर होगा हम इसके लिए अभी से सचेत हो जाएं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
एमपी के लोग गुजरात से भरवा रहे पेट्रोल, जानिए आखिर कितने रुपये का है फर्क; देखें फोटो
Delhi Triple Suicide Case: मां-बेटियों की आत्महत्या के बाद घर में दाखिल हुई पुलिस ये देख रह गई हैरान...
Yamini Singh के ग्लैमर के आगे फीका है भोजपुरी हसीनाओं का लुक, खेसारी फैन भी हुए अदाओं के कायल
Khesari Lal की ऑन स्क्रीन राधा हैं बेहद खूबसूरत, किसी को भी नजरों से ही घायल कर सकती हैं Megha Shree