हर साल पृथ्वी के पास से धूमकेतु (Comet) , क्षुद्रग्रह (Asteroids) जैसे बहुत सारे खगोलीय पिंड आते हैं और उनमें से ज्यादातर पृथ्वी (Earth) के पास से गुजर जाते हैं. जो पृथ्वी तक उलकापिंड और अन्य छोटे पिंड पृथ्वी तक आ पाते में उनमें से भी लगभग सभी हमारी वायुमंडल में आकर जल कर खत्म हो जाते हैं. लेकिन बहुत लोगों का ध्यान इस बात पर कभी नहीं जाता है कि इसके बाद भी खगोलीय धूल पृथ्वी की सतह तक सूक्ष्म उल्कापिंडों (Micrometeorites) के रूप में पहुंच जाती है.हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
हकीकत यह है कि हमारे ग्रह (Earth) पर हर साल धूमकेतुओं (Comets) और क्षुद्रग्रहों (asteroids) की धूल सतह तक पहुंच जाती है. यही ग्रहों के बीच की धूल जब हमारे वायुमंडल में प्रवेश करती है तो वह टूटते हुए तारों के रूप में दिखाई देती है. इसी धूल का काफी हिस्सा पृथ्वी की सतह पर सूक्ष्मउल्कापिंडों (Micrometeorites) के रूप में पहुंचता है. यह अध्ययन अर्थ एंड प्लैनेटरी साइंस लैटर्स नामक जर्नल में प्रकाशित होने वाला है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
पिछले 20 सालों से एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत CNRS, द यूनिवर्सिटे पेरिस साक्ले और फ्रेंच पोलर इंस्टीट्यूट के सहयोग से नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि हर साल पृथ्वी (Earth) की सतह पर 5200 टन की मात्रा में खगोलीय धूल (Cosmic Dust) पृथ्वी की सतह पर सूक्ष्म उल्कापिंडों (Micrometeorites) के रूप में पहुंचती है. ये प्रक्रिया हमेशा ही होती रहती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
सूक्ष्म उल्कापिंडों (Micrometeorites) वास्तव में ग्रहों के बीच मौजूद खगोलीय धूल होती हैं. यह धूल धूमकेतु या क्षुद्रग्रहों से आने वाले कणों से बनती है जो एक मिलीमीटर के दसवें से सौवें हिस्से जितने बड़े होते हैं और यही सूक्ष्मकण पृथ्वी (Earth) के वायुमंडल को पार कर नीचे सतह तक पहुंच पाती है. इन सूक्ष्म उल्कापिंडों को जमा करने के लिए CNRS शोधकर्ता जीन ड्यूप्रैट की अगुआई में छह अभियान चलाए. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
शोधकर्ताओं ने अंटार्कटिका (Antarctica) के बीच में एडेली लैंड (Adelie land) के तट से 1100 किलोमीटर दूर फ्रैंको- इटैलियन कोकॉर्डिया स्टेशन (डोम C) से सूक्ष्म उल्कापिंडों (Micrometeorites) को जमा किया. डोम सी इसके लिए आदर्श स्थान है क्योंकि यहां बर्फबारी कम होती है और पृथ्वी की स्थानीय धूल बिलकुल नहीं होती. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
इन अभियानों ने पृथ्वी (Earth) के बाहर के पर्याप्त कणों को जमा किया जिनका आकार 30 से 200 माइक्रोमीटर तक था. हर साल कितनी धूल गिरती है, इसे मापने के लिए शोधकर्ताओं ने पृथ्वी पर हर साल प्रति वर्ग मीटर पर गिरने वाली सूक्ष्म उल्कापिंडों (Micrometeorites) की सालाना दर निकाली. यदि इन नतीजों को पूरी पृथ्वी पर लागू किया जाए तो हर साल 5200 टन की मात्रा में सूक्ष्ण उल्किपिंडों (Micrometeorites) गिरते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
सूक्ष्ण उल्किपिंडों (Micrometeorites) के गिरने की तुलना जब सैद्धांतिक अनुमानों से की गई तो इससे पता चला कि बहुत सारे खगोलीय धूल (Cosmic Dust) धूमकेतुओं से आई होगी. यह लगभग कुल हिस्से का 80 प्रतिशत हिस्सा है जबकि बाकी यह क्षुद्रग्रह से आई है. इस तरह की जानकारी से ग्रहों की बीच की धूल की युवा पृथ्वी (Earth) में पानी और कार्बनिक पदार्थों की आपूर्ति में भूमिका के बारे में पता चल सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
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