दारुल उलूम देवबंद ने ट्रिपल तलाक और हलाला निकाह पर भी फतवा जारी किया था. अक्टूबर में जारी किए इस फतवे में कहा गया था कि अरेंज्ड हलाला इस्लामिक नहीं है और ऐसा करने वाले को शर्मिंदा होना चाहिए. हलाला एक प्रक्रिया है जिसके जरिए तलाकशुदा महिला अगर अपने पति के पास वापस लौटना चाहे तो पहले उसे दूसरे मर्द से शादी करनी होती है.
दारुल उलूम ने औरतों के चुस्त कपड़ों और तंग बुर्के पर फतवा साल 2018 की शुरुआत में दिया था. फतवे में कहा गया था, "जब कोई औरत घर से बाहर निकलती है तो शैतान उसे घूरता है. इसलिए मुहम्मद साहब ने औरत को छुपाने की चीज बताया है. इसलिए औरत को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए. जरूरत पड़ने पर घर से निकले भी तो उसे ढीला लिबास पहनना चाहिए ताकि शरीर के अंग छिपे रहें."
टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में दारुल उलूम के मुफ्ती ने कहा था कि फोन उठाने या करने वाला उस वक्त टॉयलेट में हो सकता है. ऐसे वक्त में आयत या अजान का रिंगटोन या कॉलर टोन सुनना गैर इस्लामिक है. कुरान की आयत की रिंगटोन हराम और गैर-इस्लामिक है. फिर चाहे वह किसी भारतीय के लिए हो या दुनिया के किसी भी हिस्से के मुस्लिम के लिए.
इसी साल जनवरी में सऊदी अरब के जारी किए एक फतवे का भी दारुल उलूम देवबंद ने समर्थन किया था. इसमें औरतों के लिए मर्दों का फुटबॉल मैच देखना हराम बताया गया था. दारुल उलूम देवबंद के मुफ्ती अथर कासमी का कहना था कि फुटबॉल शॉर्ट नेकर पहन कर खेला जाता है, ऐसे में महिलाओं की नज़र खिलाड़ियों के घुटनों पर जाती है, जिसे देखना गुनाह है.
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