बाहुबली मुख्तार अंसारी चर्चाओं में है. वो केवल खुद राजनीति में रहा है बल्कि उनका राजनीतिक रसूख भी जबरदस्त रहा है. ऐसे परिवार से ताल्लुक रखता है, जिसमें लोग एक से एक पदों पर रहे हैं. उसके परिवार के लोगों और खानदान का पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपना नाम है. राजनीति में उसके परिवार से आज से नहीं बल्कि करीब 100 सालों से जुड़ा रहा है.(File Photo)
मुख्तार अंसारी के दादा डॉ मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान 1926-27 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. वह गांधी जी के बेहद करीबी माने जाते थे. दिल्ली में उनके नाम पर एक सड़क भी है. आजादी की लड़ाई में इस परिवार का गहरा नाता रहा है. मुख्तार के पिता खुद एक बड़े कम्युनिस्ट नेता थे.
मुख्तार अंसारी 05 बार बहुजन समाज पार्टी की ओर से विधायक रह चुका है. हालांकि राजनीति में उसकी एंट्री बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में छात्र संघ पदाधिकारी के तौर पर एक्टिव होने की वजह से हुई. उसने और भाई अफजल अंसारी ने 2007 में बसपा ज्वाइन की. मायावती ने तब उसे गरीबों का मसीहा और राबिनहुड तक बोल दिया था.जब मायावती ने 2010 उसको पार्टी से निकाल दिया तो उसने कौमी एकता दल के नाम से अपनी नई पार्टी बनाई. हालांकि 2017 में फिर उसकी बसपा में वापसी हो गई (File photo)
अंसारी 2009 में वाराणसी से मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ा. वो हार जरूर गया. वो अच्छे खासे वोट मिले. वो 17,211 वोटों से हारा. 2010 जब बीएसपी ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया, तब उसने खुद कौमी एकता दल नाम से पार्टी बनाई. ये पार्टी उसने अपने भाइयों, अफजल और सिबकैतलाह के साथ मिलकर बनाई.मुख्तार ने वर्ष 2014 में बनारस से मोदी के खिलाफ भी लोकसभा चुनाव लड़ा. लेकिन हार का मुंह देखना पड़ा.
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