देश में 24 मार्च से लगा लॉकडाउन एक के बाद एक चार चरणों में चलता रहा. अब भी कई राज्यों में सप्ताहांत पर लॉकडाउन लगाया जा रहा है. दूसरी ओर बहुत से देशों लॉकडाउन या तो आंशिक रहा या लगाया ही नहीं गया. हालांकि उन देशों की तुलना में भारत में कोरोना संक्रमण का आंकड़ा काफी आगे जा चुका है. स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा शनिवार सुबह जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, देश में कोरोना (Coronavirus India Report) संक्रमितों की संख्या 53 लाख के पार जा चुकी है. इस तरह से हम अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर हैं. जानिए, क्यों जल्दी लॉकडाउन लगने के बाद भी भारत में बढ़ रहे हैं कोरोना के मामले. (graphic- news18 hindi)
सबसे पहले तो ये समझना होगा कि लॉकडाउन कोरोना संक्रमण को खत्म करने का तरीका नहीं, ये सिर्फ संक्रमण फैलने की रफ्तार कम करने का तरीका है. किसी भी देश में बंदी के कारण मामले खत्म नहीं हो सकते, सिवाय एकाध देश को छोड़कर. जैसे न्यूजीलैंड. वहां की भौगोलिक स्थिति इस तरह की है, जिससे आइसोलेशन आसानी से हो पाता है. दूसरी तरफ भारत जैसे ज्यादा आबादी वाले देशों में सख्त आइसोलेशन या बंदी भी मुमकिन नहीं.
हालांकि बंदी के कारण देश में कोरोना संक्रमण की रफ्तार कम करने में वाकई में मदद मिली. खुद इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के डायरेक्टर जनरल बलराम भार्गव ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि हमने यूरोप से सीखा और संक्रमण की गति को इस तरह से रोका कि हमारे यहां मौत की दर घटी. ये सच भी है क्योंकि भारत में यूरोपियन देशों की अपेक्षा रिकवरी दर ज्यादा है, जबकि कोरोना के कारण होने वाली मौतें कम हैं. साथ ही शुरुआती लॉकडाउन के दौरान सरकार को अस्पतालों में जरूरी सुविधाएं जुटाने में भी मदद मिली.
घनी आबादी के कारण लोग संक्रमण की ज्यादा चपेट में आए. इसपर लाइव मिंट में एक रिपोर्ट आई है, जिसके मुताबिक पुणे, मुंबई जैसे शहरों में संक्रमण की रेंडम जांच के लिए सीरो- सर्वे किया गया. इसमें पाया गया कि स्लम में रहने वालों में एंटी-बॉडी थी, जबकि उन्हें पता ही नहीं कि वे कोरोना संक्रमित होकर रिकवर हो चुके. इस डाटा से समझा जा सकता है कि बंदी के बाद भी स्लम में रहने वाले परिवार पानी या टॉयलेट जैसी सुविधाओं के चलते एक-दूसरे के संपर्क में आए और संक्रमण फैला. (Photo-pixabay)
इसके अलावा डॉक्टर और नर्सों के लिए भी personal protective equipment की कमी लगातार सामने आई है. शुरुआत में ये हालात और खराब थे, जिसके कारण बहुत से स्वास्थ्यकर्मी बीमारी का शिकार हो गए. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर में बताया गया है कि कोलकाता के Medical College Hospital में कोरोना के मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों को PPE की कमी के कारण रेनकोट पहनने को कहा गया. (Photo- pixabay)
शुरुआत में देश में कोरोना की जांच पर भी सवाल उठे. आरोप लगा कि भारत में कोरोना की जांच पर्याप्त नहीं है, जिसके कारण खतरा बढ़ा. अब भी यहां 193 देशों में जांच के मामले में देश 115वें स्थान पर खड़ा है. महाराष्ट्र में हालांकि काफी जांचें हो रही हैं. ये वहां के test positivity ratio (TPR) को देखकर पता लगता है, यानी कितने टेस्ट पर कितनी जांच पॉजिटिव आई. वहीं देश में हर एक लाख पर 42,170 कोरोना टेस्ट हुए. (Photo- pixabay)
भारत में मार्च के अंत से शुरू सख्त लॉकडाउन मई तक चला, जिसके बाद आंशिक तरीके से बंदी रही. इस दौरान लोगों को घरों से बाहर आने को मजबूर होना पड़ा क्योंकि उन्हें रोजी-रोटी कमानी है. लॉकडाउन के दौरान वैसे ही काफी नौकरियां गईं. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकनॉमी के मुताबिक अप्रैल 2020 में नौकरियां ज्यादा गईं. यही वजह है कि बंदी के बाद कोरोना के डर के साथ भी लोग घरों से बाहर निकलने लगे. वहीं कई दूसरे देशों, जैसे ब्राजील में स्टेट रिलीफ फंड बेहतर रहा. वहां इमरजेंसी सपोर्ट बढ़ा दिया गया ताकि मजबूरी में लोग संक्रमित न हों. (Photo- pixabay)
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