शनि (Saturn) हमारे सौरमंड के ग्रहों में से ऐसा ग्रह है जिसने खगोलविदों सहित आम लोगों में भी कौतूहल जगा रखा है. इस ग्रह के छल्लों के अलावा भी बहुत कुछ ऐसा है जो इसे खास बनाता है. इसकी मैग्नेटिक फील्ड (Magnetic Field) भी इसे बहुत खास ग्रह बनाती है. दूसरे ग्रहों में उनकी घूर्णन धुरी मैग्नेटिक धुरी से कुछ हटकर है तो वहीं शनि की घूर्णन धुरी के समान ही यह मैग्नेटिक धुरी बहुत सुडौल है. नासा के कसीनी अभियान (Cassini Mission) ने इसके अध्ययन के लिए बहुत सारे आंकड़े दिए हैं जिससे इसके बारे में बहुत सारी जानकारी मिल रही है. . (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
शनि (Saturn)का यह अजीब मैग्नेटोस्फियर (Magnetosphere) के होने की वजह से शनि के अंदर है. कसीनी के आंकड़े यह बताने में मददगार हो सकते हैं कि शनि की यह स्थिति कैसे बन सकी. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी की ग्रहविज्ञानी सैबाइन स्टेनली बताती हैं कि शनि ग्रह का निर्माण कैसे हुआ और समय के साथ इसका विकास कैसे हुआ, यह अध्ययन कर हम शनि ही नहीं बल्कि हमारे सौरमंडल (Solar System) के बारे में भी काफी कुछ जान सकते हैं. यह शोध एजीयू एडवांस में प्रकाशित हुआ है. (तस्वीर: NASA/JPL)
ग्रहों के मैग्नेटिक फील्ड (Magnetic Field) आमतरौ पर ग्रहों के अंदर से पैदा होते हैं. यह एक घूमते रहने वाली विद्युत सुचालक (Electrically Conductive) तरल पदार्थ की वजह से होता है जो गतिक ऊर्जा को चुंबकीय ऊर्जा में बदलता रहा है इसे डायनामो कहते हैं. इसके कारण ही अंतरिक्ष तक मैग्नैटिक फील्ड का प्रभाव पैदा होता है. कसीनी (Cassini Mission) के जरिए शनि के मैग्नेटिक फील्ड के बारे में काफी जानकारी मिलने के बाद स्टेनली और उनके साथी ची यान ने इन आंकड़ों की मदद से शनि के आंतरिक भाग के बारे में जानने की कोशिश की. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
स्टेनली ने शक्तिशाली कम्प्यूटर सिम्यूलेशन का उपयोग कर उसमें कसीनी (Cassini) के आंकड़े भरे और उसके आधार पर शनि (Saturn) की मैग्नेटिक फील्ड (Magnetic Field) बनाने का प्रयास किया. स्टेलनी ने बताया क उन्होंने पाया कि यह मॉडल तापमान जैसी चीजों के लिए भी बहुत ज्यादा संवेदनशील था. उन्हें शनि की गहराई में 20 हजार किलोमीटर नीचे एक तरह से एक्सरे तस्वीर देखने को मिली. इसके साथ ही ग्रह के 70 प्रतिशत त्रिज्या पर हीलियम की बारिश ने उनके कसीनी अवलोकनों को फिर से पैदा करने में सहायता की. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
यह कोई नई बात नहीं है. जिस तरह का तापमान और दबाव शनि (Saturn) के भीतर है उन हालातों में हाइड्रोजन और हीलीयम (Helium) तरल हो जाते हैं. नीचे की ओर हीलियम अलग हो जाता है और एक स्थिर परत बन जाती है जिससे उसकी बारिश होने लगती है और वह क्रोड़ (Core) की ओर जाने लगता है. यही वजह है कि शनि का आंतरिक हिस्सा उम्मीद से ज्यादा गर्म क्यों हो सकता है. यही बात छह साल पुराने एक शोध में भी सामने आई थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
शनि में इस हीलियम (Helium) की परत की सीम पर ऊष्मा के बहाव में बदलाव शनि (Saturn) के अक्षांश के अनुसार होते हैं. जहां भूमध्य अक्षांश बहुत ज्यादा गर्म होते हैं तो वहीं ध्रुवीय अक्षांशों में तापमान बहुत कम होता है. टीम के मॉडल ने यह भी दर्शाया कि मैग्नेटिक फील्ड (Magnetic Field) के लगभग सटीक समरूपता दिखने के बाद भी ध्रुवों पर 0.5 प्रतिशत असमरूपता हरो सकती है. जहां से कसीनी के आंकड़े सबसे कमजोर हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
स्टेनली का कहना है कि भले ही शनि (Satrun) के अवलोकन सटीक रूप से समरूप दिखाई दें, उनके कम्प्यूटर सिम्यूलेशन में वे पूरी पड़ताल कर सकते हैं. भविष्य के अवलोकन इसकी सीमितता को, खासतौर पर ध्रुवीय इलाकों की सीमितता, दूर करने में मददगार हो सकते हैं. लेकिन इसके लिए हमें लंबा इंतजार करना होगा. पृथ्वी (Earth) से ये अवलोकन संभव नहीं हैं और फिलहाल शनि के लिए कोई भी अभियान तैयार नहीं हो रहा है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)
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