आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सिंदरी में खाद संयंत्र की शुरुआत कर देश में हरित क्रांति की नींव डाली थी. अन्न की पैदावार बढ़ाने की दिशा में ये बड़ा कदम था. बता दें कि इससे पहले ब्रिटिश राज के दौरान ही देश में साल 1934 में बंगाल में भारी अकाल मचा था, जिसके बाद से ही अन्न उत्पादन बढ़ाने की योजना बनने लगी थी लेकिन इसकी शुरुआत 2 मार्च 1951 को हो सकी. (Photo- flickr)
सिंदरी नाम वैसे तो आम लोगों के लिए नया है लेकिन कृषि से जुड़े लोगों के लिए ये काफी जाना-पहचाना नाम है. झारखंड के धनबाद में बसी इस औद्योगिक नगरी में खाद का संयंत्र था, जिसे फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (FCIL) नाम दिया गया. यहां आज ही के दिन तत्कालीन पीएम नेहरू ने सिंदरी खाद कारखाने का उद्घाटन करते हुए अमोनियम सल्फेट नामक रासायनिक उर्वरक को किसानों के नाम किया था, जिसके साथ ही खेती-किसानी एक नए क्रांतिकारी मोड़ पर पहुंची थी.
सिंदरी में खाद प्लांट लगाने के पीछे बड़ा कारण बंगाल में पड़ा अकाल था. माना जाता है कि उस दौरान लाखों लोगों की जानें गईं, जबकि बहुतेरे दर-बदर हो गए. तब तत्कालीन ब्रिटिश राज में अकाल के कारणों की जांच करते हुए माना गया कि देश के भीतर अनाज की पैदावार बढ़ाने के लिए आधुनिक खेती की जरूरत है. इसके लिए खेती के यंत्रों में सुधार के अलावा खाद बनाने पर भी जोर दिया गया.
सिंदरी खाद कारखाना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखी गई पुस्तक सागा आफ सिंदरी के अनुसार तब खाद बनाने के लिए कोयले और पानी की उपलब्धता जरूरी थी. सिंदरी में दामोदर नदी का पानी थी और उससे सटे हुए इलाके झरिया में कोयले का भंडार था. यही देखते हुए सिंदरी में खाद प्लांट बनाने का फैसला ले लिया गया.
ये फैसला साल 1940 में हुआ था लेकिन तभी देश में आजादी की लड़ाई तेज हो गई और इस दौरान खाद कारखाने के निर्माण की योजना धीमी पड़ गई. आखिरकार आजाद भारत में पंडित नेहरू ने इस कारखाने का उद्घाटन किया था. साथ ही कहा था कि देश में इस जैसे अनेकों पलाश खिलेंगे. हालांकि ऐसा होते हुए भी हो न सका.
सिंदरी का खाद कारखाना 31 दिसंबर 2002 में बंद हो गया. तब प्लांट में काम कर रहे कर्मचारियों को वीएसएस के तहत सेवानिवृत्त कर दिया गया था, जिनकी संख्या 2000 से भी भी ज्यादा थी. इसका कारण ये दिया गया कि प्लांट से खास लाभ नहीं हो पा रहा है. हालांकि इससे काफी सारे लोगों का जीवन प्रभावित हुआ और हर साल इस दिन के पास आने के साथ कारखाने से जुड़े लोगों में टीस भर आती होगी, लेकिन इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि ये कारखाना हरित क्रांति की दिशा में नए भारत में काफी बड़ा कदम था.
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