पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की संदिग्ध मौत के बाद इंदिरा गांधी न केवल कांग्रेस पार्टी की प्रमुख बनी थीं बल्कि देश की बागडोर संभालने वाली पहली महिला भी. इंदिरा गांधी देश की पहली और इकलौती महिला प्रधानमंत्री होने का रिकॉर्ड तो अपने नाम रखती ही हैं, इसके साथ ही कई विवाद भी उनके नाम रहे. 1966 में पहली बार पीएम बनने वाली इंदिरा गांधी 1984 में हत्या तक सबसे ज़्यादा विवादास्पद प्रधानमंत्री भी रहीं.
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बेटी 1955 में ही देश की राजनीति में चर्चित हो चुकी थीं. कांग्रेस पार्टी की कार्यकारी इकाई में उन्हें शामिल किया गया था और फिर 1959 में इंदिरा को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया था. नेहरू की मृत्यु के बाद जब 1964 में शास्त्री पीएम बने, तब इंदिरा को उनकी सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई थी.
यह सरकार तब संकट में आ गई जब ताशकंद समझौते के लिए रूस गए पीएम शास्त्री की संदेहास्पद मौत हो गई. इंदिरा गांधी ने बागडोर संभाल ली, लेकिन कांग्रेस के दक्षिणपंथी धड़े को यह बात गवारा नहीं हुई. इंदिरा के पीएम बन जाने पर विरोध हुआ तो 1967 में चुनाव की नौबत आई. हालांकि बहुत कम अंतर से इंदिरा जीतीं, लेकिन चुनी हुई प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने शुरूआत की. 1966 और 1967 के बीच काफी विवाद रहे और देश ने पहली बार इतना बड़ा सियासी ड्रामा देखा.
कामराज के सहयोग से इंदिरा ने मोरारजी देसाई को हरा तो दिया था और देसाई उप प्रधानमंत्री भी थे लेकिन यही वो वक्त था जब कांग्रेस में धड़े बन रहे थे. यही वो वक्त था जब पीएम के तौर इंदिरा को मीडिया गूंगी गुड़िया तक कह रहा था. लेकिन, अगले कुछ सालों में देश ने महसूस किया कि देश की सबसे सशक्त, यहां तक कि तानाशाही प्रवृत्ति के नेताओं में इंदिरा अग्रणी रहीं. कांग्रेस में आंतरिक कलह के बावजूद 1971 में इंदिरा ने बड़ी जीत हासिल कर पूरे विपक्ष को करारा जवाब दिया और देश की निर्विवाद सबसे बड़ी नेता के तौर पर उभरीं.
बांगलादेश को नया मुल्क बनाने के पक्ष में इंदिरा ने जो पूरी कवायद की और पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध जीतकर अपना लोहा मनवाया, उसके बाद 1972 के चुनाव में उन्हें जीतने से कौन रोक सकता था. इसके बाद गरीबी हटाओ के नारे से वो लोकप्रिय हुईं तो खाद्य आपूर्ति, महंगाई और क्षेत्रीय विवादों के चलते उनकी छवि पर दाग भी लगते रहे. इन्तहा तब हुई तब 1975 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उन्हें चुनावी गड़बड़ियों के मामले में दोषी करार देकर उन्हें प्रतिबंधित किया, तो इंदिरा ने देश भर आपातकाल घोषित कर दिया.
लोकतांत्रिक अधिकार छीनकर पूरी सत्ता सिर्फ इंदिरा के हाथों में आ गई. आज़ादी और अधिकार संकट में रहे तो इस दौरान नसबंदी जैसे कई जबरिया कार्यक्रम भी चलाए गए. 1977 में इमरजेंसी खत्म हुई और चुनाव हुए. जैसा तय था, इंदिरा चुनाव हार गईं. इसके एक साल बाद कांग्रेस के दो टुकड़े हो गए और इंदिरा के समर्थन में कांग्रेस आई बनी, जहां आई का मतलब इंदिरा ही था. 1978 में ही भ्रष्टाचार के आरोप में उन्हें करीब हफ्ते भर के लिए जेल भी भेजा गया. लेकिन फिर बाज़ी पलटी और जनता पार्टी टुकड़े हो गई. एक बार फिर 1980 में इंदिरा गांधी सरकार बनी.
नए दशक की शुरूआत से ही कुछ राज्यों में स्वायत्ता की मांग सिर उठाने लगी थी और पंजाब में तो अलगाववादी आंदोलन हिंसा और आतंक तक पहुंच चुका था. 1984 में स्वर्ण मंदिर में भारतीय आर्मी ने ऐतिहासिक ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत उन सिख नेताओं का सिर कुचला जो अलग राज्य की मांग कर रहे थे. सरकारी कवायद के चलते सैकड़ों सिखों की जान गई थी. सिख बदला लेना चाहते थे. सिख अंगरक्षकों ने ही गोलियां दागकर 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या कर दी और देश की इकलौती महिला पीएम का युग खत्म हो गया.
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