भारत की गिनती जेनेरिक दवाओं और वैक्सीन के मामले में दुनिया के सबसे बड़े निर्माताओं में होती है. यहां दुनियाभर की लगभग 60 प्रतिशत वैक्सीन बनती हैं. बता दें कि हर साल पूरी दुनिया में ही 8 बिलियन डोज बनाए जाते हैं. इनमें से भी लगभग 1.5 बिलियन वैक्सीन डोज भारत की ही एक अकेली कंपनी बनाती है. सांकेतिक फोटो (pixnio)
पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ही वो कंपनी है, जो न केवल भारत, बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी है. साल 1966 में साइरस पूनावाला ने इस कंपनी की शुरुआत की थी. पारसी मूल के इस बिजनेसमैन को भारत का वैक्सीन किंग भी कहा जाता है. कंपनी सालाना 1.5 बिलियन डोज बनाती है. ये खुराकें 165 देशों में भेजी जाती हैं. इसके लिए पुणे में दो प्लांट हैं, साथ ही विदेशी करार के तहत नीदरलैंड्स में भी प्लांट है, जहां कुल मिलाकर 7000 लोगों का स्टाफ दिन-रात काम करता है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
कंपनी मुख्य तौर पर बीसीजी का टीका, पोलियो का टीका बनाती है, जिसके अलावा ऑर्डर पर दूसरे टीके तैयार होते हैं. सीरम इंस्टीट्यूट केवल दवा नहीं बनाती, बल्कि रिसर्च में भी काफी आगे है. साल 2009 में ये स्वाइन फ्लू के लिए नाक से दी जाने वाली दवा बना रही थी. अमेरिका के मेसाच्युसेट्स मेडिकल स्कूल के साथ मिलकर इसने एंटी-रेबीज एजेंट तैयार किया जो तुरंत असर करता है. कंपनी को इंटरनेशनल स्तर पर पहचान साल 2012 में मिली, जब इसके काम का विदेशी स्तर पर भी फैलाव हुआ. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
फिलहाल सीरम इंस्टीट्यूट का सारा फोकस कोरोना वैक्सीन के काम पर है. इसके लिए उसने AstraZeneca नाम की कंपनी के साथ टाई-अप कर रखा है जो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर वैक्सीन तैयार कर रही है. वैक्सीन का ट्रायल अपने आखिरी चरण में है और इसका केमिकल नाम भी तैयार हो चुका है. इसके अलावा वैक्सीन बनाने के लिए कई दूसरी विदेशी कंपनियों जैसे नोवावैक्स और मॉडर्ना के साथ भी इसका करार हुआ है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
इसके बाद नाम आता है भारत बायोटेक का. हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर के साथ मिलकर कोरोना की देशी वैक्सीन तैयार करने में लगी हुई है. वैक्सीन का पूरा नाम कोरोफ्लूः वन ड्रॉप कोविड-19 नेसल वैक्सीन बताया जा रहा है. साल 1996 में बनी इस कंपनी ने वैक्सीन निर्माण में बड़ी तेजी से काम किया और आगे बढ़ी. चिकनगुनिया और जीका वायरस के लिए देश में इसी कंपनी ने पहले टीके बनाए. इन्सिफेलाइटिस पर भी इसका काम चल रहा है. कंपनी ने यूनिवर्सिटी ऑफ विसकोंसिन मेडिसन और अमेरिकी फर्म फ्लूजेन के साथ गठजोड़ किया है और ये कोरोना का 30 करोड़ डोज बनाएगी. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
इंडियन इम्युनोलॉजिकल लिमिटेड (IIL) का मुख्य दफ्तर हैदराबाद में है. ये कंपनी भी वैक्सीन बनाने की दौड़ में काफी आगे है. ये सरकारी कंपनी है, जिसकी शुरुआत नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड ने साल 1982 में की थी. ये बच्चों के लिए अनिवार्य टीके जैसे खसरा, मीजल्स, हेपेटाइटिस और बैक्टीरियल बीमारियों के लिए टीके बनाती है. रेबीज का टीका भी यहां तैयार होता है. साथ ही यहां पशुओं के लिए भी वैक्सीन तैयार होती हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
जायडस कैडिला का संचालन अहमदाबाद से होता है. ये वैसे तो जेनेरिक ड्रग्स बनाती है लेकिन वैक्सीन के निर्माण में भी कंपनी काफी आगे निकली है. कंपनी की नींव साल 1952 में फार्मेसी कॉलेज के लेक्चरर रमनभाई पटेल और उनके साथी इंद्रवदन मोदी ने मिलकर की. फिलहाल कंपनी को कोरोना वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल की इजाजत मिल चुकी है और इस दिशा में वो काफी काम भी कर चुकी है. वो ZyCoV-D नाम से कोविड वैक्सीन ला सकती है. एक अन्य कंपनी बायोजन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड एक गैर-सरकारी कंपनी है, जिसका दफ्तर दिल्ली में है. बीच में इस कंपनी के अधिकारियों पर कोरोना को लेकर लापरवाही का आरोप लगा था. कहा गया था कि उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग के नियम नहीं माने, जिसके कारण काफी लोग संक्रमित हुए. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
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