परंपराओं, रंगों, त्यौहारों के लिए मशहूर भारत का अहम हिस्सा लज़ीज़ खाने भी हैं. भारत के खानों का ख्याल आते ही तंदूरी चिकन, समोसे, सरसों का साग, रूह अफज़ा का शरबत, कबाब, कढ़ाई पनीर, चाट-पकौड़े याद आते हैं तो ठहरिये. यहां सिर्फ नाम लेने भर से मुंह में पानी ले आने फूड ही नहीं खाए जाते. चूहे, चींटी की चटनी, सूखी मछलियां, रेशम का कीड़ा (silkworm), मेंढक की टांगें, सुअर और मुर्गे के खून में बनी डिश और सुअर के भेजे की सलाद जैसी चीज़ें भी खाई जाती हैं.
चींटी की चटनी- इस डिश का नाम छपराह (Chaprah) है. छत्तीसगढ़ की जनजातीय आबादी इसे रोजाना खाई जाने वाली चटनी की तरह खाते हैं. ये चटनी, लाल चींटी और उसके अंडो से बनाई जाती है. जिसमें मसाले और हल्का मीठा डालकर तैयार किया जाता है. चटनी में मिलाई जाने वाली लाल चींटियां सूखी हुई होती हैं. इस चटनी के अलावा, लाल सूखी चींटियां वहां की और भी कई डिशेज में गार्निश करने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं.
रेशम के कीड़े की डिश- असम की जानी-मानी इस डिश को सिल्कवॉर्म प्यूपा (silkworm pupas) और एरी पोल्लू (Eri Polu) कहा जाता है. रेशम के कीड़े से डिश तब बनाई जाती है, जब कीड़े का लाइफ सर्कल शुरू होता है. cocoon को गर्म पानी में उबाल कर सिल्क निकल गई होती है. उसके बाद जो सिल्कवॉर्म बचता है उसे प्यूपा कहते हैं. ये डिश प्यूपा और यहां के मशहूर फूड खोरिसा के साथ मिलकर बनती है. ये डिश देखने में काफी कलरफुल लगती है और मुंह में घुल जाती है.
चूहा- बिहार का मुसहर समुदाय भारत के सबसे गरीब समुदायों में से है. बिहार में ये बड़ी तादाद में रहते हैं. इनमें से ज्यादातर की दिन की आमदनी 70 रुपये से भी कम है. ये खाना न जुटा पाने के हालात में चूहे को आग में भून कर, उसमें नमक और सरसों का तेल मिलाकर खाते हैं. 2014 में बिहार के मुख्यमंत्री बने जीतन राम मांझी इसी समुदाय के थे. इस समुदाय के लोग कुष्ठ जैसी बीमारियों से जूझते हैं.
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