मौसम विभाग के अनुमान के मुताबिक इस साल ज्यादा ठंड पड़ेगी, जो मार्च तक खिंच सकती है. इसके लिए ला नीना को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. ग्लोबल जलवायु प्रणाली का ये हिस्सा पूरी दुनिया के तापमान पर अलग-अलग असर डालने जा रहा है. जिसके तहत देश के उत्तरी हिस्से में भयंकर सर्दियां पड़ने वाली हैं. इसी तरह से अल नीनो (El Niño) भी काम करता है, जिसका असर यह होता है कि वर्षा के प्रमुख क्षेत्र बदल जाते हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
सबसे पहले तो समझते हैं, ला नीना को. ये स्पैनिश भाषा एक शब्द है, जिसका अर्थ है छोटी बच्ची. पूर्वी प्रशांत महासागर क्षेत्र के सतह पर निम्न हवा का दबाव होने पर ये स्थिति पैदा होती है. इससे समुद्री सतह का तापमान काफी कम हो जाता है. इसका सीधा असर दुनियाभर के तापमान पर होता है और वो भी औसत से ठंडा हो जाता है. सांकेतिक फोटो
ला नीना साल नौ महीने से लेकर सालभर तक हो सकता है. इस दौरान नॉर्थवेस्ट हिस्से में सर्दियों में तापमान पहले से कम होता है, जबकि साउथईस्ट में सर्दी के दौरान भी तापमान ज्यादा रहता है. इसकी उत्पत्ति के अलग-अलग कारण माने जाते हैं लेकिन सबसे प्रचलित वजह ये है कि ये तब पैदा होता है, जब ट्रेड विंड (पूर्व से बहने वाली हवा) काफी तेज गति से बहती हैं. सांकेतिक फोटो
ला नीना से चक्रवात पर भी असर होता है. ये अपनी गति के साथ उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की दिशा को बदल देती है. इससे इंडोनेशिया और आसपास के इलाकों में काफी बारिश होती है. वहीं ईक्वाडोर और पेरू में सूखे के हालात बन जाते हैं, जबकि ऑस्ट्रेलिया में बाढ़ का डर रहता है. भारत में इस दौरान अच्छी ठंड भी पड़ती है और बारिश भी ठीक होती है. सांकेतिक फोटो
अब अल नीनो को भी समझ लेते हैं. ये भी जलवायु प्रणाली का एक हिस्सा है. ला नीना की ही तरह से ये भी मौसम पर तगड़ा असर डालती है. इसके आने से दु्नियाभर के मौसम पर असर दिखता है और बारिश, ठंड, गर्मी सबमें फर्क दिखाई देता है. वैसे राहत की बात ये है कि ये दोनों ही हालात हर साल नहीं, बल्कि 3 से 7 साल में दिखते हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
ऊष्ण कटिबंधीय प्रशांत के भूमध्यीय क्षेत्र के समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में आये बदलाव के लिए जिम्मेदार समुद्री घटना को अल नीनो कहते हैं. ये भी एक स्पैनिश शब्द है, जिसका अर्थ है छोटा बच्चा. इस बदलाव के कारण समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है. ये तापमान सामान्य से 4 से 5 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
गर्म पानी के बहाव का पेरू के आसपास के इलाकों पर और खासकर समुद्री जीव-जंतुओं पर बुरा असर होता है. मछलियां और दूसरे जलीव जीव औसत आयु पूरी करने से पहले ही मरने लगते हैं. ये वक्त 10 सालों में दो से तीन बार आता है. इसके असर से भी बारिश के मुख्य क्षेत्र बदल जाते हैं, जिससे कम बारिश वाली जगहों पर ज्यादा और ज्यादा बारिश वाली जगहों पर कम बारिश होने लगती है. अगर एल नीनो दक्षिण अमेरिका की तरफ सक्रिय हो तो भारत में उस साल कम बारिश होती है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
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