प्रोटीन (protein) जीवन के लिए निहायत जरूरी है, जो शरीर की कोशिकाओं को जिंदा रखने से लेकर हमारे सारे काम करता है. इसकी संरचना काफी जटिल होती है, जो अमीनो एसिड से बनती है. प्रोटीन किस तरह काम करता है, इसका राज उसकी संरचना में छिपा है. अब तक प्रोटीन की संरचना वैज्ञानिकों के लिए एक गुत्थी थी, जिसे प्रोटीन फोल्डिंग प्रॉब्लम कहा जाता था. अब ये गुत्थी अल्फाफोल्ड (AlphaFold) की मदद से सुलझ रही है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
प्रोटीन के फोल्ड को समझने में हमारी मदद कर रहा है- अल्फाफोल्ड सिस्टम. ये असल में एक AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) है, जिसे गूगल के डीप माइंड ने तैयार किया है. अल्फोफोल्ड प्रोटीन को लेकर जिसने सटीक अनुमान दे रहा है, वो अब तक मिले अनुमानों में सबसे करीब है. इसे लेकर एक टेस्ट का भी आयोजन हुआ था, जिसके रिजल्ट 3- नवंबर को आए. इसमें साफ हुआ कि अल्फोफोल्ड विज्ञान की इस 5 दशक लंबी गुत्थी को सुलझा सकेगा. सांकेतिक फोटो
तो आखिर प्रोटीन का शेप पता कर पाना इतना जरूरी क्यों है? दरअसल प्रोटीन की संरचना का हमारी सेहत से सीधा संबंध है. शरीर की कोशिकाओं के भीतर जो भी होता है, वो सब प्रोटीन से जुड़ा हुआ है. ऐसे में अगर इनकी संरचना का थ्री-डी समझ आ सके तो ये विज्ञान की दुनिया में बड़ा चमत्कार हो सकता है. वैसे यहां बता दें कि वायरस भी हमारे शरीर में पाए जाने वाले प्रोटीन से कनेक्ट होता है और तब हमें संक्रमित कर पाता है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
साल 1950 में पहली बार प्रोटीन की पूरी संरचना वैज्ञानिकों को समझ में आ सकी. हालांकि इसके बाद से ही इस संरचना की थ्री-डी बनाने पर काम चल रहा था लेकिन संभव नहीं हो पा रहा था. प्रोटीन में पाए जाने वाले अमीनो एसिड के कारण इसकी संरचना काफी जटिल है और इसके फोल्ड समझना आसान नहीं. पहली बार कंप्यूटर से प्रोटीन की नकल बनाने की कोशिश अस्सी से नब्बे के दशक के बीच हुई, जो पूरी तरह से नाकामयाब रही. सांकेतिक फोटो
अब जाकर गूगल के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने ये करने में सफलता पाई. AI ने जेनेटिक्स डाटा के आधार पर पहले ये समझा कि एक से दूसरे अमीनो एसिड के बीच कितनी दूरी होती है. इसके बाद फिजिकल और जियोमैट्रिक स्ट्रक्चर को देखा गया. इसके बाद भी लंबी कोशिश के बाद फोल्ड समझने में सफलता मिल सकी. सांकेतिक फोटो (pikrepo)
अब ये समझते हैं कि प्रोटीन की संरचना और फोल्ड को समझने का हम जैसे आम लोगों को क्या फायदा मिलेगा. इसका सबसे बड़ा फायदा मॉलिक्यूलर बायोलॉजी में काम करने वाले वैज्ञानिकों को मिलेगा. इससे हमारे भीतर पाए जाने वाले जीनोम का रहस्य समझा जा सकेगा. और ये भी हो सकता है कि भविष्य में जन्मजात मानसिक विकलांगता जैसी समस्या भी न रहे. सांकेतिक फोटो (pikrepo)
कई बार ये भी होता है कि किसी बीमारी के कारण प्रोटीन की संरचना में बदलाव हो जाता है, यानी उसका फोल्ड बदल जाता है और कोशिकाएं कमजोर हो जाती हैं. इसका सीधा असर व्यक्ति की सेहत पर होता है. अगर इस जटिल फोल्ड को समझा जा सका तो इलाज भी काफी आसान हो जाएगा. ये भी हो सकता है कि इससे आज तक लाइलाज रह कई बीमारियां ठीक हो जाएं. सांकेतिक फोटो (pikrepo)
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