चीन ने एक बार फिर आतंकवादी संगठन जैश ए मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकवादी घोषित करने पर अड़ंगा लगा दिया. ये लगातार चौथी बार है, जब भारत और यूएन सुरक्षा परिषद के इस तरह के प्रस्ताव पर चीन वीटो पावर का इस्तेमाल कर चुका है. आखिर क्या वजह है कि चीन पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर बार-बार ढील दे रहा है. कूटनीतिज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान को बचाने के पीछे चीन के कई स्वार्थ हैं.
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर हमले की जिम्मेदारी जैश ने ली. इसके बाद से इसके लीडर अजहर पर लगाम कसने की तैयारी हो रही थी. इसके लिए यूएन के सिक्योरिटी काउंसिल रिजॉल्यूशन 1267 के तहत फ्रांस, अमेरिका और यूके प्रस्ताव लेकर आए. इसके तहत अजहर को ग्लोबल आतंकवादी घोषित किया जा सकता था, हालांकि चीन ने प्रस्ताव को टेक्निकल होल्ड पर रख दिया, यानी फिलहाल ऐसा नहीं हो सकता है.
पाकिस्तान के इस चरमपंथ को चीन किसी न किसी तरीके से बढ़ावा देता आया है. इससे पहले भी साल 2009, 2016 और 2017 में जैश के सरगना को आतंकवादी घोषित करवाने की भारत ने कोशिश की थी, जिसपर चीन ने इसी तरह से अड़ंगा लगाया था.
चीन के इस बर्ताव के पीछे उसके कई राजनैतिक-आर्थिक फायदे हैं. एक बड़ी वजह तो ये है कि चीन ने पाकिस्तान में एक महत्वाकांक्षी योजना पर काफी बड़ा निवेश किया है, जिसकी लागत लगभग 50 अरब डॉलर है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) प्लान के तहत बनाया जा रहा है, जो पाकिस्तान को चीन से इस तरह से जोड़ेगा कि कम से कम वक्त में वाणिज्यिक आवाजाही हो सके. पाकिस्तान या उसके संगठनों पर किसी भी तरह की लगाम चीन के निवेश को बेकार कर सकती है.
एक और बड़ी वजह चीन में मुस्लिमों पर सख्ती है. चीन में तकरीबन 1 करोड़ से ज्यादा वीगर मुसलमान रह रहे हैं. ये चीन से अलग देश बनाना चाहते हैं. उनका ये आंदोलन ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट के नाम से जाना जाता है. इसी आंदोलन से भड़का हुए चीन वीगर मुस्लिमों पर सख्त है. उनपर कई तरह की धार्मिक पाबंदियां हैं.
चीनी सेना और वीगर आंदोलनकारियों के बीच आएदिन हिंसक मुठभेड़ होती रहती हैं. साल 2015-16 में चीनी सरकार ने फैसला किया कि वीगर मुसलमानों को उन्हीं की कौम के जरिए कुचला जाए. इस कूटनीतिक फैसले के तहत चीन ने मसूद अजहर से संबंध मजबूत किए, उसकी आतंकी गतिविधियों को कई तरीकों से समर्थन देना शुरू किया ताकि अजहर का संगठन चीन में वीगर मुसलमानों पर लगाम लगा सके.
इससे पहले भी चीन कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को आतंकवाद प्रायोजित कराने वाला देश साबित होने से बचा चुका है, जैसे ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान भारत की यही कोशिश थी, जिसपर चीन ने आपत्ति जताते हुए बात से मामला सुलझाने की सलाह दी.
इसके अलावा चीन भारत से निजी वजहों से भी नाराज रहता है. जैसे भारत ने तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को सुरक्षित रखा हुआ है, ये चीन को नापसंद है. भारत के अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों से लगातार पुख्ता हो रहे संबंध भी चीन को पाकिस्तान को बचाने की वजह देते रहे हैं.
बता दें कि अगर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में ये प्रस्ताव साबित हो जाता तो अजहर पर कई तरह के प्रतिबंध लग जाते, जिससे आतंकी गतिविधियां चलाने की उसकी मुहिम कमजोर पड़ जाती. इसमें अजहर के कहीं आने-जाने पर प्रतिबंध से लेकर हथियारों के उसके व्यावसाय या किसी भी तरह के लेन-देन पर रोक लगाई जा सकती है. सुरक्षा परिषद अब तक 257 लोगों और 81 संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा चुकी है, जिसमें अकेले पाकिस्तान के ही 139 आतंकवादी समूह शामिल हैं.