स्विस फर्म हवा में मौजूद उन सूक्ष्म कणों के आधार पर वायु गुणवत्ता को मापता है, जिनसे शरीर को भारी नुकसान पहुंचता है. हवा में मौजूद सूक्ष्म कण पीएम 2.5 शरीर को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. इस सालाना सर्वेक्षण को तैयार करने वाली टीम में कई देशों के शोधकर्ता शामिल होते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सबसे ज्यादा खराब हवा वाले शहरों में गाजियाबाद, ग्रेटर नोएडा, फरीदाबाद, बहादुरगढ़, मुजफ्फरनगर, दरभंगा, असोपुर, पटना, धारूहेड़ा और छपरा हैं.
भारत और पाकिस्तान में वायु गुणवत्ता को एशियाई क्षेत्र में सबसे खराब बताया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों देशों की 60 फीसदी आबादी उन क्षेत्रों में रहती है, जहां की हवा में पीएम 2.5 सूक्ष्म कणों की मात्रा तय मानकों के मुकाबले 7 गुना ज्यादा है. खराब हवा वाली सूची में सबसे ऊपर मध्य अफ्रीका का चाड है. यहां 2022 में प्रदूषित हवा का औसत स्तर 89.7 था. वहीं, दूसरे नंबर पर मौजूद इराक में प्रदूषित हवा का औसत स्तर 80.1 रहा था.
बांग्लादेश में इस मामले में सुधार दर्ज किया गया है और ये पहले से पांचवें नंबर पर पहुंच गया है. बांग्लादेश में पीएम 2.5 का स्तर 65.8 रह गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 10 में एक व्यक्ति सेहत के खतरनाक स्तर के वायु प्रदूषण वाले इलाके में रह रहा है. अमेरिकी प्रशांत क्षेत्र गुआम दुनिया का सबसे साफ हवा वाला देश है, जहां हवा में पीएम 2.5 का स्तर 1.3 था. देशों की राजधानियों के मामले में ऑस्ट्रेलिया की कैपिटल कैनबरा सबसे साफ हवा वाले शहरों में शीर्ष पर है. कैनबरा में पीएम2.5 का स्तर 2.8 रहा था.
भारत में वायु प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार उद्योग धंधे हैं. देश के कुल प्रदूषण में इंडस्ट्रीज की भागेदारी 50 फीसदी से ज्यादा है. वहीं, मोटर व्हीकल्स का योगदान 27 फीसदी है. फसल जलाने वाले लोग प्रदूषण में 17 फीसदी के हिस्सेदार हैं. वहीं, अगर आपको लगता है कि घर में खाना बनाने के दौरान आप प्रदूषण नहीं कर रहे हैं तो आप गलत हैं. घरों में खाना बनाकर हम प्रदूषण में 7 फीसदी भागीदारी निभा रहे हैं.
ग्रामीण इलाकों गोबर, लकड़ी, पत्तियों को मिलाकर बनाए जाने वाले उपले/कंडों को जलाने से काफी प्रदूषण फैलता है. चूल्हा या अंगीठी जलाने पर निकलने वाले सूक्ष्म कण बहुत समय तक हवा में रह जाते हैं और प्रदूषण फैलाते हैं. जिन घरों में स्टोव जलाने के लिए केरोसिन का इस्तेमाल होता है या सर्दियों में हीटर्स का खूब इस्तेमाल होता है, वे भी प्रदूषण बढ़ाने में बराबर जिम्मेदार हैं. शहरी इलाकों में सड़कों पर दौड़ती कारें, बसें, स्कूटर्स, बाइक्स और उद्योग धंधे प्रदूषण फैलाते हैं.
भारत में हवा में प्रदूषण फैलाने वाले सूक्ष्म कण पीएम 2.5 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्टैंडर्ड से बहुत ज्यादा रहता है. लिहाजा, लोगों को सांस से जुड़ी गंभीर बीमारियां होती हैं. साल 2019 में 16 लाख से अधिक मौतों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार था. इन मौतों की वजह स्ट्रोक, डायबिटीज, फेंफड़ों का कैंसर रही थी. खराब हवा से श्वसन तंत्र पर बुरा असर पड़ता है. इससे होने वाली बामारियों में फेफड़ों की क्षमता में कमी, खांसी, थकान, कैंसर प्रमुख हैं.
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